जब हम सुनते हैं कि कोई योगी कुछ सौ साल या हजार सालों तक जीवित रहे तो हमें यह महज गप लगता है। लेकिन क्या वाकई समय को वश में किया जा सकता है? क्या ऐसा संभव है?

सद्‌गुरुकाल का अर्थ होता है, समय। काल के दो पहलू हैं। काल का अर्थ समय भी होता है, और अंधेरा भी। समय भौतिक अस्तित्व का नतीजा है। भौतिक प्रकृति की चक्रीय गति के कारण समय का अस्तित्व है। अगर भौतिकता न होती, तो आपको समय का कोई अनुभव ही नहीं होता। मान लीजिए, आपके पास शरीर नहीं है, तो यहां आप तीन दिन बैठें या 3000 साल, क्या फर्क पड़ता है? शरीर है, इसलिए वह समय का लेखा-जोखा रखता है।

क्योंकि आपने अपनी ऊर्जा को एक खास बिंदु तक बढ़ा लिया है, इसलिए आप समय को जोड़, घटा, गुणा या भाग कर सकते हैं। अगर आप खुद समय में दखल देना चाहें, तो आप कुछ नहीं कर सकते क्योंकि समय का कोई अस्तित्व नहीं होता।
भौतिकता तो बस समय की दास है। इसलिए जो भी चीज भौतिक या स्थूल है, उसका एक आदि यानी शुरुआत और एक अंत होता है। चाहे वह कोई इंसानी शरीर हो या कोई और जीव, या विशाल खगोलीय पिंड, हर चीज का आदि और अंत होता है। एक बार भौतिक शरीर पा लेने के बाद, आप समय के दास हो जाते हैं। उससे आप बच नहीं सकते।

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अगर आप समय को इस रूप में देखें - जैसे आप उसे जानते हैं, उसका अनुभव करते हैं या उसे गुजरने देते हैं - तो हम सभी के लिए समय एक ही गति से बीत रहा है। चाहे हम कहीं बैठे हैं, जगे हुए हैं, सोए हुए हैं, चाहे जिस अवस्था में हैं, या फिर उस कीड़े के लिए भी जो अपने ही संगीत में मग्न है, समय एक ही गति से बीत रहा है। आप इसमें कुछ नहीं कर सकते, जब तक कि आप अपने भौतिक अस्तित्व से परे न चले गए हों या आपने उस पर अधिकार न कर लिया हो।

लोग शराब या ड्रग्स का सेवन इसीलिए करते हैं क्योंकि ये चीजें उन्हें समय पर अधिकार करने का एक झूठा एहसास दिलाती हैं। दस घंटों का वक्त उनके अनुभव में एक घंटे की तरह महसूस होता है। उन्हें पता नहीं चलता कि समय कितनी तेजी से निकल गया।

अगर आप पूरी तरह नशे में होते हुए भी पूर्ण रूप से सचेतन हो सकते हैं, तो आप कालेश्वर बन जाएंगे। शिव की प्रकृति यही है, इसलिए हम उन्हें कालेश्वर कहते हैं। एक विशेष तरह के नशे में आप समय से परे भी हो सकते हैं, मगर जागरूक रहते हैं। अगर आप नशे में हैं और जागरूक नहीं हैं, तो यह मृत्यु के समान है। आप कह सकते हैं, ‘मरे हुए लोग समय से परे हो गए हैं।’ मगर इसका तुक ही क्या है? यह सच है कि जो लोग मर चुके हैं, वे समय के अधीन नहीं हैं मगर फिर इसका मतलब ही क्या है? आप जीवित होते हुए, पूरी तरह जागरूक होते हुए भी समय से परे हो जाएं, आपके अंदर समय का कोई भान न हो, तब बेशक इसका महत्व है।

अगर कोई योगी कहीं बैठता है, तो वह बस बैठता है। लोगों को लगता है कि वह कई घंटों से बैठा है। नहीं, अपने अनुभव में वह बस बैठा हुआ है, घंटे अपने आप निकल जाते हैं। आपको इसके लिए कुछ नहीं करना पड़ता। आपको यहां बैठकर हर घंटे को धक्का नहीं देना पड़ता। ऐसा तभी होता है, जब आप अपनी मानसिक प्रक्रिया के दास हों। अगर आप मानसिक रोगी हैं, तो आपको हर मिनट को धक्का लगाना होगा, वरना वह नहीं गुजरेगा। अगर आप कुछ ज्यादा पागल हैं, तो आपको हर पल को धक्का देना होगा, वरना वह नहीं बीतेगा। इसीलिए आपसे कहा जाता है, ‘इसी पल में रहो।’ लेकिन जब आप आनंदित होते हैं, आनंदित न भी हों, बस खुश भी होते हैं, तो समय निकलता जाता है। लेकिन असल में चाहे आप खुश हों या दुखी, जागे हुए हों या सोए हुए, जीवित या मृत, समय हम सब के लिए एक ही गति से बीत रहा है।

हम क्या कर सकते हैं? हम बस अपनी ऊर्जा को इस तरह बढ़ा सकते हैं कि जिस काम को कोई एक साल में करता है, उसे हम दस दिन में कर सकते हैं। इसलिए जीवित रहते हुए बराबर समय में आप उतना काम कर सकते हैं, जितना ज्यादातर लोग 1000 सालों में भी नहीं कर पाएंगे। लोग उन्हें अलग-अलग नामों से बुलाते हैं। एक नाम है – कालेश्वर, जिसका अर्थ है कि वह समय से परे है, वह अपने जीवन में समय को जोड़-घटा और गुणा, भाग कर सकते हैं।

अगर आप पूरी तरह नशे में होते हुए भी पूर्ण रूप से सचेतन हो सकते हैं, तो आप कालेश्वर बन जाएंगे।
अगर वे चाहें, तो बस अपनी आंखें बंद करके समय को बीतने देंगे। एक कालेश्वर को लगता है कि दस मिनट में ही उसकी मृत्यु हो गई, मगर असल में वह पच्चीस सालों तक वहां बैठा था। बहुत से योगी सिर्फ एक जगह बैठे रहते थे, हिलते-डुलते नहीं थे। लोगों को लगता था कि वे सालों से वहां बैठे हैं। मगर अपने अनुभव में वे सिर्फ चंद मिनटों या चंद दिनों तक वहां बैठे थे।

क्योंकि आपने अपनी ऊर्जा को एक खास बिंदु तक बढ़ा लिया है, इसलिए आप समय को जोड़, घटा, गुणा या भाग कर सकते हैं। अगर आप खुद समय में दखल देना चाहें, तो आप कुछ नहीं कर सकते क्योंकि समय का कोई अस्तित्व नहीं होता, वह बस एक परिणाम है। आप परिणाम से नहीं लड़ सकते क्योंकि परिणाम सामने आते रहते हैं। मसलन, अगर आपको धूप या सूर्य की रोशनी नहीं चाहिए, तो आपको सूर्य को नष्ट करना होगा, उसकी किरणों को नहीं। अगर आप सूर्य की किरणों से लड़ना शुरू कर देंगे, तो यह एक अंतहीन और व्यर्थ की लड़ाई होगी। लेकिन यदि आप सूर्य को ही बम से उड़ा दें, तो शायद रोशनी खत्म हो जाएगी। मगर कहा जाता है कि कोई छोटी सी सौर ज्वाला भी बीस से तीस खरब परमाणु बम के बराबर होती है, और ऐसी लाखों ज्वालाएं हर पल घटित हो रही हैं। इसलिए उसे बम से उड़ाने की कोशिश मत करना, इससे कुछ भी नहीं होगा। मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर हमें रोशनी नहीं चाहिए, तो हमें सूर्य को नष्ट करना होगा, उसकी किरणों से लड़ने का कोई लाभ नहीं है। समय भौतिक प्रकृति की चक्रीय गति का नतीजा है। अगर आप हर उस चीज को नष्ट कर दें, जो भौतिक है, तो समय का कोई अस्तित्व नहीं होगा या फिर अगर आप अपनी भौतिकता से परे चले जाएं, तो समय का कोई अस्तित्व नहीं होगा। तो इसीलिए - वे कालेश्वर हैं।