हाल के एक दर्शन में, सद्गुरु ने ‘एक्स्टसी ऑफ एनलाइटनमेंट’ कार्यक्रम के बारे में एक प्रश्न का उत्तर एक अप्रत्याशित टिप्पणी के साथ दिया। चार दशकों के अनुभव से, वे आध्यात्मिक खोज में एक महत्वपूर्ण बदलाव को उजागर करते हैं। पहले जहाँ अधिकांश लोग शारीरिक समाधान की खोज करते थे, आज बहुत बड़ी संख्या में लोग गहरे अस्तित्वपरक प्रश्नों के साथ आते हैं। अपने जाने-पहचाने अन्दाज़ में सद्गुरु बतातेहैं कि यह विकास हमारी सामूहिक चेतना के बारे में क्या दर्शाता है।
प्रश्नकर्ता: नमस्कारम सद्गुरु! हम एक्स्टसी ऑफ एनलाइटनमेंट कार्यक्रम को लेकर उत्साहित हैं। यह किस बारे में है?
सद्गुरु: जिस दिन मेरे भीतर परमानंद का विस्फोट हुआ, तब से मैं बस अपने आसपास के लोगों के साथ इसे बाँटने की कोशिश कर रहा हूँ। दुनिया में जहां भी मैं जाता हूँ, एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब आनंद, प्रेम और परमानंद के आंसू न दिखें। यह सबसे बड़ा आशीर्वाद है। एक्स्टसी ऑफ एनलाइटनमेंट कार्यक्रम उसी दिशा में एक और कदम है। जैसे-जैसे मेरे जीवन का बचा समय कम होता जा रहा है, मैं अब खुलकर एनलाइटनमेंट (यानी आत्मज्ञान) शब्द का उपयोग कर रहा हूँ।
जब 1982-1983 में मैंने पहली बार सिखाना शुरू किया, तब जो मेरे भीतर हो रहा था मैं उसे साझा करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मैंने पाया कि लगभग 80 से 85 प्रतिशत लोग इसलिए आते थे क्योंकि उन्हें कोई शारीरिक बीमारी थी। कुछ को हृदय संबंधी समस्याएं थीं, और मैसूर और बैंगलोर जैसी जगहों पर अस्थमा विशेष रूप से व्यापक था।
आज, समाज में एक शानदार बदलाव आया है। सौभाग्य से, आजकल ज़्यादा से ज़्यादा केवल 8 से 12 प्रतिशत लोग ही शारीरिक बीमारियों के कारण आते हैं। लगभग 90 प्रतिशत लोग इसलिए आते हैं क्योंकि वे कुछ जानना चाहते हैं, वे बढ़ना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि उनके जीवन में कुछ हो।
एक पीढ़ी जो सोचती थी, ‘मेरी पीठ का दर्द चला जाए,’ उससे ‘मेरी पीठ को भाड़ में जाने दो, मैं कुछ और जानना चाहता हूँ’ तक, यह एक जबरदस्त बदलाव है। ‘पीठ दर्द के लिए, मैं डॉक्टर के पास चला जाऊंगा। सद्गुरु, मुझे कुछ और दीजिए।’
जब आप परमानंद की बात करते हैं, तो लोग सोच सकते हैं कि आप नशा ले रहे हैं। आप उन्हें बता सकते हैं, ‘हां,’ क्योंकि मानव शरीर से बड़ा कोई रासायनिक कारखाना इस धरती पर नहीं है। अगर आप एक अच्छे प्रबंधक हैं तो आप इसमें जो चाहें पैदा कर सकते हैं।
अगर आप एक खराब प्रबंधक हैं, तो आप चिंता, डर और अन्य भावनाओं के रसायन पैदा करते हैं जो आप नहीं चाहते। जब आप कोई उद्योग, व्यवसाय या घर चलाते हैं, और परिणाम आपकी इच्छा के विपरीत होते हैं, तो स्पष्ट रूप से इसका मतलब है कि आप एक बुरे प्रबंधक हैं।
आप इस तरह के कुप्रबंधन के इतने आदी हो गए हैं कि आपको लगता है कि यह पूरी तरह से ठीक है। यह कैसे ठीक हो सकता है - जब जो होना चाहिए वह नहीं हो रहा है, और उसके बजाय कुछ और हो रहा है? अगर आपका व्यवसाय, उद्योग या घर वह परिणाम नहीं दे रहा है जो आप चाहते हैं, तो क्या इसका मतलब है कि ‘तारे खराब हैं,’ या आप बस एक खराब प्रबंधक हैं?
पहला कदम जो आपको उठाना है वह यह स्वीकार करना है कि जो भी होता है, आपका जीवन आपकी जिम्मेदारी है। केवल तभी आप उचित रूप से अपने जीवन को, जैसा कल चाहते हैं वैसा बनाने की उम्मीद कर सकते हैं। जब तक आप चीजें गलत होने पर जिम्मेदारी नहीं लेते, सही चीजें कभी नहीं होंगी। अगर आप एक खराब प्रबंधक हैं, तो आपको इसके बारे में कुछ करना चाहिए।
सबसे सरल चीज जो आप कर सकते हैं वह है स्थिर होना - शुरुआत में शारीरिक रूप से, फिर धीरे-धीरे सभी स्तरों पर। भ्रम आपके भीतर होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होते हैं - शारीरिक रूप से, रासायनिक रूप से, मानसिक रूप से और ऊर्जा के स्तर पर।
योग विज्ञान के माध्यम से इस पूरी प्रक्रिया को बहुत विस्तृत बनाया जा सकता है, आपकी छोटी उंगली से लेकर उस दिशा में सब कुछ कैसे काम करे इसकी अनगिनत प्रणालियों के साथ। विज्ञान और विधियां महत्वपूर्ण तब होती हैं जब कोई केमेस्ट्री नहीं होती। लेकिन अभी आपको ऐसे नहीं करना चाहिए। जब एक सद्गुरु आसपास हों, तो आप बस अपनी तीव्रता पर काम कीजिए, और बाकी सब सँभाला जा सकता है। जीवन की तीव्रता तब पैदा होती है जब आप बहुत बिखरे हुए नहीं होते। अगर आप बहुत बिखरे हुए हैं, तो आपके पास तीव्र होने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं होगी, कम से कम अभी तो नहीं।
अगर आप आत्मज्ञान की खोज करते हैं, तो अपने काम पर ध्यान देने से शुरू कीजिए। अभी आपका अधिकांश काम समाज के बारे में है - आप एक कार, घर, या दूसरों से बेहतर कपड़े खरीदना चाहते हैं - यह अंतहीन रूप से चलता रहता है। लेकिन अगर आप खुद को जीवन के रूप में देखें, तो यह जीवन क्या चाहता है? आप यह तभी देख सकते हैं जब आप अपने भीतर कुछ स्थिरता लाएंगे। नहीं तो हर भ्रम आपको बिल्कुल वास्तविक लगता है।
ख़ुद पर काम करने के लिए थोड़ा समय निकालिए। अगर आप जीवन की प्रकृति, क्षमता और महत्व को नहीं समझते, तो आप बस एक शरीर के रूप में जीते हैं - खाते हैं, सोते हैं, बच्चे पैदा करते हैं, और एक दिन मर जाते हैं। इन चीजों में कुछ गलत नहीं है, लेकिन इसे आपके जीवन का मुख्य हिस्सा नहीं बनना चाहिए। आप विकास के एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंच गए हैं जहां आपके पास इन चीजों से परे देखने के लिए आवश्यक जागरूकता और बुद्धि है। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो जीवन खो जाएगा। यही एक चीज आपके पास है, इसलिए आपको इसकी देखभाल करनी चाहिए।
अगर आप सोचते हैं कि आपके पास जीवन से कुछ ज्यादा है, तो आप अभी एक जीवन नहीं हैं, आप एक बाजार हैं। हम अपने इस्तेमाल के लिए बहुत सी चीजें ला सकते हैं, लेकिन अगर वे हमारे पास हैं तो वे हमें बढ़ाएं नहीं, और अगर वे नहीं हैं तो वे हमें कम न करें। सवाल किसी चीज या किसी व्यक्ति के होने या न होने का नहीं है।
सवाल यह है कि आपके अस्तित्व की प्रकृति को क्या तय करता है? अगर उस प्रश्न को ठीक से संबोधित किया जाए, तो आत्मज्ञान केवल तीव्रता का मामला है। अगर आप एक खास स्तर की तीव्रता तक पहुंच जाते हैं, तो हम आपके लिए अंडा फोड़ देंगे। अगर आप उसे तब फोड़ने की कोशिश करते हैं जब यह तीव्र नहीं है, तो यह बर्बाद हो जाएगा। मैं अधिक से अधिक अंडे फोड़ने के लिए यहां हूँ। आप हमेशा के लिए अंडे में नहीं रह सकते - आपको निकलना ही होगा। तभी जीवन होता है।