साधना

साधना पूरे जीवन नहीं – सिर्फ आज कीजिए

कल्पना कीजिए कि आप किसी सुनसान द्वीप पर नहीं, बल्कि अपनी खोज के विशाल समुद्र में फंस गए हैं। जैसे रॉबिन्सन क्रूसो समय को ट्रैक करने के लिए निशान लगाता था, वैसे ही हम अक्सर अपनी योग साधना को लंबे समय तक बनाए रखने में संघर्ष करते हैं - खासकर जब आध्यात्मिक यात्रा की बात आती है। लेकिन क्या हो अगर आगे का रास्ता जीवन भर की यात्रा न होकर, इस वर्तमान क्षण में उठाया गया बस एक सचेतन कदम हो? इस लेख में, सद्‌गुरु हमारी धारणा को बदलकर साधना की आश्चर्यजनक सरलता को उजागर करते हैं। एक जीवन-काल के बोझ को भूल जाइए, महत्वपूर्ण केवल वह है जो आप यहां और अभी करते हैं।

प्रश्न: नमस्कारम् सद्‌गुरु! मुझे लगता है कि इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम से मुझे वास्तव में फायदा हुआ, लेकिन मैं अपनी साधना को जारी रखने और काम और साधना के बीच संतुलन बनाने में संघर्ष कर रहा हूँ। मैं कैसे सुनिश्चित करूं कि मैं अपनी साधना जीवन भर करता रहूँ?

वास्तविकता में जीना

सद्‌गुरु: आप रॉबिन्सन क्रूसो की तरह सोच रहे हैं। आप शायद उस अंग्रेज की कहानी जानते हैं जो जहाज दुर्घटना में एक दूर के द्वीप पर फंस गया था, लगभग कुछ भी नहीं था उसके पास। ऐसे में आपको नहीं पता कि आपको एक दिन में बचा लिया जाएगा, एक हफ्ते में, एक महीने में, आपके जीवन के आखिरी दिन, या कभी नहीं।

यह जानने के लिए कि वह वहां कितने समय से था, उसने हफ्तों की गिनती शुरू कर दी, लकड़ी के टुकड़े पर निशान खरोंचकर। इस तरह अपने दिनों की गिनती मत कीजिए। "मैं अपने पूरे जीवन साधना कैसे जारी रखूं?" कभी भी पूरे जीवन के लिए साधना जारी मत रखिए - बस आज कीजिए। आप खुद पर उन चीजों का बोझ क्यों लाद रहे हैं जो मौजूद नहीं हैं, और जिन्हें आप कभी संभाल नहीं सकते?

क्या आप कभी कल को संभाल सकते हैं? क्या आप कल का खाना आज खा सकते हैं? क्या आप कल की सांस आज ले सकते हैं? क्या आप कल की कोई भी चीज आज कर सकते हैं? नहीं। तो उन चीजों पर अपना समय क्यों बर्बाद करें जो कभी नहीं की जा सकतीं? आप कल की साधना आज नहीं कर सकते - आज आप केवल आज की साधना ही कर सकते हैं।

कभी भी पूरे जीवन के लिए साधना जारी मत रखिए - बस आज कीजिए।

सौभाग्य से, सृष्टि इतनी उदार है कि हमारे जीवन में संभालने के लिए हमारे पास केवल आज है। हमें एक साथ कई दिन नहीं संभालने हैं। हम योजना बना सकते हैं, लेकिन हमें एक समय में सिर्फ एक दिन को ही संभालना है।

तो आप क्यों पूछते हैं, "मैं बाकी जीवन के लिए इसे कैसे करूंगा?" कौन जानता है कि आपका बाकी जीवन क्या होगा? यह सोच बहुत सारी मान्यताओं पर आधारित है और वास्तविकता से जुड़ी नहीं है। आप और मैं सहित किसी की भी कल की गारंटी नहीं है।

बस आज की साधना को सँभालिए। अगर आप कल जागते हैं, तो वह फिर से, आज ही है।

भविष्य को ठीक करने की मूर्खता

एक अफ्रीकी जनजाति में एक चिकित्सक की कहानी है। वह कुछ बुदबुदाता और उलट-पुलट करता, और लोगों का सिरदर्द चला जाता। एक दिन, उसने पूछा, "क्या किसी को मदद की जरूरत है?"

एक आदमी ने कहा, "मुझे सुनवाई (हियरिंग) में मदद चाहिए।"

चिकित्सक ने उसे पास बुलाया, अपना दाहिना हाथ उसके सिर पर और छोटी उंगली उसके कान में रखी, और कुछ चीजें कीं। कुछ मिनटों बाद, उसने उंगली निकाली और पूछा, "अब कैसी है आपकी सुनवाई?"

जीवन सरल है - यह सिर्फ आज है, इस पल में।

उस आदमी ने कहा, "वह तो अगले गुरुवार स्थानीय कचहरी में है।" 

अगले गुरुवार को अभी संभालने की कोशिश मत कीजिए। हम अगले गुरुवार की योजना बना सकते हैं, लेकिन अभी उसे संभाल नहीं सकते। इसी तरह, बीते हुए कल को सुधारने की कोशिश मत कीजिए क्योंकि आप नहीं कर सकते। आप इससे सीख सकते हैं और उस पर गौर कर सकते हैं, लेकिन गुजरे कल को सुधार नहीं सकते।

गौर करने के बाद, आप पहचान सकते हैं कि आपमें क्या गलत है ताकि आप उसे आज ठीक कर सकें। आप न तो बीते कल को ठीक कर सकते हैं, न ही आने वाले कल को। जीवन सरल है - यह सिर्फ आज है, इस पल में। इसे गड़बड़ मत कीजिए, यही आपकी साधना है। सबसे महत्वपूर्ण साधना सत्य में जीना है।

असत्य से सत्य की ओर बढ़ना

हम हर चीज असतो मा सद्गमय से शुरू करते हैं। यह सिर्फ एक मंत्र नहीं है। असतो मा सद्गमय एक प्रतिबद्धता है जो आप खुद से करते हैं कि लगातार असत्य से सत्य की ओर बढ़ेंगे। असत्य यह है कि आप बीते हुए कल या आने वाले कल के लिए दुख झेल सकते हैं। यह आपके मन में बनाया गया है, और आप मानते हैं कि यह सच है।

जीवन में थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन असतो मा सद्गमय आपको याद दिलाता है कि जब आप अपने विचारों और भावनाओं को वास्तविकता समझकर मन में असत्य की ओर जा रहे हों, जो कि वास्तविकता नहीं है, तो उसे पहचानें। वास्तविकता यहीं है।

सबसे महत्वपूर्ण साधना सत्य में जीना है।

हम कल के लिए योजना बनाते हैं, तैयारी करते हैं, और जो करना है करते हैं। कुछ चीजें हम संभाल लेंगे, कुछ चीजें शायद न संभाल पाएं। अपने जीवन में आप जितनी ज़्यादा चीज़ें लेते हैं, उतना ही ज्यादा बिना संभला रहेगा। मैंने आपमें से इतनों को लिया, बहुत सी चीजें बिना संभली हैं। लेकिन अच्छा है कि हम इतनों को ले सकते हैं, हम उन्हें चीजों को संभालना सिखाते हैं बजाय इसके कि हम सब कुछ खुद संभालने की कोशिश करें।

तो, यह प्रतिबद्धता लें – असतो मा सद्गमय। आप कैसे जानेंगे कि आप सत्य में हैं या नहीं? एक सरल परीक्षण है - अगर आप किसी भी तरह की चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, अप्रसन्नता, या पीड़ा की स्थिति में हैं, तो इसका मतलब है कि आप सत्य से दूर जा रहे हैं। अगर आप शांत, आनंदित और प्रसन्न हैं, तो मेरा अनुभव कहता है कि इसका मतलब है आप सत्य में हैं।

जीवन की क्षणभंगुरता और सुंदरता

सत्य का मतलब है जीवन के साथ संतुलन में रहना और सृष्टि और सृष्टिकर्ता के साथ तालमेल में रहना। हो सकता है कि आज रात तक हम सब की मृत्यु हो जाए। हम ऐसा नहीं चाहते और अगर हमें पता चले तो इससे बचने की कोशिश भी करेंगे, लेकिन यह संभावना बनी रहती है।

जीवन की लंबाई मायने रखती है, लेकिन आख़िरकार जो मायने रखता है वो है इसकी गुणवत्ता।

जीवन की यही वास्तविकता है - मौत किसी को भी कभी भी आ सकती है। चाहे कोई पागल व्यक्ति आप पर ट्रक चढ़ा दे, कोई पेड़ आप पर गिर जाए, बिजली गिर जाए, या कुछ भी हो जाए, जीवन नाजुक है, और हम यहाँ थोड़े समय के लिए ही हैं। जीवन को सबसे कीमती चीज की तरह रखना सबसे महत्वपूर्ण है।

जीवन की लंबाई मायने रखती है, लेकिन आख़िरकार जो मायने रखता है वो है इसकी गुणवत्ता। लंबाई आपके जीवन-अनुभव को समृद्ध नहीं करती, गुणवत्ता करती है। गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, आपको हमेशा असतो मा सद्गमय में रहना चाहिए।

अगर आप लगातार जीवन को इस तरह देखें, यह जानते हुए कि अगर कुछ काम नहीं किया, तो इसका मतलब है कि आपने कुछ सही नहीं किया, तो आप शिकायतों से भरे नहीं रहेंगे। आप अपने और दूसरों के जीवन के लिए एक समाधान बनेंगे। मेरी कामना है कि आप सभी के लिए एक समाधान बनें, समस्या नहीं।