संस्कृति और ज्ञान

महाकुंभ की रूपांतरणकारी शक्ति

तीन पवित्र नदियों के मिलने के स्थान पर, जहाँ आकाशीय ताल और भूगोल एक साथ मिलते हैं, लाखों लोग  पृथ्वी के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम - 2025 महाकुंभ मेला के लिए एकत्र हो रहे हैं। सद्‌गुरु इस प्राचीन उत्सव के पीछे के परिष्कृत विज्ञान को समझा रहे हैं - जो जल के संगम को रूपांतरण के साधन में बदल देता है।

प्रश्न: सद्‌गुरु, कुंभ मेला वास्तव में किस बारे में है? क्या यह सिर्फ एक परंपरा है, या इसके पीछे कोई गहरा विज्ञान और महत्व है?

दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा

सद्‌गुरु: हमें समझना चाहिए कि कुंभ क्या है। ‘कुंभ’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है घड़ा या कलश। यह इस धरती पर सबसे शानदार सांस्कृतिक घटनाओं में से एक है। 2013 के पिछले महाकुंभ मेले में, एक दिन में 3 करोड़ लोग एक जगह पर इकट्ठे हुए - पुरुष, महिलाएं और बच्चे, जीवन के सभी क्षेत्रों से लोग आए। बिना किसी हंगामे के सब कुछ सुचारु रूप से चला। यह अविश्वसनीय था, लगभग स्व-प्रबंधित था।

कुंभ मेला योग के एक मौलिक आयाम से आता है जिसे भूत शुद्धि कहा जाता है, जिसका अर्थ है पांच तत्वों की सफाई। ब्रह्मांड में सब कुछ - यह शरीर, ग्रह, सौर मंडल और ब्रह्मांड - केवल पांच तत्वों का खेल है। यह सृष्टि के पीछे की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। जीवन ने खरबों रूप लिए हैं - सब केवल पांच तत्वों से।

पांच तत्वों और जल का महत्व

इस शरीर की संरचना ऐसी है कि इसमें लगभग 60% जल है, 12% पृथ्वी है, 6% वायु है, 4% अग्नि है, और शेष आकाश (संस्कृत का शब्द,  जिसका अर्थ है ‘ईथर’ या ‘अंतरिक्ष’) है। यहां अच्छी तरह से जीने के लिए, जल सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि इस शरीर का 60% जल है, और धरती का भी 72% जल है।

आधुनिक विज्ञान ने दिखाया है कि जल में अपने भीतर विशाल स्मृति होती है। जल महज़ एक वस्तु नहीं है, यह जीवन बनाने वाला पदार्थ है। जो पानी आप पीते हैं वह एक मनुष्य का रूप ले रहा है। इसमें स्मृति और बुद्धिमत्ता है - अगर आप इसके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, तो यह अच्छा व्यवहार करने की प्रवृत्ति रखता है; अगर आप इसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं, तो यह बुरा व्यवहार करने की प्रवृत्ति रखता है।

पवित्र स्थानों का वैज्ञानिक आधार

कुंभ, या कुछ अक्षांशों पर नदियों के संगम का उपयोग करने का यह विज्ञान, विश्वास या अंधविश्वास से नहीं आया। यह हमारे आसपास के जीवन और विभिन्न शक्तियों के कार्य करने के तरीके, और हम उनका उपयोग कैसे कर सकते हैं, उसके सूक्ष्म अवलोकन से आया। इस संदर्भ में, ग्रह के घूमने के कारण पैदा हुआ अपकेंद्रीय बल, भूमध्य रेखा शून्य डिग्री अक्षांश और 33 डिग्री अक्षांश के बीच, मुख्य रूप से ऊर्ध्वाधर तरीके से काम करता है।

इस कारण से, शून्य से 33 डिग्री तक का क्षेत्र धरती पर पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता था, क्योंकि यहां आध्यात्मिक साधना से अधिकतम परिणाम मिलते थे। जहां भी दो जल निकाय एक खास प्रबलता के साथ मिलते हैं, वहाँ जल का मंथन होता है। क्योंकि मानव शरीर 60 प्रतिशत से अधिक जल है, सौर चक्र में एक विशिष्ट नक्षत्र के दौरान किसी विशेष समय पर ऐसे स्थान पर उपस्थित होने से शरीर को अधिकतम लाभ मिलता है।

कुंभ की पौराणिक उत्पत्ति

कहानी है कि कोई जीवन का अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन कर रहा था। शुरू में विष ऊपर आया, जिसे शिव ने पी लिया, और इसलिए वे नीले हो गए। अगर यह उनके शरीर में चला जाता, तो यह उन्हें प्रभावित करता, इसलिए उनकी पत्नी ने विष को वहीं रोकने के लिए उनका गला पकड़ लिया, और उनकी गर्दन नीली हो गई।

फिर मंथन से अमृत निकला, और सभी इसे पाने के लिए संघर्ष करने लगे क्योंकि यह आपको अमरत्व, अलौकिक शक्तियां, या ज्ञान देने वाला था। इस हाथापाई में अमृत चार अलग-अलग जगहों पर गिर गया। ये वो स्थान बन गए जहाँ कुंभ मेला होता है - हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, और उज्जैन।

प्राचीन काल में लोग समझते थे कि अगर आप कुंभ में 48 दिनों के मंडल के लिए रहें, हर दिन स्नान करें और उचित साधना करें, तो आप अपने भौतिक शरीर, मनोवैज्ञानिक ढांचे, ऊर्जा प्रणाली को बदल सकते हैं, और सबसे बढ़कर, अपने भीतर विशाल आध्यात्मिक विकास पा सकते हैं।

सही दृष्टिकोण और तैयारी

आजकल यह आधे दिन की जल्दी वाली यात्रा बन गई है जहां आप बस एक बार डुबकी लगाते हैं। मैं कहूंगा कि अगर आप कुंभ जाते हैं, तो तैयारी के लिए 21 दिनों की साधना करके कम से कम तीन दिन के लिए जाएं। दिन में दो बार पद्मासन में 21 मिनट के लिए बैठें - एक बार सुबह सूर्य के 30 डिग्री कोण से ऊपर उठने से पहले (सुबह 9:00 बजे से पहले) और फिर शाम को जब सूर्य आपकी स्थिति से 30 डिग्री नीचे चला जाए।

अगर आप मुद्रा धारण करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है। महामंत्र ॐ नमः शिवाय को सही ढंग से, पूरी लगन के साथ, 21 मिनट तक जपें।

जब मानव की आंतरिक प्रक्रिया की बात आती है, तो किसी दूसरी संस्कृति ने इसे कभी भी इस संस्कृति जितनी गहराई से नहीं देखा - और मैं यह बिना किसी सांस्कृतिक पक्षपात के कहता हूं।

कुंभ मेला सिर्फ एक और अनुष्ठान नहीं बनना चाहिए जहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे होते हैं, बल्कि एक रूपांतरणकारी प्रक्रिया होनी चाहिए। यह मेरी कामना और मेरा आशीर्वाद है कि कुंभ मेला इस संभावना के लिए दुनिया को जागृत करने में एक बड़ा कदम बने।