दूसरों से तुलना करने की आदत क्यों पड़ जाती है?
जीवन में कोई भी लक्ष्य निर्धारित करने से पहले अक्सर हम आस-पास के लोगों को देखते हैं। दूसरों को देख कर, उनके जीवन की तुलना अपने जीवन से करना, आदत ही बन जाती है। क्यों होता है ऐसा?
माता पिता को यही तरीका पता था
इस समाज में आप किस तरह पलकर बड़े हुए? माता-पिता, शिक्षक, बंधु-मित्र इन सभी ने आपकी भलाई करने की नीयत से क्या किया था?
वे लोग आसपास के किसी व्यक्ति से तुलना करते हुए आपकी क्षमता को हमेशा कम ही आँका करते थे, क्यों?
उन्होंने यही सोचा होगा कि यदि आप खुद अपने को किसी और से कमतर महसूस करेंगे तभी आपके अंदर वह प्रेरक शक्ति पैदा होगी जो आपको कामयाबी की ओर भगाए ले चलेगी।
आपकी योग्यताओं और क्षमताओं को उजागर करने के लिए वे इससे अलग कोई मार्ग नहीं जानते थे।
एक समय के बाद उन लोगों ने यों तुलना करना छोड़ दिया लेकिन दूसरों से तुलना करते हुए स्वयं अपने को खदेड़ते रहने की आदत से आपको निजात नहीं मिली। इस कारण आप उसी में फँस गए हैं।
एक बार शंकरन पिल्लै अपनी पत्नी से बुरी तरह लड़ पड़े। आखिर गुस्से में घर से निकल गए।
तीन दिन तक इधर-उधर भटकते रहे। चौथे दिन सुबह एक होटल में घुस गए और बैरे को बुलाया।
पिल्लै ने उसे आर्डर दिया, ‘‘पत्थर जैसी कड़ी ठंडी इडली, स्वादहीन फीका सांबर, पानीदार दूध में कल वाला डिकाक्शन मिलाकर ठंडी कॉफी... ले आओ।’’
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बैरा चकित रह गया, ‘यह भी कोई आर्डर है!’
शंकरन पिल्लै ने सफाई दी, ‘‘दोस्त, मैं भूख मिटाने के लिए यहाँ नहीं आया हूँ। मुझे घर की याद आ गई, इसलिए...’’ ।
इसी तरह आप भी पुरानी आदतों को आसानी से छोडऩे में असमर्थ होकर परेशान रहते हैं।
दूसरे को देख कर निर्धारित करते हैं लक्ष्य
दूसरे किसी व्यक्ति को श्रेष्ठ समझकर आप उसी को अपना लक्ष्य बना लेते हैं। फिर स्वयं को चुनौती देते हैं। उसके बाद लक्ष्य को पाने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं।
अपने आदर्श-पुरुष से भी ऊँचा पद पाने के लिए संघर्ष करते-करते मंजिल तक पहुँच भी जाते हैं। तब तक दूसरा कोई उससे भी आगे की मंजिल में आपकी खिल्ली उड़ाता-सा खड़ा मिलता है। तब आप अगला चाबुक हाथ में ले लेते हैं।
पता है, यह कैसा है?
एक इलास्टिक पट्टी को दोनों ओर से खींचकर पकड़ेंगे तो तनाव में आकर उसके दोनों सिरे एक दूसरे से मिलने के लिए तड़पेंगे। हाथ हटाते ही इलास्टिक पट्टी के दोनों सिरे आपस में टकराएँगे।
फिर?
दोनों सिरे निष्क्रिय होकर पड़े रहेंगे। फिर से उन्हें खींचो तभी सक्रियता आएगी।
इस तरह बाहरी शक्ति से प्रेरित होकर आप लक्ष्य-स्थान पर पहुँच भी जाएँ, तब भी आगे का गंतव्य जाने बिना वहीं पर निश्चेष्ट खड़े रहेंगे। आगे के लक्ष्य को दिखाकर कोई आपको उकसाए तभी आप फिर से सक्रिय होंगे।
खींच-खींच कर काम में लगाया गया इलास्टिक आखिर कितने दिन तक टिक पाएगा? एक मुकाम पर आकर वह एकदम ढीला हो जाता है और अपने स्वभाव को खो देता है। उसके बाद हल्के से खींचते ही झट से फट जाता है।
जो लोग संकल्प के दृढ नहीं होते, तनाव बेतहाशा बढऩे की वजह से लक्ष्य पर पहुँचने के बजाए अस्पताल के बिस्तर में जा गिरते हैं।
जीवन भर आप क्यों दूसरों द्वारा संचालित होना चाहते हैं?
अपनी क्षमताओं को बढ़ाना होगा
अगर आप पहाड़ पर चढऩा चाहते हैं तो अपने अंदर पर्वतारोहण की कला सीखने की इच्छा पालिए और अपने पैरों में खूब शक्ति संचित कीजिए। ऐसा करना छोड़ कर दूसरों को मिसाल बनाते हुए मन को खदेडऩा मात्र काफी होगा?
शांतिपूर्वक या सचेतन काम करना आपकी इच्छा के सामने खड़ा किया जाने वाला गतिरोध नहीं है; आपके विकास के खिलाफ डाला गया प्रतिरोध भी नहीं है। यह ऐसी ताकत है जो आपको मुक्त करके मनचाही दिशा में स्वतंत्र रूप से काम करने की इजाजत देती है।
आनंद में रहना ही मूल प्रकृति है
इस बात को कतई न भूलें कि आनंद में रहना ही आपकी मूलभूत प्रकृति है। किसी से उकसाने पर भी विचलित हुए बिना शांति से रहिए। जिस काम को आपने चुन लिया है, निष्ठा और जागरूकता के साथ उसमें लगे रहिए।
तभी आप पहचान पाएँगे उस आंतरिक शक्ति को जो आपको विकास की ओर, उन्नति की ओर ले जाने की ताकत रखती है। केवल वही आंतरिक शक्ति आपकी प्रेरक शक्ति बने!
मुमकिन है, आप उस चोटी तक पहुँच न पाएँ जिसे पहले ही कोई और जीत चुका है। लेकिन आपके अंदर जितनी क्षमता है उसके मुताबिक ऊँचाई तक तो अवश्य पहुँच जाएंगे। यही आपको वास्तविक आनंद की तरफ ले जाएगा।