‘आनंद’ और ‘सुख’ – ये दो शब्द अक्सर एक दूसरे के पर्याय के रूप में इस्तेमाल कर लिए जाते हैं। लेकिन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। क्या अंतर है इनमें?
क्या आप स्वर्ग में हैं?
मिस्र की एक दंतकथा है। अगर कोई व्यक्ति स्वर्ग में प्रवेश पाना चाहता है तो स्वर्ग के प्रवेश द्वार पर उसे दो सवालों के जवाब देने होते हैं। अगर आपने इन दोनों सवालों के जवाब ‘हां’ में नहीं दिए तो आपको स्वर्ग में प्रवेश नहीं मिलता। इसमें पहला सवाल है - ‘क्या जीवन में आपने खुशी और आनंद का अनुभव किया है?’ और दूसरा सवाल है- ‘क्या आपने अपने आस पास के लोगों को खुशी बांटी है?’ इन दोनों ही सवालों के लिए आपका जवाब अगर ‘हां’ है तो मैं आपको यह बता दूं कि आप तो पहले से ही स्वर्ग में हैं।
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आनंद बाहर नहीं भीतर खोजना होगा
आप खुद के लिए और अपने आसपास के लोगों के लिए सबसे अच्छी चीज जो कर सकते हैं, वह है खुद को एक आनंदमय इंसान बनाना। खासकर आज के दौर में जब क्रोध, नफरत और असहनशीलता भयानक तौर से लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है, ऐसे में आनंदमय इंसान ही सबसे बड़ी राहत नजर आता है।
आप खुद के लिए और अपने आसपास के लोगों के लिए सबसे अच्छी चीज जो कर सकते हैं, वह है खुद को एक आनंदमय इंसान बनाना।
जो लोग आनंद मय होने का महत्व जानते हैं, वही हर तरफ आनंद का माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। सवाल यह है कि आनंद में कैसे रहें? पांच साल की उम्र में आप बगीचे में तितली के पीछे भागते थे, आपको याद होगा। तितली को छूते हुए उसके रंग आपके हाथ पर झिलमिलाते हुए चिपक जाते थे। उस समय आपको यही अनुभव होता था कि दुनिया में इससे बढ़कर और कोई आनंद है ही नहीं। बड़े होने की प्रक्रिया में आपने सभी सुख-सुविधाओं के साधन जमा कर लिए। लेकिन क्या हुआ? कहां गईं आपकी खुशियां? ऐसा इसलिए है कि आप सुख को ही खुशी समझ बैठे हैं, जबकि खुशी या आनंद आपको अपने भीतर खोजना है।
सुख किसी वस्तु या व्यक्ति पर निर्भर करता है
बड़े होकर आप अपना अतीत ढोने लगे। जब आप अपने अतीत का बोझ लेकर चलते हैं, तो आपका चेहरा लटक जाता है, खुशी गायब हो जाती है, उत्साह खत्म हो जाता है। मान लीजिए अगर आप पर किसी तरह कोई बोझ नहीं है तो आप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह होते हैं।
यह तो अपने भीतर गहराई में खोद कर ढूंढ निकालने की चीज़ है। यह प्यास बुझाने के लिए एक कुएं को खोदने जैसा है।
आप इतने साल के हैं या उतने साल के, इसका सीधा सा मतलब हुआ कि आप अपने साथ उतने सालों का कूड़ा ढो रहे होते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह आनंदित होते हैं। जरूरी यह है आप किसी भी तरह आनंद अनुभव करते हैं। अब सवाल है इसे कायम रखने का - इसे
कायम रखने के योग्य कैसे बनें? अधिकांश लोग सुख को ही आनंद समझ लेते हैं। आप कभी भी सुख को स्थायी नहीं बना सकते, ये आपके लिए हमेशा कम पड़ते हैं, किन्तु आनंदित होने का अर्थ है कि यह किसी भी चीज पर निर्भर नहीं है। सुख हमेशा किसी वस्तु या व्यक्ति पर निर्भर करता है।
आनंद का कूआं अपने भीतर खोदना होगा
आनन्द किसी पर निर्भर नहीं करता है, यह तो आपकी अपनी प्रकृति है। आनंद को असल में किसी बाहरी उत्तेजना की आवश्यकता नहीं होती।
जो लोग आनंद मय होने का महत्व जानते हैं, वही हर तरफ आनंद का माहौल बनाने की कोशिश करेंगे।
यह तो अपने भीतर गहराई में खोद कर ढूंढ निकालने की चीज़ है। यह प्यास बुझाने के लिए एक कुएं को खोदने जैसा है। जबकि बरसात में मुंह खोलकर अपनी प्यास बुझाना काफी निराशापूर्ण कोशिश होगी, क्योंकि बरसात हर वक्त नहीं होती रहती। इसलिए यह जरूरी है कि आप खुद का कुंआ खोदें, ताकि साल भर आपको पानी मिलता रहे।