कैलाश वाद्यम् मुख्य रूप से तमिलनाडु में 63 नायनारों (तमिल शिव संतों) में से एक, अप्पार के कारण आया।
अप्पार, जिन्हें तिरुनावुक्करसर भी कहा जाता है, उन्होंने कई शिव मंदिरों की यात्रा की और शिव के बारे में कई भजन गाए। लगभग 80 वर्ष की आयु के आसपास, उनकी कैलाश पर्वत जाने की तीव्र इच्छा हुई । हालांकि उनका शरीर कमजोर था, लेकिन उनका संकल्प इतना मजबूत था कि वे तब तक चलते रहे, रेंगते रहे और यहां तक कि लुढ़कते रहे जब तक वे पूरी तरह थक नहीं गए।
शिव उनके सामने एक बूढ़े संत के रूप में प्रकट हुए और उन्हें वापस जाने की सलाह दी, यह कहते हुए कि उन्हें कैलाश में शिव नहीं मिलेंगे। लेकिन अप्पार अडिग थे, "मैं या तो शिव का दर्शन करूंगा, या यहीं मर जाऊंगा!" शिव ने अप्पार को खुद को फिर से जीवंत करने के लिए पास के तालाब में डुबकी लगाने के लिए मना लिया। जब अप्पार ने डुबकी लगाई, तो उन्हें आश्चर्य हुआ, वे फिर से तिरुवायुर में प्रकट हुए और उन्हें वह दिखा जिसकी उन्हें लालसा थी। उन्होंने महसूस किया कि शिव और शक्ति हर जगह मौजूद हैं - जानवरों, पक्षियों और पेड़ों में - जिससे कैलाश वाद्यम् की रचना हुई ।
कैलाश वाद्यम् अब तमिलनाडु के कई शिव मंदिरों में बजाया जाता है।
ध्वनियों का महत्व:योग संस्कृति में, ध्वनि का बहुत महत्व है, और इसका उपयोग चेतना को ऊपर उठाने के लिए किया जाता है। कुछ ध्वनियां हमेशा मधुर ना होते हुए भी, हमारे प्रणाली को गहन तरीके से प्रभावित करतीं है। उदाहरण के लिए, एक साधारण ड्रम की ध्वनि ट्रांस का अनुभव करा सकती है। कैलाश वाद्यम्, एक प्राचीन शक्तिशाली संगीतमय भेंट है, जो आपको भगवान शिव की अवस्था को महसूस करने में सहायता करती है।
इस प्राचीन प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने के लिए, शिवांग टीम तमिलनाडु भर के विभिन्न शिव मंदिरों में कैलाश वाद्यम् की भेंट करती है। अधिक जानकारी के लिए, कृपया हमें info@shivanga.org पर लिखें। कृपया सब्जेक्ट में "कैलाश वाद्यम्" का उल्लेख करें।