‘ज्यादा, ज्यादा, ज्यादा’ का आधुनिक मंत्र अक्सर एक संतुष्ट जीवन की आंतरिक चाह से टकराता है। सद्गुरु इस तनाव को एक ऐसी खींचतान के रूप में समझा रहे हैं जो भौतिक चीजों के संग्रह और अपने भीतर एक गहन अर्थ की चाह के बीच है। वे कहते हैं कि जब पैसे को ही लक्ष्य मानकर हम उसके पीछे भागेंगे, तो हमारे भीतर एक बड़े खालीपन का खतरा बना रहेगा।
प्रश्नकर्ता: मैं बस यह जानना चाहता हूँ कि कितना धन पर्याप्त है? मेरे पास अपनी बाकी की जिंदगी के लिए पर्याप्त पैसा है। क्या मुझे अपना समय, खुशी, शौक और स्वास्थ्य कुर्बान करके, और ज़्यादा पैसे के लिए मेहनत करते रहना चाहिए? क्या मुझे और ज़्यादा पैसा कमाते रहना चाहिए, या यह काफी है?
सद्गुरु: हालांकि आजकल यह एक आम विचार है, पैसा व्यापार का लक्ष्य नहीं है। पैसा कोई वस्तु नहीं है, यह एक मुद्रा है। आपको कभी भी पैसा जमा करने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। आपको कई चीजों की सुविधाओं के लिए पैसे की जरूरत होती है। पैसे के बिना कोई सशक्तिकरण नहीं है। चाहे आप व्यापार कर रहे हों, या हम योग केंद्र चला रहे हों, हम इसे पैसे के बिना नहीं चला सकते।
बहुत सारे मूर्ख लोग कहते हैं, ‘वे इतना पैसा ले रहे हैं।’ बिना पैसे के हमें आपको एक पेड़ के नीचे बैठाना पड़ता, ख़राब खाना देना पड़ता और फिर हम वही अभ्यास सिखाते। तब क्या वह आपके लिए काम करता? आप एक अच्छी जगह पर बैठना चाहते हैं और अच्छा भोजन खाना चाहते हैं - इन सब में पैसा लगता है। हर काम के लिए पैसा सुविधा दिलाने वाला है। यह अपने आप में कोई लक्ष्य नहीं है।
अच्छी तरह जीने के लिए, आपको एक खास राशि की जरूरत है। तय कीजिए कि आपके लिए किस तरह की जीवनशैली अच्छी होगी, और जो आप करना चाहते हैं उसके लिए सुविधाएँ जुटाएँ। गरीबी आपको उलझा देती है। अगर आपको इस बात की चिंता करनी पड़ती है कि अगला खाना कहां से मिलेगा, तो निश्चित रूप से आप जीवन में बहुत कुछ नहीं कर सकते। तब आप केवल जीवन यापन पर ही ध्यान दे पाएँगे।
अगर आप बहुत ज्यादा पैसा कमाते हैं, तो वह भी एक बोझ बन सकता है। आपको अपने विचारों को साकार करने के लिए पैसे की जरूरत है। मेरा आशीर्वाद है कि कुछ करने के लिए जितने पैसे की जरूरत है, आपके पास उतना हो। उन लोगों की तरह मत बनिए जिनके घर में फर्श से छत तक नकदी जमा है।
सिर्फ पैसे को लक्ष्य बनाना एक अपराध है, क्योंकि इसका मतलब है कि आप किसी तरह दुनिया को लूट रहे हैं, कानूनी या गैरकानूनी तरीकों से। अपने जीवन के बारे में इस तरह से मत सोचिए और इसे कुरूप मत बनाइए। बस देखिए कि आप क्या बनाना चाहते हैं।
उसे बनाने के लिए, आपको एक खास स्तर का व्यक्तिगत आराम और सहजता की जरूरत है। आपको एक घर, आराम, भोजन चाहिए - इसके लिए आपको जो चीज भी चाहिए, गणना कीजिए कि आपको उसके लिए कितने पैसे की जरूरत है।
एक बार वह धनराशि तय हो जाए, तो उसके बारे में सोचें भी नहीं क्योंकि मूल रूप से, आपके जीवन के केवल दो पहलू हैं। जब आप यहाँ बैठते हैं, तो जीवन का आपका अनुभव कितना गहन है? जब आप कोई कार्य करते हैं, तो वे कितनी प्रभावशाली हैं?
जीवन बस इतना ही है - अनुभव की गहराई और आपके कार्यों का प्रभाव। अनुभव की गहराई के लिए, आपको पैसे की जरूरत नहीं है। कार्यों के प्रभाव के लिए, हमें पैसे की जरूरत है।
दुनिया में बहुत कुछ करने के लिए अगर पैसा आपके लिए एक सशक्त करने वाली शक्ति है, तो आप जो चाहेंगे वो सब आपको मिलेगा। लेकिन अगर आप पैसे को लक्ष्य मानते हैं और एक निश्चित राशि जुटाने के लिए स्वयं को बीमार बनाते हुए अपना जीवन बिताते हैं, तो यह जीवन की बर्बादी है। सबसे बढ़कर, यह एक अपराध है।
एक अपराधी भी यही सोचता है – ‘किसी तरह, मैं इतना पैसा पाना चाहता हूं।’ कैसे? आप सोचते हैं कि आपको नियमों का पालन करना चाहिए, क्योंकि आप उन्हें तोड़ने के परिणामों को जानते हैं। एक अपराधी में नियमों से बाहर जाने का साहस है, बस इतना ही अंतर है। लेकिन दोनों ही मामले में पैसा एक लक्ष्य है। अपना जीवन ऐसा मत बनाइए।
वह क्या है जिसका आप निर्माण करना चाहते हैं? उसे बनाने के लिए, अगर आप अपना जीवन, अपनी ऊर्जा, और अपनी चेतना उसमें लगाते हैं, तो जो जरूरी है वह आएगा। या फिर आपको वह जुटाना होगा जो आपको चाहिए, ताकि आप जो चाहते हैं उसे बनाने के लिए सक्षम हों। एक घर बनाने के लिए आपको ईंटों की जरूरत होती है, और इसी तरह अगर आप दुनिया में कुछ करना चाहते हैं तो आपको पैसे की जरूरत होती है।
कभी भी पैसे को अपने जीवन का लक्ष्य मत बनाइए, यह सिर्फ एक मुद्रा है। पैसा आते-जाते रहना चाहिए, जमा नहीं होना चाहिए। अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना ठीक है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि पैसा एक मुद्रा है जो आपको वह करने के लिए सशक्त बनाती है जो आप करना चाहते हैं, यह अपने आप में कोई लक्ष्य नहीं है।