“मैं चाहता हूं कि दुनिया यह जाने कि योग के जन्मदाता आदियोगी - यानी खुद शिव ही हैं।” – सद्गुरु
“आदियोगी का अस्तित्व सभी धर्मों से पुराना है। ये 112 फीट ऊंचा भव्य चेहरा उनके साधनों की सार्वभौमिकता का उत्सव मनाने के लिए है।” – सद्गुरु
“आदियोगी, एक प्रतीक और एक संभावना हैं। वे उन साधनों के मूलदाता भी हैं जिनसे आप खुद को रूपांतरित करके अपने जीवन को खुद रच सकते हैं।” – सद्गुरु
“आदियोगी का महत्व यह है कि उन्होंने मानव चेतना के विकास के लिए ऐसी विधियां बताई, जो हर काल में प्रासंगिक हैं।” – सद्गुरु
“आदियोगी ने जिस मौलिक ज्ञान की रचना की है, वह ज्ञान धरती की लगभग हर उस चीज का स्रोत है, जिसे आप आध्यात्मिक कह सकते हैं।” – सद्गुरु
“यौगिक संस्कृति में शिव को आदि योगी या पहले योगी, और ज्ञान और मुक्ति के स्रोत की तरह जाना जाता है।
” – सद्गुरु
“अस्तित्व में सबसे बड़ी शक्ति शिव हैं। शिव का अर्थ है - कुछ न होना। कुछ न होना, सब कुछ का आधार है।"
– सद्गुरु
“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके जीवन की स्थिति कैसी है, शिव हर स्थिति में प्रासंगिक हैं - इसीलिए वह महादेव हैं। शिव, क्षुद्र समस्याओं के लिए समाधान नहीं बल्कि मुक्ति के लिए हैं।”
– सद्गुरु
“ऐसा कहते हैं कि भगवान हर जगह है। कुछ-कुछ केवल कुछ-जगह हो सकता है। केवल कुछ नहीं ही हर जगह हो सकता है । शिव का अर्थ है - कुछ नहीं, वह जो है ही नहीं । "
– सद्गुरु
“हम कहते हैं कि शिव स्वयंभू हैं - इसका मतलब है कि उनका कोई पालन-पोषण नहीं हुआ है। कोई पिता नहीं, कोई माँ नहीं, क्योंकि आनुवंशिकी का अर्थ है पुनरावृत्ति, जिसका अर्थ है चक्रीय प्रकृति। चक्रीय प्रकृति का अर्थ है कि आप गोल-गोल घूम रहे हैं, जिसका अर्थ है कि आप कहीं नहीं पहुँच रहे हैं।” – सद्गुरु
"शिव को उनकी गर्दन के चारों ओर फन उठाये हुए एक सांप के साथ चित्रित किया जाता है, यह इंगित करने के लिए कि ऊर्जाओं ने चरम को छू लिया है।"
– सद्गुरु
“शिव ऊपर रहने वाले देवता नहीं हैं, बल्कि वे यहाँ एक जीवित उपस्थिति हैं ।"
– सद्गुरु
“कालभैरव, समय के रूप में शिव की एक अद्वितीय अभिव्यक्ति है।"
– सद्गुरु
“शिव हर जगह हैं। यदि आप वहां हैं, तो आप इसे महसूस नहीं कर सकते। यदि आप नहीं हैं, तो यह सब कुछ है।"
– सद्गुरु
“लिंग के बिना शिव नहीं हैं। लिंग असीम शून्य का मार्ग है जिसे हम शिव कहते हैं।"
– सद्गुरु
“ध्यानलिंग, महाशिवरात्रि, और अन्य कई चीजें जो हम करते हैं, वे सिर्फ आदियोगी के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रयास हैं। उन के बिना, हम कुछ भी नहीं हैं।"
– सद्गुरु
“मैं शिव का भक्त नहीं हूं। वे मेरे 50% के पार्टनर हैं । वे सोते हैं, मैं काम करता हूं।"
” – सद्गुरु
“जिसे हम शिव कहते हैं, वह अस्तित्व का गैर-भौतिक आयाम है, जो वास्तव में ब्रह्मांड का सबसे बड़ा आयाम है।"
” – सद्गुरु
“शिव का महत्व यह है: जब उन्होंने सबसे पहले उस आयाम को सिखाया, जिसे हम योग कहते हैं, तो वे मानव जीवन में सृजन के साथ मिलन की संभावना ले आए ।"
– सद्गुरु
“हम आदियोगी को शिव कहते हैं, क्योंकि उन्होंने उस आयाम को जाना है जिसे हम शिव या "जो नहीं है" कहते हैं। 'जो नहीं है’ और जो इस बात को जानता है, दोनों के बीच कोई अंतर नहीं है।"
– सद्गुरु
“मानव चेतना के लिए आदियोगी का काम सबसे बड़ा योगदान है। हम चाहते हैं कि उनका काम लोगों के दिलों, दिमागों और शरीरों में रहे। हम इस विज्ञान को एक जीवित शक्ति के रूप में मानवता के लिए लाना चाहते हैं।"
– सद्गुरु
“काशी - शिव का पहला रूप जो प्रकाश की एक मीनार के रूप में स्थापित किया गया था।"
– सद्गुरु
"शिव ऐसे लोगों को पसंद करते हैं जिनमें किसी चीज़ की ओर झुकाव न हो बल्कि जो प्रज्जवलित हों ।"
– सद्गुरु
"असीम शून्यता जो अस्तित्व का आधार है, उसे हम शिव कहते हैं।"
– सद्गुरु
“हमने यह नहीं कहा कि शिव दिव्य हैं। हमने नहीं कहा कि शिव भगवान हैं। हमने कहा कि शिव ‘वह है, जो नहीं है’।"
– सद्गुरु
"शिव का अर्थ है ‘वह जो नहीं है’। यही वह विशाल शून्य की गोद है जिसमें से सृजन हुआ है।"
– सद्गुरु
“आदियोगी एक योगी हैं, लेकिन हम उन्हें शिव कहते हैं क्योंकि वह एक असीम संभावना हैं। वह असीमता का बीज हैं। ”
– सद्गुरु
“सब कुछ, कुछ नहीं से आता है और वापस कुछ नहीं में चला जाता है। यह ‘कुछ नहीं’ ही है, जो समस्त सृष्टि का स्रोत है, और जिसे शिव कहा जाता हैं।”
– सद्गुरु
“वह सब जिसे आप सृष्टि कहते हैं, वह ‘कुछ नहीं’ से आती है, और ‘कुछ नहीं’ में वापस लौट जाती है। यह ‘कुछ नहीं’, जो सृजन का स्रोत है, उसे ही हम शिव कहते हैं। ”
– सद्गुरु
“शिव अर्धनारी हैं - इसका मतलब है कि वह आधी स्त्री हैं, आधे पुरुष हैं। स्त्रैण आयाम के बिना, वह योगी नहीं हो सकते।"
– सद्गुरु