मन और रचनात्मकता

रचनात्मकता की कुंजी और क्यों यह सिर्फ विचार नहीं है - सद्‌गुरु 

रचनात्मकता के बारे में आपको जो बताया गया है, उसे भूल जाइए। सद्‌गुरु बताते हैं कि ईनोवेशन यानी नवाचार का वास्तविक स्रोत कुछ नया बनाने के बारे में नहीं है, बल्कि कुछ दूसरा है जो कहीं अधिक मौलिक है। यह लेख बताता है कि कैसे आपकी दृष्टि में एक बदलाव आपकी रचनात्मक प्रक्रिया को बदल सकता है।

प्रश्नकर्ता: रचनात्मक पेशों में हमें लगातार नई चीजें सोचनी पड़ती हैं, और यह मुझे हमेशा सोचने पर मजबूर करता है कि रचनात्मकता वास्तव में कहाँ से आती है? क्या यह हमसे आती है, या इसमें और भी कुछ है? और जब हम इसका लाभ उठाने की कोशिश करते हैं, तो हम इसे कैसे पाएँ?

रचनात्मकता और अवलोकन

सद्‌गुरु: जो मैं कहने जा रहा हूँ वह थोड़ा चौंकाने वाला हो सकता है: दरअसल रचनात्मकता जैसी कोई चीज़ नहीं होती। इंसान ने जो कुछ भी किया है, वह बस पहले से मौजूद चीज़ों की नकल और संशोधन है। आप कैसी भी मशीन बनाएं, सबसे बेहतरीन यांत्रिकी (मैकेनिक्स) हमारे शरीर के भीतर पहले से मौजूद है। सबसे जटिल विद्युत और रासायनिक प्रणालियां भी हमारे शरीर में मौजूद हैं।

अगर आप कला के संदर्भ में रचनात्मकता को देखें, तो उदाहरण के लिए, इंसान जो कुछ भी करता है वह प्रकृति की एक छोटी सी नकल है। अगर इस प्रक्रिया को ‘नकल’ कहना आपको नकारात्मक लगता है, तो आप इसे रचनात्मकता कह सकते हैं।

इंसान ने जो कुछ भी किया है, वह बस पहले से मौजूद चीजों की नकल और संशोधन है।

किसी भी क्षेत्र में रचनात्मक होने के लिए, आपको अवलोकन करना होगा यानी चीजों को गौर से देखना होगा। सबसे गहन अवलोकन, आपके द्वारा किए जाने वाले हर काम में संभावनाओं की एक विशाल दृष्टि लाता है। यदि आप अपने कार्यों और परिवेश के हर विवरण को देखने की क्षमता विकसित करते हैं, तो आप अपने हर काम में बहुत अधिक रचनात्मक हो सकते हैं।

रचनात्मक होने का मतलब जरूरी नहीं कि कुछ शानदार आविष्कार किया जाए। फर्श की सफाई जैसे सामान्य लगने वाले काम में भी आप रचनात्मक हो सकते हैं। हर साधारण काम में आप रचनात्मक हो सकते हैं अगर आप अपने भीतर और आसपास घटित हो रही हर चीज पर ध्यान दें।

अगर आप वास्तव में देखें कि आपके भीतर सभी स्तरों पर क्या हो रहा है, तो आप बेहद रचनात्मक होंगे। इसी तरह, अगर आप लगातार गौर करेंगे कि आपके आसपास क्या हो रहा है, तो आप देखेंगे कि चीजों को करने का हमेशा एक और, अधिक नवीन तरीका होता है।

मन और स्पष्टता

रचनात्मकता को जगाने के लिए, आपको मन में विशेष स्तर की स्पष्टता विकसित करनी होगी। अगर आप हर समय जीवन का बोझ अपने साथ लेकर चलते हैं, तो आप किसी चीज को वैसा नहीं देख सकते जैसी वह है।

योग में, हम मन को एक दर्पण के रूप में देखते हैं। दर्पण तभी उपयोगी होता है जब वह साफ और समतल हो। अगर वह लहरदार है या उस पर कुछ जमा हो गया है, तो वह आपको चीजों को वैसा नहीं दिखाता जैसी वे हैं। दर्पण की प्रकृति ऐसी है कि जब आप उसके सामने खड़े होते हैं, तो वह आपको पूरी भव्यता के साथ प्रतिबिंबित करता है।

अगर आप सामने से हट जाते हैं, तो दर्पण आपका कोई अवशेष नहीं रखता। जब अगला व्यक्ति आकर दर्पण के सामने खड़ा होता है, तो वह उस व्यक्ति को उसकी पूरी भव्यता के साथ प्रतिबिंबित करता है। अगर एक ही दर्पण में लाखों लोग अपने आप को देखें, तो भी वे अपनी विशेषताओं का एक कण भी उसमें नहीं छोड़ सकते।

अगर आप अपने मन को ऐसा रख सकते हैं – जहाँ जीवन का अनुभव और जीवन के साथ आपका संपर्क आपके मन पर कोई अवशेष नहीं छोड़े - तब आप चीजों को बिल्कुल वैसा ही देख पाएँगे जैसी वे हैं। तब आपके जीवन के हर पहलू में नवाचार और रचना के लिए जगह होती है।

मेरे अपने जीवन में, मुझे लोग एक गुरु के रूप में देखते हैं, लेकिन लोग मेरे पास हर तरह की चीजों के लिए आते हैं। इमारत कैसे बनाएं, फूल कैसे सजाएं, कपड़े कैसे डिजाइन करें, बगीचा कैसे लगाएं, या वे किसी भी दूसरी चीज के बारे में मार्गदर्शन चाह सकते हैं। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मुझे इन सब चीजों के बारे में बहुत ज्ञान है। ऐसा सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि जब मैं किसी चीज को देखता हूँ, तो मैं उसे साफ़-साफ़ वैसा ही देखता हूँ, जैसी वह है।

भागीदारी और कार्यप्रणाली

जब आप हर चीज को वैसी देखते हैं जैसी वह है, तो यह सरल और स्पष्ट हो जाता है कि आप इसे किस तरह से होना देखना चाहते हैं। यह एक खास स्तर की भागीदारी से आता है जो आप विकसित करते हैं। जब आप किसी चीज को महत्वपूर्ण या गैर-महत्वपूर्ण, पसंद या नापसंद, या अपना और दूसरों का नहीं कहते, तब आप हर चीज को वैसी देखेंगे जैसी वह है।

जब आप चीजों को इस तरह देखते हैं, तो कुछ भी बनाना आसान हो जाता है क्योंकि तब सवाल सिर्फ यह रह जाता है कि क्या सामग्री उपलब्ध है और उसे कैसे जोड़ा जाए।

जब आप हर चीज को वैसी देखते हैं जैसी वह है, तो यह सरल और स्पष्ट हो जाता है कि आप इसे किस तरह से होना देखना चाहते हैं।

कुछ लोग मेरे पास अपने शहर में एक पुल बनाने के लिए भी आए। जैसे ही उन्होंने मुझसे इसके बारे में पूछा, मेरे आसपास के लोगों ने सवाल किया, ‘यह क्या है, सद्‌गुरु? वे पुल बनाने के लिए पूछ रहे हैं?’ मैंने कहा, ‘हाँ, हम पुल बनाने जा रहे हैं।’ मैंने तुरंत स्वीकार कर लिया।

मैं कोई योग्य इंजीनियर नहीं हूँ, ऐसे कई आर्किटेक्ट हैं जो पुल डिजाइन कर सकते हैं। लेकिन ये लोग मेरे पास इस प्रोजेक्ट के लिए सिर्फ इसलिए आए क्योंकि उन्होंने मेरे आसपास बनाई गई साधारण चीजों में कुछ नयापन देखा।

मैंने आश्रम और दूसरी जगहों पर जो कुछ भी बनाया है, उस पर ज्यादा समय नहीं लगाया है। मैंने इसके बारे में सीखने में कोई समय नहीं लगाया, और न ही मैं अपने मन में विचार को साकार करने में ज्यादा समय लगाता हूँ। अगर आप इसे एक पल के लिए भी साफ देख लें, तो वह वहीं है।

पूरी तरह जीना

यह किसी आध्यात्मिक उपहार या प्रतिभा रखने के बारे में नहीं है। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि लोगों ने अपने मन को पसंद और नापसंद से, अपने और पराए से, महत्वपूर्ण और मामूली जैसे विभेदकारी भाव से धुंधला कर लिया है। एक बार जब ऐसा हो जाता है फिर आप किसी भी वैसी चीज में शामिल नहीं होते, जिसे आप महत्वपूर्ण नहीं मानते या अपना नहीं मानते। बिना भागीदारी के कुछ भी अच्छी तरह कार्य नहीं करता।

जब आप किसी भी समय अपने सामने आने वाली हर चीज से गहराई से जुड़े होते हैं, तो आप हर चीज को स्पष्ट रूप से देखेंगे, जैसा उसे देखा जाना चाहिए।

सबसे बढ़कर, अगर आपका मन स्पष्टता के एक खास स्तर पर नहीं है और हर चीज से जुड़ा नहीं है, तो आप अच्छी तरह से कार्य नहीं कर पाएँगे – और जीवन भी आपको छोड़कर आगे निकल जाएगा। आप इस दुनिया में इसे वास्तव में जाने बिना और अनुभव किए बिना जिएँगे।