हम शुरु से सुनते आ रहे हैं कि कभी आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए, लेकिन इसके विपरीत सद्गुरु कहते हैं कि मुक्ति चाहिए तो आशा छोड़नी होगी। जानते हैं कि कैसे निराशा मुक्ति की ओर ले जा सकती है
आशा से मुक्त होने की तकनीक
सद्गुरु: ज्यादातर प्रार्थनाएं आपके लिए एक उम्मीद लेकर आती हैं। वे अनासक्ति या विराग नहीं पैदा करतीं। प्रार्थनाओं को इसी तरह तैयार किया गया है।
योग की परंपरा में हमने हमेशा लोगों को निराशा की ओर उन्मुख किया, क्योंकि जब आशा नहीं होगी, तो आप चिपकना बंद कर देंगे। जब आप नहीं चिपकेंगे, तो आप आजाद हो जाएंगे, यह बहुत सरल सी तकनीक है।
उनमें बस आशा, आशा और आशा की बात है। लोग आशाहीनता का मूल्य समझने की क्षमता खो चुके हैं। आशाहीनता एक बिना पेंदी का गड्ढा है और बिना पेंदी के गड्ढे में कूदना सबसे सुरक्षित है। गड्ढे के साथ समस्या यही होती है कि उसकी एक पेंदी होती है। अगर उसमें पेंदी न हो, तो क्या समस्या होगी? फिर तो वह एक बढ़िया छलांग होगी। जब आप स्काईडाइविंग करते हैं, तो आपको पता नहीं होता कि आप ऊपर जा रहे हैं या नीचे या कहीं भी नहीं। बस जब आप नीचे देखते हैं, तो कमबख्त धरती तेजी से आपकी ओर आ रही होती है, फिर आपको पता चलता है। अगर धरती न होती, तो कूदना और बस तैरते रहना बहुत अद्भुत लगता। योग की परंपरा में हमने हमेशा लोगों को निराशा की ओर उन्मुख किया, क्योंकि जब आशा नहीं होगी, तो आप चिपकना बंद कर देंगे। जब आप नहीं चिपकेंगे, तो आप आजाद हो जाएंगे, यह बहुत सरल सी तकनीक है। कोई भी चीज अपने आप आपसे नहीं चिपकती। आप कई सारी चीजों से चिपके रहते हैं।
आशा का पाठ कुछ अधिक ही पढ़ा दिया गया है
अगर आप किसी चीज से नहीं चिपकते, तो स्वाभाविक रूप से कोई चीज आपसे नहीं चिपकेगी। अगर आप खुशी-खुशी निराशा की ओर जाने के लिए तैयार हैं, तो मुक्ति एक सहज प्रक्रिया होगी। मगर हमें आशा का पाठ कुछ अधिक ही पढ़ा दिया गया है। मैंने पहले ही प्रेम और करुणा के खिलाफ बोलते हुए दुनिया में काफी दुश्मन बना लिए हैं। अगर प्रेम और करुणा आपके लिए एक अनुभव है, तो वह अलग है, लेकिन जीवन के सिद्धांत के रूप में वह मूर्खतापूर्ण है। ‘मैं किसी से प्रेम करना चाहता हूं,’ यह एक मूर्खतापूर्ण चीज है। यह एक तरह की कमी से उभरती है। अगर आपकी भावनाएं अपने आस-पास हर किसी के प्रति मधुर हैं, तो यह अस्तित्व का एक बहुत बढ़िया तरीका है। आप इसे प्रेम कहें तो वह ठीक है, लेकिन अगर आप तुरंत इसे किए जाने वाली किसी वस्तु में बदल देते हैं, तो वह बदसूरत हो जाता है।
भगवान शिव ने भी निराशा जगाई थी
योगिक संस्कृति में हमेशा लोगों को निराशा, शून्यता की ओर ले जाने की कोशिश की जाती है।
अगर वह समझा देते कि ‘जब मैं सोता हूं, तो मैं हर चीज के साथ होता हूं, इसलिए मैं तुम्हारे पास पहुंच ही जाऊंगा,’ तो वे आशा पालने लगते। इसलिए वह समझाते नहीं। वह कहते हैं, ‘मैं सो जाऊंगा।’
यही वजह है कि जब शिव के करीबी
शिष्यों ने उनसे पूछा, ‘अगर हम परेशानी में हों, तो क्या आप हमें बचाएंगे?’, उन्होंने अविश्वास से उन्हें देखकर कहा, ‘अगर तुम परेशानी में होगे, तो मैं सो जाऊंगा।’ वह उनके अंदर निराशा को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने ऐसा नहीं कहा, ‘मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, चाहे तुम कहीं भी रहो, मैं वहां पहुंच कर तुम्हें बचाऊंगा।’ उन्होंने कहा, ‘अगर तुम परेशानी में हो तो मैं सो जाऊंगा।’ अगर वह समझा देते कि ‘जब मैं सोता हूं, तो मैं हर चीज के साथ होता हूं, इसलिए मैं तुम्हारे पास पहुंच ही जाऊंगा,’ तो वे आशा पालने लगते। इसलिए वह समझाते नहीं। वह कहते हैं, ‘मैं सो जाऊंगा।’ और वे निराश हो जाते हैं। इस व्यक्ति से किसी मदद की आशा करने का क्या लाभ? जब वे निराश हो जाते हैं, तो इसे ‘छोड़ देना’ कहते हैं। वे उम्मीद छोड़ देते हैं कि इस व्यक्ति से आशा करने और मदद मांगने का कोई मतलब नहीं है। अब वे पूरी तरह खुले हुए हैं। अब चीजें घटित होंगी।
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