कर्तव्य समझकर नहीं, पूरे दिल से काम करें
दैनिक जीवन में हम कुछ काम अपना कर्तव्य निभाने की भावना के साथ करते हैं। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि चाहे काम कोई भी हो, उसे पूरे दिल से करने पर ही आनंद का अनुभव होगा। जानते हैं काम करने के दो तरीकों के फर्क के बारे में।
बचपन से ही बड़ों ने आपके अंदर ‘कर्तव्य’ की घुट्टी पिलाई होगी। बेटे को पढ़ाना-लिखाना पिता का कर्तव्य है। बूढ़े माता-पिता की देखभाल पुत्र का दायित्व है। छात्र को शिक्षा देकर तैयार करना अध्यापक का कर्तव्य है। कानून का पालन करना नागरिकों का कर्तव्य है-यों कर्तव्यों की सूची बड़ी लंबी है।
कर्तव्य मानकर किये गए काम से थकान होगी
कर्तव्य मानकर आप जो भी काम करेंगे, उसमें आप जरूर थकान महसूस करेंगे। तनाव के कारण रक्तचाप बढने की भी संभावना है। जूतों की कंपनी के मालिक एक दिन अपने कारखाने का निरीक्षण करने निकले।
मालिक ने देखा-एक कर्मचारी ने गत्ते का बक्सा निकालकर उस पर लेबल चिपकाया और बक्से को अगले कर्मचारी के पास सरका दिया। दूसरे ने उसमें एक जूता रखा और आगे बढ़ाया। तीसरे कर्मचारी ने बक्सा बंद करके चिपका दिया। अब वह बिक्री अनुभाग भेजे जाने के लिए गाड़ी में चढ़ाया गया।
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यह देख मालिक सकपका उठे। बोले, ‘‘अरे क्या हो रहा है यहाँ?जूतों को हम जोड़ों में न तैयार करते हैं?क्यों एक ही जूते को पैक कर रहे हैं ये लोग?’’ मैनेजर ने इत्मीनान से जवाब दिया, ‘‘बाएं पांव का जूता बक्से में रखने वाला लड़का आज छुट्टी पर है सर! फिर भी देखिए, जो लोग आए हैं अपना काम पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा रहे हैं।’’
पूरी इच्छा से काम करना होगा
किसी भी काम को जब तक मन लगाकर खुशी से नहीं करेंगे, नतीजा यही होगा। आपका मन जल्द ही ऊब जाएगा, काम से विरक्ति पैदा हो जाएगी और तब आप संवेदनहीन यंत्र की तरह काम करेंगे।
आपने परीक्षा का पेपर दिया। पेपर अच्छा किया तो बड़ी शान से कहेंगे, ‘एकदम बढिया हुआ यार, सचमुच कलम तोड़ दी।’ अगर पेपर ठीक न रहा तो... कहेंगे, ‘समय कम था’, ‘प्रश्नपत्र कठिन था’, ‘सिलेबस से बाहर के प्रश्न पूछे गए’ या इसी तरह के दूसरे कारण ढूंढेंगे। कामयाबी मिलने पर उसका श्रेय लेने के लिए उछलने वाला हमारा मन, गलती हो जाने पर उसकी जिम्मेदारी किसी और पर थोपने के लिए दौड़ मचाता है।
जिम्मेदारी लेने का मतलब भार ढोना नहीं है
ज्यादातर लोग ‘उत्तरदायित्व लेने’ का मतलब ‘कोई भार ढोना’ समझते हैं। सफाई करना, थाली-कटोरी साफ करना, पानी भरना, दीया जलाना जैसे घर के छोटे-छोटे कामों की जिम्मेदारी लेने के बारे में भी घर के सदस्यों के बीच में लंबी-लंबी बहसें चलती हैं।
बस, उसके बाद दोनों मौन हो गए। अगर पिल्लै मुंह खोलकर बताएं ‘खाना खिलाओ’ या पत्नी मुंह खोलकर बुलाए ‘खाने के लिए आओ’ तो दरवाजा बंद करने की जिम्मेदारी आ जाएगी, इसी डर के मारे दोनों भूखे रहकर मौनव्रत का पालन करने लगे।
आधी रात को कुछ बदमाश घर में घुस गए। हॉल में बैठे यह दंपति घुसपैठियों को देखने के बाद भी शोर मचाए बिना चुपचाप बैठकर तमाशा देख रहे हैं, यह देखकर वे बदमाश हैरान हुए। जो भी कीमती चीजें मिलीं, उन्हें बटोर लिया।
तब भी इस विचित्र दंपति का मौन जारी रहा। इससे शह पाकर एक बदमाश ने शंकरन पिल्लै की पत्नी के कान से हीरों का कर्णफूल उतारा। इस पर भी उस नारी ने शोर नहीं मचाया। यह देख अगला बदमाश हैरत में आ गया। उसने पास में पड़ा चाकू उठाया और शंकरन पिल्लै की मूंछों को मूंडऩे का उपक्रम करने लगा। तब तक काठ के देवता की भांति बैठे रहे पिल्लै लाचार होकर यों चिल्लाए: ‘‘अच्छा, ठीक है! मैं ही उठकर ताला लगाता हूं।’’
क्या इसी का नाम जिम्मेदारी है? अगर आप अपने चारों ओर के माहौल को अपने अनुकूल बना लेना चाहते हैं, तो आपको उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार होना चाहिए। तभी हार होने पर भी उसका दर्द आपके ऊपर असर नहीं करेगा।
उन असफलताओं को विजय पाने की सीढिय़ों के रूप में कैसे बदलना है, यह शिक्षा भी आप पा सकते हैं।