सद्‌गुरुसद्‌गुरु कुछ महीने पहले जब युगांडा के दौरे पर थे, तो वहां के एक मशहूर युवा पत्रकार एलन कसूजा ने उनसे अपने देश के हालात के ऊपर बातचीत की। पेश है उस बातचीत का अंश:


एलन कसूजा : यूगांडा अपने आप को बदलने की कोशिश कर रहा है। हम अपनी कोशिशों से वहां पहुंचे हैं, जहां हम आज हैं। युगांडा एक ऐसा देश है, जो कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है। हमने कई मायनों में बेहतर काम किए हैं, फिर भी हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है।

किस लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं आप?

सद्‌गुरु : आप कह रहे हैं कि लंबा सफर तय करना है, तो आप जाना कहां चाहते हैं? क्या आप अमेरिका का एक राज्य बन जाना चाहते हैं? क्या आपकी चाहत यही है?

इन सभी बड़ी चीजों को पाने की कोशिश करने के बजाय मुझे लगता है कि युगांडा में आपको एक बड़ी झील पाने की कोशिश करनी चाहिए।
आपका देश प्राकृतिक तौर पर बेहद सुंदर है। प्रकृति ने आप पर इतनी मेहरबानी की है कि आप नहीं जानते कि प्रकृति की कठोर परिस्थितियों में रहने का क्या मतलब होता है? यह एक बेहद सुंदर देश है। फिलहाल पूरी दुनिया में एक पागलपन छाया है कि उसे हर चीज बड़ी चाहिए- बड़ा घर, बड़ी कार, यह भी बड़ा, वह भी बड़ा। इन सभी बड़ी चीजों को पाने की कोशिश करने के बजाय मुझे लगता है कि युगांडा में आपको एक बड़ी झील पाने की कोशिश करनी चाहिए।

एलन कसूजा : एक बड़ी झील?

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सद्‌गुरु : जी हां, एक बड़ी झील।

एलन कसूजा : क्या वह एक बड़े घर से ज्यादा महत्वपूर्ण है?

इस समस्या का सामना कर रहे हैं हम

सद्‌गुरु : क्योंकि आपके पास अगर बाकी सारी चीजें बड़ी होंगी तो आपकी झील सिकुड़ जाएगी। यह हो चुका है। भारत में हम इस समस्या का गंभीर रूप से सामना कर रहे हैं।

कहा जा रहा है कि साल 2025 तक यह सिर्फ सात प्रतिशत ही रह जाएगा। इसका मतलब हुआ कि आने वाले दिनों में भारतीय लोग बाथ-टब के बजाय बोतलों में नहाएंगे।
1947 में जब हम आजाद हुए थे, तो हमारे पास प्रति व्यक्ति जितना पानी हुआ करता था, उसका आज हमारे पास सिर्फ अठारह प्रतिशत ही बचा है। कहा जा रहा है कि साल 2025 तक यह सिर्फ सात प्रतिशत ही रह जाएगा। इसका मतलब हुआ कि आने वाले दिनों में भारतीय लोग बाथ-टब के बजाय बोतलों में नहाएंगे। देखिए दुनिया कहां जा रही है। जब प्रकृति आपके प्रति इतनी मेहरबान है, तो अपने लोगों की भलाई के लिए इसे ऐसे ही संजोकर रखना सबसे महत्वपूर्ण है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर लोगों का पोषण बेहतर तरीके से होगा और उनके आसपास का परिवेश खूबसूरत होगा और उनकी चाहतें आसपास की चीजों के मुताबिक ही तय होंगी तो जिस रास्ते पर अमेरिका चला है, यह उससे बेहतर तरीका होगा। मैं चाहता हूं कि आप यह अच्छी तरह से समझें कि उनकी आकांक्षाएं और मानक तब तय किए गए थे, जब उन्हें लगता था कि पांच प्रतिशत लोग पंच्चानवे प्रतिशत लोगों का शोषण कर अपने आराम और सुविधाओं को हासिल कर पाएंगे।

एलन कसूजा : यानी आपका कहना है कि हमें चीजों को छोटा करने की जरूरत है। लेकिन मैं एक बड़ा घर बनाना चाहता हूं। मैं इस लायक होना चाहता हूं कि मैं अपने बच्चों को सबसे अच्छे स्कूल में भेज सकूं। आप जिस संतुलन की बात कर रहे हैं, उसे साधते हुए मैं यह सब कैसे कर पाऊंगा?

असफल पीढ़ी नहीं बनना हमें

सद्‌गुरु : देखिए, हम आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते हैं - एक भरी-पूरी खुशहाल दुनिया या फिर एक बर्बाद दुनिया? यह एक ऐसा मुद्दा हैं, जहां हमें अपनी सोच तय कर लेनी चाहिए, क्योंकि एक पीढ़ी के तौर पर हमारी यह सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।

हमारे जीवन में इससे ज्यादा महत्वपूर्ण चीज कोई और नहीं है कि हमें यह धरती, यह जीवन जैसा मिला, हम उसको थोड़ा बेहतर बनाकर अगली पीढ़ी को दें।
सबसे पहले तो हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि हम लोग सिर्फ बैटन के वाहक भर हैं, जिसे हमें आगे किसी और को सौंपना है। हम लोग इस धरती पर एक छोटे बुलबुले की तरह उभरते हैं और फिर हम बुलबुले की तरह ही मिट जाएंगे। बुलबुले जैसी इस छोटी सी जिंदगी को हम ऐसे जी रहे हैं मानो इस धरती की हम आखिरी पीढ़ी हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। हमारे जीवन में इससे ज्यादा महत्वपूर्ण चीज कोई और नहीं है कि हमें यह धरती, यह जीवन जैसा मिला, हम उसको थोड़ा बेहतर बनाकर अगली पीढ़ी को दें। अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर इसमें कोई दो राय नहीं कि एक पीढ़ी के तौर हम असफल माने जाएंगे।

एलन कसूजा : जब आपका पेट भरा हुआ है तो ऐसी बातें कहना आसान है।

जन्म को टालना भी सीखना होगा

सद्‌गुरु : आपको अपना पेट भरने के लिए इस धरती का विनाश करने की कोई जरूरत नहीं है, आपको इसे पोषित करने की जरूरत है। क्योंकि भोजन इस धरती से ही आता है, किसी सुपरमार्केट से नहीं आता।

सबसे बड़ी बात कि बीसवीं सदी के शुरू में हमलोग लगभग डेढ़ अरब थे। फिर एक सदी में इस धरती पर हमारी आबादी लगभग साढ़े सात अरब कैसे हो गई?
इस मिट्टी को, यहां के परिवेश को, यहां के मौसम को जिस तरह से मैं देख रहा हूं, यह पूर्वी अफ्रीका पूरी दुनिया के लिए अन्नदाता बन सकता है। आप यहां साल के बारहों महीने फसलें उगा सकते हैं। लेकिन अगर आप इसे बर्बाद कर देंगे तो कुछ सालों बाद आप अपने खाने लायक फसल भी नहीं उगा पाएंगे। भारत में वाकई आज ऐसा ही हो रहा है। जब पेट भरा हो तब बात करना आसान होता है - यही मैं कह रहा हूं। अगर हम इस धरती को एक खास तरीके से रखेंगे तो इस पर रहने वाले सात अरब लोगों का पेट भरना कोई बड़ी चुनौती नहीं होगी। सबसे बड़ी बात कि बीसवीं सदी के शुरू में हमलोग लगभग डेढ़ अरब थे। फिर एक सदी में इस धरती पर हमारी आबादी लगभग साढ़े सात अरब कैसे हो गई? आखिर हमारी गलती क्या रही? हम गैरजिम्मेदाराना तरीके से संतान पैदा करते गए। इसकी एक बड़ी वजह तो यह रही कि पूरी दुनिया में, लोगों की औसत आयु बढ़ गई, जो कि बहुत अच्छी बात है। लेकिन जब हमने मृत्यु को टालना सीख लिया तो क्या हमें जन्म को भी टालना नहीं सीखना चाहिए?