गुरु नैतिकता नहीं आध्यात्मिकता सिखाता है
एक गुरु का काम आपको नैतिक बनाना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बनाना है। दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि एक आप पर जबरदस्ती थोपी जाती है, जबकि दूसरी आपके अंदर कुदरती तौर पर खिलती है।
भवेश: सद्गुरु, आप एक गुरु के रूप में हमारे जीवन में क्या भूमिका निभाने जा रहे हैं?
सद्गुरु: गुरु की भूमिका जानने से पहले गुरु का मतलब समझना जरूरी है। गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है, जिसमें ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का मतलब है दूर करने वाला। यानी गुरु का मतलब हुआ अंधकार को दूर करने वाला। सवाल यह है कि अंधकार को दूर कैसे किया जाए? आप किसी जगह से अंधकार को बाहर नहीं निकाल सकते, क्योंकि अंधकार का अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं होता। प्रकाश का न होना ही अंधकार है। हम लोग प्रकाश को महत्व इसलिए देते हैं, क्योंकि यह स्पष्टता लाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जीवन के किस मोड़ पर हैं और किस तरह की परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आपके अंदर उन चीजों के बारे में स्पष्टता होनी चाहिए, जो आपके सामने हैं। हर चीज जैसी है, उसे वैसे ही देखना, यही स्पष्टता है। चाहे कोई भौतिक वस्तु हो या फिर कोई दिव्य पहलू, आप समझदारीपूर्वक किसी हालात का सामना तभी कर सकते हैं, जब आपके भीतर चीजों को वैसी ही देख पाने की क्षमता हो, जैसी वे हैं। अगर कोई आपसे कहता है कि ‘आप न शरीर हैं, न ही मन हैं’ तो आपका दिमाग इस बात को मान तो लेगा, लेकिन आपके अनुभव में यह आपके लिए सच नहीं होगा। आपको अब भी यही महसूस होगा कि ‘यह मैं हूं, यह तुम हो।’ दरअसल, आपमें अनुभव के स्तर पर स्पष्टता का होना जरूरी है।
अगर मैं एक नैतिक शिक्षक होता तो मैं आपको बदलने की कोशिश करता। चूंकि मैं एक गुरु हूं, इसलिए मैं आपको बदलने की कोशिश नहीं करूंगा। मैं आपसे अच्छा बनने के लिए, शांत होने के लिए, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने के लिए नहीं कहूंगा, क्योंकि मेरा मकसद आपको इस तरह से बदलना नहीं है।
मेरा काम और मेरा मकसद आपमें स्पष्टता लाना है। अगर आप चीजों को स्पष्टता से देख सकते हैं, अगर आप जान पाते हैं कि यह पूरा ब्रह्मांड एक है और यह बात आप किसी के कहने से नहीं मानते, बल्कि आप खुद ऐसा देखते हैं, तो सारी चीजें बदल जाएंगी। आप इस सृष्टि को अगर अपने विचारों के आधार पर देखने के बजाय उसके वास्तविक रूप में देखते हैं, तो आपसे जुड़ी व सृष्टि के साथ आपके रिश्ते से जुड़ी हर चीज बदल जाएगी।
बुनियादी तौर पर एक गुरु का काम आपको नैतिक बनाना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बनाना है। दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि एक आप पर जबरदस्ती थोपी जाती है, जबकि दूसरी आपके अंदर कुदरती तौर पर खिलती है। अगर मानव अपनी परम प्रकृति तक पहुंचने में सफल हो गया तो वह स्वाभाविक रूप से सृष्टि का स्रोत बन जाएगा, क्योंकि उसके भीतर मूल बीज वही है। आपने खुद को नहीं रचा है, सृष्टि का स्रोत आपके भीतर काम कर रहा है। अगर आप अपने भीतर के बीज की प्रकृति को समझते हैं, तो आप जिंदगी को अपनी इच्छानुसार बना सकते हैं। जिंदगी को अपनी इच्छानुसार बनाने से मतलब यह नहीं है कि एक खास तरह का घर बनाना, खास तरह का करियर बनाना, या फिर ढेर सारा पैसा कमाना। इसका मतलब है कि जिंदगी अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में काम करे, और ऐसा तभी होगा जब उसे सृष्टिकर्ता की मर्जी के अनुसार चलाया जाए। अगर आप अपने मूल स्वभाव, जिसे हम बीज कहते हैं, की ओर लौटें और अगर अपने भीतर मौजूद उस बीज के प्रति सजग हो जाएं, तो आप अंकुरित हो सकते हैं, आप पौधा बन सकते हैं, एक विशाल पेड़ हो सकते हैं, आप जो चाहे बन सकते हैं।
अब सवाल है कि एक गुरु के तौर पर मैं क्या भूमिका निभाउंगा? मैं उसी हद तक सक्रिय भूमिका निभा पाउंगा जिस हद तक आप खुद को खोलने की कोशिश करेंगे। अगर आप मुझे इजाजत दें, तो मैं आपके लिए यह भी तय करुंगा कि आपको नाश्ते में क्या खाना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं आकर आपको बताउंगा कि आप इडली खाइए या डोसा। यह सब किसी तरह से थोपा नहीं जाएगा, बल्कि यह आपके अंदर स्वाभाविक पसंद के रूप में विकसित होगा।
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