सद्गुरु योग विद्या के आधार पर शिव के 10 अलग-अलग रूपों के बारे में बता रहे हैं कि हर एक रूप किसका प्रतिनिधित्व करता है। आईये ऊर्जस्वी नटराज, भयावह कालभैरव, बच्चों जैसे भोलेनाथ और अन्य रूपों के बारे में जानें!
शिव के असंख्य रूप हैं, जो हर उस संभव विशेषता को समाहित करते हैं – जिनकी कल्पना एक इंसान कर सकता है और नहीं कर सकता। इनमें से कुछ बहुत ही उग्र और भयंकर है। कुछ रहस्यमयी हैं। कुछ प्रिय और आकर्षक हैं। सीधे-साधे भोलेनाथ से ले कर उग्र कालभैरव तक, सुंदर सोमसुंदर ले कर भयानक अघोरशिव तक, वे सारी संभावनाओं को अपने भीतर समेटे हुए हैं, और इन सबसे अनछुए भी हैं। परंतु इन सबके बीच, इनके पाँच बुनियादी रूप हैं। इस आलेख में, सद्गुरू बता रहे हैं कि ये क्या हैं और इनके पीछे का विज्ञान क्या है।
योग योग योगेश्वराय
भूत भूत भूतेश्वराय
काल काल कालेश्वराय
शिव शिव सर्वेश्वराय
शंभो शंभो महादेवाय
सद्गुरु: योग के पथ पर होने का अर्थ है कि आप अपने जीवन में एक ऐसे चरण पर आ गए हैं जहाँ आपने अपने भौतिक शरीर की सीमाओं को जान लिया है। आपने भौतिक सीमाओं से परे जाने की आवश्यकता को महसूस किया है – आप स्वयं को इस असीम ब्रह्माण्ड में भी बँधा हुआ पा रहे हैं। आप यह देखने योग्य हो गए हैं कि अगर आप छोटी सीमा में बंध सकते हैं, तो आप कहीं न कहीं विशाल सीमा में भी बंध सकते हैं।
आपको ये बात समझने के लिए ब्रह्माण्ड के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने की ज़रूरत नहीं है। यहीं बैठे आप जानते हैं कि अगर यह सीमा आपके लिए बाधा बन रही है तो विशाल ब्रह्माण्ड भी कभी आपके लिए बाधा बन जाएगा – दूरियाँ लांघने की क्षमता आने से ये आपके अनुभव में आ जाएगा। एक बार आपकी दूरियाँ लांघने की क्षमता बढ़ेगी, तो आपके लिए किसी भी तरह की सीमा बाधा बन जाएगी।
जब आप इसे एक बार जान और समझ लेंगे, जब आप उस तड़प को जान लेंगे, जिसे भौतिक रूप से पूरा नहीं किया जा सकता – तो आप योग की खोज करना शुरू करते हैं। योग का अर्थ है भौतिक सीमाओं के बंधनों से आजाद होना। आपका प्रयास केवल भौतिकता पर महारत जासिल करना नहीं, पर इसकी सीमा को तोड़ते हुए, ऐसे आयाम को छूना है, जो भौतिक प्रकृति नहीं रखता। आप ऐसी दो चीज़ों को जोड़ना चाहते हैं – जिनमें एक सीमा में कैद तथा दूसरी असीम है। आप सीमाओं को अस्तित्व की असीम प्रकृति में विलीन करना चाहते हैं, इसलिए, योगेश्वराय।
यह सारी भौतिक सृष्टि – जिसे हम देख, सुन, सूंघ, छू व चख सकते हैं – यह देह, यह ग्रह, ब्रह्माण्ड, सब कुछ – यह सब कुछ पंच तत्वों का ही खेल है। केवल पंच तत्वों की मदद से कैसी अद्भुत शरारत – ये ‘सृष्टि’ रच दी गई है! केवल पंच तत्व, जिन्हें आप एक हाथ की अंगुलियों से गिन सकते हैं, इसने कितनी चीज़ें तैयार की गई हैं। सृजन इससे अधिक करुणामयी नहीं हो सकता। अगर ये कहीं पचास लाख तत्व होते तो आप कहीं खो कर रह जाते।
पंच भूतों के रूप में जाने गए, इन तत्वों को साधना ही सब कुछ है – आपकी सेहत, आपका कल्याण, इस जगत में आपका बल और अपनी इच्छा से कुछ रचने की योग्यता। जाने-अनजाने, चेतन या अचेतन तौर पर, व्यक्ति किसी हद तक इन विभिन्न आयामों को साध लेते हैं। वे कितना नियंत्रण रखते हैं, उसी से उनकी देह, मन और उनके द्वारा होने वाले कामों और उनकी सफलता की प्रकृति सुनिश्चित होती है – या उनकी दृष्टि या समझ कहां तक जा सकती है आदि तय होता है। भूत भूत भूतेश्वराय का अर्थ है कि जो भी जीवन के पंच भूतों को साध लेता है, वह कम से कम भौतिक जगत में, अपने जीवन की नियति या भाग्य को तय कर सकता है।
काल – समय। भले ही आपने पांचों तत्त्वों को अपने बस में कर लिया हो, इस असीम के साथ एकाकार हो गए हों या आपने विलय को जान लिया हो – जब तक आप यहाँ हैं, समय चलता जा रहा है। समय को साधना, एक बिलकुल ही अलग आयाम है। काल का अर्थ केवल समय नहीं, इसका एक अर्थ अंधकार भी है। समय अंधकार है। समय प्रकाश नहीं हो सकता क्योंकि प्रकाश समय में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाता है। प्रकाश समय का दास है। प्रकाश एक ऐसा तत्व है, जिसका एक आदि और अंत है। समय वैसा तत्व नहीं है। हिंदू जीवनशैली के अनुसार, वे समय के छह अलग-अलग आयाम हैं। एक बात तो आपको जाननी ही होगी – जब आप यहाँ बैठे हैं, तो आपका समय तेज़ी से भाग रहा है। मृत्यु के लिए तमिल में बहुत सटीक शब्द या अभिव्यक्ति है – कालम् आइटांगा- ‘उसका समय समाप्त हो गया।’
अंग्रेज़ी में भी हम कुछ समय पहले ऐसा कहते थे, ‘वह एक्सपायर हो गया।’ किसी दवा की तरह इंसान की भी एक्सपायरी डेट होती है। आपको लग सकता है कि आप कई जगहों पर जा रहे हैं। नहीं, जहाँ तक आपके शरीर का संबंध है, यह सीध कब्र की ओर जा रहा है, एक क्षण के लिए भी इसकी यात्रा नहीं थमती। आप इसे धीमा तो कर सकते हैं किंतु यह अपनी दिशा नहीं बदलता। जब आप बड़े होंगे तो धीरे-धीरे जान सकेंगे कि यह धरती आपको वापस निगलने की तैयारी में है। जीवन अपनी बारी पूरी करता है।
समय जीवन का एक विशेष आयाम है – यह अन्य तीन आयामों के साथ मेल नहीं खाता। और ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं में से, यह सबसे अधिक रहस्यमयी है। आप इसकी व्याख्या नहीं कर सकते क्योंकि यह है ही नहीं। यह अस्तित्व के ऐसे किसी भी रूप में नहीं है, जिनकी आपको समझ है। यह सृष्टि का सबसे शक्तिशाली आयाम है, जो सारे ब्रह्माण्ड को एक साथ थामे रखता है। इसी के कारण आधुनिक भौतिकी भ्रम में है कि गुरुत्वाकर्षण कैसे काम करता है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण है ही नहीं। यह समय ही है जो सब कुछ एक साथ बाँधे रखता है।
शिव का अर्थ है, ‘जो है ही नहीं, जो विलीन हो गया।’ जो है ही नहीं, हर चीज़ का आधार नहीं, और वही असीम सर्वेश्वर है। शंभो केवल एक मार्ग और एक कुँजी है। अगर आप इसे एक ख़ास तरह से उच्चारित कर सकें, कि आपका शरीर टूट उठे, तो ये एक मार्ग बन जाएगा। अगर आप इन सभी पहलुओं को साधते हुए वहाँ तक जाना चाहते हैं तो इसमें लंबा समय लगेगा। अगर आप केवल इस रास्ते पर चलना चाहते हैं – तो आप इन पहलुओं से कौशल से नहीं , बल्कि चुपके से भीतर घुस कर परे निकल जाते हैं।
जब मैं छोटा था, तो मैसूर के चिड़ियाघर में मेरे कुछ दोस्त थे। रविवार की सुबह का मतलब था कि मेरी जेब में पॉकेट मनी के दो रुपए होते। मैं मछली मार्केट के उस हिस्से में जाता, जहाँ वे आधी सड़ी मछलियाँ रखते थे। कई बार मुझे दो रुपए में दो-तीन किलो मछली मिल जाती थी। मैं उन्हें एक पन्नी में डाल कर मैसूर के चिड़ियाघर में ले जाता। मेरे पास उससे ज़्यादा पैसे नहीं होते थे। उन दिनों चिड़ियाघर का टिकट एक रुपया था; यह वहाँ जाने का सीधा रास्ता था। वहाँ लगभग दो फीट ऊँचा बैरियर था, अगर आप उसके नीचे से रेंग कर निकल सकें तो उसका कोई शुल्क नहीं लगता था। मुझे रेंग कर जाने में कोई परेशानी नहीं थी। मैं घुटनों के बल होते हुए निकल जाता और सारा दिन अपने दोस्तों को सड़ी मछलियाँ खिलाता।
अगर आप सीधा चलना चाहते हैं, तो यह एक कठिन मार्ग है – ढेर सारा काम। अगर आप केवल घुटनों के बल चलना चाहते हैं तो इसके लिए कई आसान उपाय हैं। जो लोग घुटनों के बल चलना पसंद करते हैं, उन्हें किसी भी चीज़ को साधने की चिंता नहीं करनी पडती। जब तक जीवन चलता है, जीएँ। जब आप मरेंगे, तो उस परम को पा लेंगे।
किसी भी सरल सी चीज़ का हुनर साधने में भी अपनी ही एक सुदंरता है – एक सौंदर्यबोध का एहसास है। मिसाल के लिए, एक फुटबॉल को किक मारना। यहाँ तक कि एक बालक भी ऐसा कर सकता है। पर जब कोई उसे साध लेता है, तो अचानक उसमें एक सौंदर्य बोध आ जाता है। आधी दुनिया उसे बैठ कर देखती है। अगर आप कौशल को जानना और आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको काम करना होगा। पर अगर आप घुटनों के बल चलने के लिए तैयार हैं, तो केवल शंभो की जरूरत है।
शिव को हमेशा से बहुत शक्तिशाली माना गया है। पर, साथ ही साथ, वे ऐसे हैं जो दुनिया के साथ चालाकी या कपट नहीं कर सकते। इसीलिये, शिव के एक रूप को भोलेनाथ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वे बच्चों जैसे हैं। भोलेनाथ का मतलब है, भोला-भाला, या अनजान, अज्ञानी। आप देखते होंगे कि ज्यादातर बुद्धिमान लोगों को बहुत आसानी से बेवकूफ़ बनाया जा सकता है क्योंकि वे अपनी बुद्धिमत्ता छोटी-छोटी चीज़ों में नहीं लगाते। चालाकी, धूर्तता और चतुराई निचली स्तर की बुद्धि में होती है जो दुनिया में किसी बुद्धिमान व्यक्ति को आसानी से बेवकूफ़ बना सकती है। पैसे या समाज के स्तर पर इसका कुछ महत्व हो सकता है, पर जीवन के स्तर पर इसका कोई मतलब नहीं होता।
हम जब बुद्धिमत्ता की बात करते हैं तो ये सिर्फ होशियारी के बारे में नहीं होती। हम जीवन के उस आयाम को पूरे प्रवाह में बहने देने की बात कर रहे हैं जो जीवन को संभव बनाता है। शिव भी ऐसे ही हैं। वे कोई मूर्ख नहीं हैं, पर वे छोटी-छोटी बातों में अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करने की परवाह नहीं करते।
नृत्य के भगवान का रूप, नटेश या नटराज, शिव के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है। मैं जब स्विट्जरलैंड की सीईआरएन में गया, जो सारी दुनिया की एक खास भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला है और जहाँ परमाणुओं पर अनगिनत प्रयोग किये जाते हैं, मैंने देखा कि प्रवेश दरवाजे के सामने नटराज की एक मूर्ति लगी है। ये इसलिये कि उनको लगा कि वे वहाँ जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके इतने ज्यादा नज़दीक, इस मानव संस्कृति में कुछ और नहीं है।
नटराज उस प्रचुरता और सृष्टिरचना के नृत्य के प्रतीक हैं जो चिरकाल की स्थिरता से स्वयं बनी है । चिदंबरम मंदिर में जो नटराज हैं, वे बहुत ही प्रतीकात्मक हैं, क्योंकि, आप जिसे चिदंबरम कहते हैं, वह सम्पूर्ण स्थिरता ही है। इस मंदिर के रूप में उसी का पवित्र रूप दर्शाया गया है। हमारी जो भी शास्त्रीय कलायें हैं वे इसी सम्पूर्ण स्थिरता को मनुष्य में लाने के लिये हैं। बिना स्थिरता के सच्ची कला हो ही नहीं सकती।
सामान्य ढंग से शिव को सम्पूर्ण पुरुष कहा जाता है, पर उनके अर्धनारीश्वर रूप में उनका आधा भाग एक पूर्ण विकसित स्त्री का है। ऐसा कहने का मतलब यह है कि अगर आपके अंदर के पुरुष और स्त्री सही ढंग से मिलते हैं तो आप अति आनंद की हमेशा रहने वाली स्थिति में होंगे। अगर आप इसे बाहर से करने की कोशिश करते हैं तो ये ज्यादा दिन नहीं चलता, और उसके साथ मुश्किलें आती हैं, और यह नाटक हमेशा चलता रहता है। यहाँ पुरुषत्व और स्त्रीत्व का मतलब शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री नहीं है। ये कुछ खास गुण हैं। मूल रूप से ये दो व्यक्तियों के मिलने की इच्छा की बात भी नहीं है, पर, जीवन के दो आयामों के मिलने की इच्छा की बात है – बाहर से भी और अंदर से भी। अगर आप इसे अंदर से हासिल कर लेते हैं, तो बाहर की ओर ये शतप्रतिशत आपके चयन से होगा, नहीं तो बाहरी रूप एक भयानक मजबूरी बन जायेगा।
ये एक प्रतीकात्मक बात है – ये दिखाने के लिये कि अगर आपका अस्तित्व पूरी तरह से विकसित हो जाता है, तो आप आधे पुरुष और आधे स्त्री होंगे – ना कि कोई नपुंसक – पर एक पूर्ण पुरुष और एक पूर्ण स्त्री। तब ही आप एक पूर्ण मनुष्य होंगे।
शिव का एक खतरनाक रूप है कालभैरव – जब वे काल(समय) का नाश करने में लग गये थे। सभी भौतिक वास्तविकतायें समय की एक निश्चित अवधि में होती हैं। अगर मैं आपके समय को नष्ट कर देता हूँ तो आपके लिये सब कुछ खत्म हो जायेगा।
शिव ने एक खास वेशभूषा पहनी और फिर भैरवी यातना बनाने के लिये वे कालभैरव बन गये। यातना का अर्थ है – भयानक दुख, तकलीफ। जब मृत्यु का पल आता है तब बहुत सारे जन्मों की यादें जबर्दस्त तीव्रता के साथ प्रकट हो जाती हैं और जो भी दर्द और दुख आपको होने हैं, वे एक सेकंड के एक छोटे से भाग में ही हो जाते हैं। फिर भूतकाल का कोई भी अंश आप में नहीं रहता। अपने सॉफ्टवेयर को खत्म कर देना दर्दनाक होता है पर मृत्यु के पल में ये होता ही है और आपके पास कोई चारा नहीं होता। वे इसे जितना कम कर सकते हैं, कर देते हैं ताकि तकलीफ जल्दी खत्म हो जाये। वैसा तभी होगा जब हम इसे बहुत ज्यादा तीव्र बना देंगे। अगर ये हल्का हुआ तो खत्म नहीं होगा, हमेशा चलता रहेगा।
यौगिक परंपरा में, शिव को भगवान की तरह पूजा नहीं जाता। वे आदियोगी अर्थात पहले योगी और आदिगुरु, पहले गुरु भी हैं, जिनमें से यौगिक विज्ञान का जन्म हुआ। दक्षिणायन की पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा होती है जब आदियोगी ने यह विज्ञान अपने पहले सात शिष्यों, सप्तर्षियों को सिखाना शुरू किया।
ये किसी भी धर्म के अस्तित्व में आने से भी पहले की बात है। लोगों के मानवता को तोड़ने के विभाजनकारी तरीके ढूंढने से पहले, मानवीय चेतना को ऊँचे स्तर पर ले जाने के लिये शक्तिशाली साधनों का पता लगाया जा चुका था और उनका प्रचार, प्रसार भी किया गया था। उन साधनों की बनावट, उनकी खासियत, इतनी ज्यादा है कि विश्वास नहीं होता। ये पूछना कि क्या उस समय लोग इतने खास थे, ठीक नहीं है क्योंकि ये चीजें किसी खास सभ्यता या विचार प्रक्रिया से नहीं आयीं थीं। ये अंदर की समझ से, आत्मज्ञान से आयीं थीं। यह आदियोगी ने ही बताया था। आज भी, आप उन चीजों में से कुछ भी बदल नहीं सकते क्योंकि उन्होंने हर चीज़ इतने सुंदर ढंग और बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से कही है। जिसे समझने में ही आपका सारा जीवन लग सकता है।
शिव को हमेशा ही त्र्यम्बक कहा गया है क्योंकि उनके पास एक तीसरी आँख है। पर, तीसरी आँख का मतलब ये नहीं है कि उनके माथे पर कोई दरार बनी हुई है। इसका मतलब सिर्फ ये है कि उनकी समझ अपनी पूरी संभावना पर पहुँच गयी है। ये तीसरी आँख दिव्यदृष्टि की आँख है। हमारी दो भौतिक आँखें सिर्फ ज्ञानेन्द्रिय हैं। वे हर तरह की बकवास मन में भरती रहती हैं क्योंकि आप जो भी देखते हैं वो सच नहीं होता। आप इस व्यक्ति या उस व्यक्ति को देखते हैं और उनके बारे में कुछ सोचने लगते हैं, पर आप उनमें शिव को नहीं देख पाते। इसीलिये, एक और आँख, जो गहरी समझ वाली हो, खुलना ज़रूरी है।
आप चाहे कितना भी सोचें, या फिलोसोफी करें, पर आपके मन में स्पष्टता नहीं आ सकती। आप जो भी तार्किक स्पष्टता बनाते हैं, उसे कोई भी नष्ट कर सकता है और मुश्किल हालात इसको पूरी तरह से उल्ट-पुल्ट कर सकते हैं। सिर्फ जब, दिव्यदृष्टि खुलती है, जब आपके पास आंतरिक दृष्टि होती है, तभी एकदम सही स्पष्टता आती है।
हम शिव को जो कुछ भी कहते हैं, वह और कुछ नहीं पर पूरी समझ का ही स्वरूप है। इसी संदर्भ में हम ईशा योग सेंटर में महाशिवरात्रि का उत्सव मनाते हैं। ये एक अवसर है और एक संभावना है जिससे सभी लोग अपनी समझ को कम से कम एक स्तर आगे ले जा सकें। यही शिव की बात है। यही योग है। ये कोई धर्म नहीं है, ये अंदरूनी विकास का विज्ञान है।