ईरम: सद्‌गुरु, क्या हम भी उन विभिन्न अवस्थाओं को अनुभव कर सकते हैं जिन्हें ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया में शामिल उन दो लोगों ने किया था? क्या यह सबके लिए संभव है?

सद्‌गुरु: हमने प्राण-प्रतिष्ठा के लिए सिर्फ दो लोगों को चुना। अगर इसे सौ लोगों को लेकर किया जा सके, फिर तो हम पूरी दुनिया को प्रकाशित कर सकते हैं! लेकिन इसके लिए आदर्श लोगों को तैयार करना एक चुनौती है। लोग बहुत नजदीक तक आते हैं, लेकिन आखिरी पल में हार मान लेते हैं। बिलकुल दहलीज पर आकर वे पीछे हट जाते हैं। अधिकतर लोगों के साथ मैंने यही देखा है।

गौतम और शिव को धरती पर उतारा जा सकता है

जब लोग इतने परिपक्व हो जाएं कि पसंद और नापसंद, अच्छे और बुरे से ऊपर उठ जाएं, तब जो भी करने की जरूरत है, आप उनसे सीधे कह सकते हैं और वे उसे अपने मन में बिना कोई विचार लाए कर सकते हैं। तब हम एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकते हैं जहां सौ लोग एक साथ बैठकर परम शक्ति को धरती पर उतार सकते हैं। आपको गौतम बुद्ध चाहिएं, हम कल उन्हें यहां ला सकते हैं। इसे किया जा सकता है। यह हमारी पहुंच के अंदर है। केवल गौतम बुद्ध ही नहीं, आप शिव को भी यहां उतार सकते हैं। अगर आप इस तरह की एक स्थिति पैदा कर सकें, तो यही दुनिया के लिए सर्वोत्तम चीज होगी।

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जब लोग इतने परिपक्व हो जाएं कि पसंद और नापसंद, अच्छे और बुरे से ऊपर उठ जाएं, तब जो भी करने की जरूरत है, आप उनसे सीधे कह सकते हैं और वे उसे अपने मन में बिना कोई विचार लाए कर सकते हैं। तब हम एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकते हैं जहां सौ लोग एक साथ बैठकर परम शक्ति को धरती पर उतार सकते हैं।
किसी दिन ऐसा होना चाहिए कि सैकड़ों लोग आपस में विलय करने के लिए पूर्ण स्वीकृति की अवस्था में आ जाएं, ताकि वे तर्क से परे के अनुभवों से गुजर सकें, जहां सब कुछ एक हो जाए। जैसे कि आपका दिल किसी और के शरीर में है, और आपका दिमाग किसी और के सिर में है। ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया के दौरान इस तरह की चीजें होने लगीं थीं, जहां एक इंसान के शरीर की गंध दूसरे इंसान के शरीर से और दूसरे इंसान के शरीर की गंध पहले इंसान के शरीर से आने लगी थी। इस इंसान के विचार उस इंसान के दिमाग में चले गए थे, और उस इंसान का अतीत इस इंसान के दिमाग में आ चुका था। किसी एक के बचपन की कुछ घटनाओं की जानकारी अब दूसरे को थी, जिसके बारे में उन दोनों ने कभी बात भी नहीं की थी।

 

 

पूर्ण समर्पण और स्वीकृति की स्तिथि

इसे अनुभव करने के लिए लोगों को परिपक्व होना होगा। लोगों के अंदर विरोध के कई स्तर, मन में योजनाओं की कई परतें होतीं हैं। अगर सभी योजनाएं गिरा दी जाएं, अगर लोग बस सहज हो जाएं, तो चीजों को बड़ी आसानी से किया जा सकता है। लोगों को ख़ुद को समर्पण और स्वीकृति के उस स्तर तक लाना होगा, जहां पर उन्हें जो भी कहा जाता है वे उसे बस यूं ही कर दें, चाहे वह सबसे कठिन चीज ही क्यों न हो। जब लोगों को इस स्तर तक लाया जा सकता है, तब हम उन्हें पूरी तरह से एक साथ विसर्जित कर सकते हैं, लेकिन अभी हमारा इरादा लोगों को बस यूं ही मुक्त करना नहीं है। हम चाहते हैं कि वे इस ऊर्जा का इस्तेमाल करें, ताकि वे इसे लोगों के एक बड़े समुदाय तक पहुंचा सकें।

ध्यानलिंग प्रतिष्ठा से कुछ साल पहले, वे लोग जो मेरे साथ रहे हैं, यह जानते हैं कि मेरा भौतिक अस्तित्व हमेशा से संघर्षपूर्ण रहा है। एक दिन मैं स्वस्थ रहता था, दूसरे दिन मैं टूट जाता था।

ईरम: आपने यह घोषणा की थी कि ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा के बाद, आप बयालीस साल की उम्र में अपना शरीर छोड़ देंगे, लेकिन सौभाग्य से आप अभी भी हमारे बीच मौजूद हैं। यह चमत्कार कैसे हुआ?

सद्‌गुरु: ध्यानलिंग प्रतिष्ठा से कुछ साल पहले, वे लोग जो मेरे साथ रहे हैं, यह जानते हैं कि मेरा भौतिक अस्तित्व हमेशा से संघर्षपूर्ण रहा है। एक दिन मैं स्वस्थ रहता था, दूसरे दिन मैं टूट जाता था। यह उतार-चढ़ाव ऐसे ही चल रहा था। शरीर में कायम रहना एक संघर्ष बन गया था। प्रक्रिया शुरू करने से लगभग सात साल पहले मैंने यह घोषणा की थी कि बयालीस साल की उम्र में इस शरीर को कायम रखना एक बड़ी चुनौती होगी। जिस तरह से यह चल रहा था, मैं उसके आगे ज्यादा नहीं टिक सकता था, लेकिन ध्यानलिंग प्रक्रिया शुरू करने के आठ महीने बाद, प्रक्रिया में शामिल दूसरे दो लोगों का इस्तेमाल करके मैंने अपने भौतिक शरीर को कई तरह से स्थिर कर लिया। हमने एक ऐसा भौतिक शरीर हासिल कर लिया जो कायम रह सके।

 

 

जीवन को अपने साथ खेलने का मौका न दें

यह किसी के जीवन को बचाने के लिए की गई कोशिश नहीं थी। इसका मकसद था - जीवन को उस चरम सीमा तक ले जाना, जहां इंसान अपने जीवन का पुनर्निर्माण कर सकता है, जहां अगर वह चाहे तो अपने जन्म स्थान को, उस गर्भ को जिससे वह पैदा होना चाहता है, चुन सकता है। किसी इंसान के लिए जीवन और मृत्यु की बुनियादी प्रक्रिया को ख़ुद अपने हाथ में लेना किस तरह से संभव है, मेरी समझ से इसे समाज में दिखाकर स्पष्ट करने की जरूरत है। एक इंसान के अंदर क्या संभावनाएं हैं, लोगों ने इसकी पूरी समझ खो दी है। आजकल हम यह देखते हैं कि समाज का एक बड़ा हिस्सा बेवकूफी भरे चमत्कारों ‐ जैसे कहीं से सोना या कोई ऐसी ही चीज पैदा कर देना - के पीछे भाग रहा है। यह सिर्फ आपके डर, लालच व पीड़ा को गहरा करेगा। दुर्भाग्य से, आप इन चीजों को चमत्कार कहते हैं। सबसे बड़ा चमत्कार है - जीवन के साथ खेलना, बिना जीवन को मौका दिए कि वह आपके साथ खेले। अगर कोई जीवन से बिना प्रभावित हुए अछूता गुजर सकता है, तो यह सबसे महान चमत्कार है। यह चमत्कार हर इंसान अपने जीवन में कर सकता है।