क्यों झेलने पड़े शिव और कृष्ण को कष्ट?
अवतार पुरुष जैसे शिव और कृष्ण भी कष्टों से गुजरते हैं। लेकिन कष्ट हमारे प्रारब्ध की वजह से आते हैं तो फिर इन्हें कष्ट क्यों झेलने पड़े? क्या वे मुक्त नहीं?
शिव हों या कृष्ण या फिर ईसा मसीह – सबको अपने जीवन में कुछ ऐसे हालातों का सामना करना पड़ा जिससे एक आम आदमी बचना चाहता है। तो फिर क्या वे ईश्वर नहीं थे? या फिर उनमें हालात को बदलने की काबीलियत नहीं थी?
प्रश्न: एक आम इंसान एक निश्चित मात्रा में प्रारब्ध लेकर पैदा होता है, मगर कृष्ण, शिव या आपके बारे में क्या कहा जा सकता है – क्या आप लोगों के सारे प्रारब्ध नष्ट नहीं हो गए हैं? इन लोगों के जीवन-वर्णन से तो पता चलता है कि, एक भगवान को भी अपने जीवन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आपके जीवन में भी कुछ ऐसा ही लगता है।
सद्गुरु: शिव को कभी किसी मुसीबत से नहीं गुजरना पड़ा। ऐसे कुछ हालात जरूर पैदा हुए, जैसे कि जब उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी सती को खो दिया तब वे कुछ समय तक गहरे दुख में रहे। मगर कुछ समय बाद, वह फिर से ठीक हो गए। हर किसी के साथ ऐसा ही होता है। अपने किसी बहुत प्रिय इंसान को खोने के बाद भी कुछ समय तक दुख में रहने के बाद आप जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें भी उसी स्थिति का सामना करना पड़ा, इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी। कृष्ण को भी कई स्थितियों से गुजरना पड़ा और मेरे जीवन में भी ऐसा ही हुआ। स्थितियां आती हैं, मगर कोई पीड़ा नहीं होती। चाहे जो भी हो जाए, उससे आप टूटते नहीं हैं, कमजोर नहीं पड़ते।
अब सवाल यह है कि ऐसी स्थितियां कृष्ण, शिव, ईसामसीह या मेरे सामने भी क्यों आती हैं? एक बार जब आप दुनिया में जीवन जीने का चयन कर लेते हैं, तो आप दुनिया के नियमों के वश में हो जाते हैं। मैं मानव निर्मित नियमों की बात नहीं कर रहा हूं। मगर एक बार जब आप एक भौतिक शरीर अपनाने और दुनिया में एक भूमिका निभाने का फैसला कर लेते हैं, तो आप भी उन नियमों के अधीन हो जाते हैं, जो भौतिक अस्तित्व को नियंत्रित करते हैं।
Subscribe
एक बार जब आप भौतिक आयाम में प्रवेश करने का मन बना लेते हैं, तो उस भौतिकता के नियम आप पर भी लागू होते हैं, चाहे आप कोई भी हों। आप कृष्ण हों, शिव हों या सद्गुरु हों – अगर आप जहर पिएंगे, तो आपकी मृत्यु हो जाएगी। हो सकता है कि आपके अंदर बहुत जरूरत होने पर किसी न किसी तरह कुछ स्थितियों से परे जाने की क्षमता हो। हो सकता है कि आपकी मौत न हो, मगर फिर भी आपको कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। उससे आप बच नहीं सकते। अगर आप छत से नीचे गिरेंगे, तो कुछ न कुछ टूटेगा ही, चाहे आप जो भी हों – क्योंकि आपने भौतिक में रहने का फैसला किया है। अगर आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहां कहीं से गिर कर भी आपको कुछ न हो, तो आपको शरीरहीन होना पड़ेगा। जब आप शरीर छोड़ देते हैं, तो भौतिक नियम आप पर लागू नहीं होते। मगर जब तक आपके पास एक भौतिक शरीर है, आप भौतिकता के नियमों के अधीन होते हैं। दूसरे आयामों पर भी यही बात लागू होती है। जब आप भौतिक या अभौतिक जीवन से ऊब जाते हैं, तभी मुक्ति की चाह पैदा होती है।
जब आप भौतिक दुनिया में होते हैं, तो इस भौतिक दुनिया के कुछ मूर्ख आपको धौंस दिखाते हैं। जब आप शरीरहीन दुनिया में होते हैं, तो कुछ शरीरहीन मूर्ख आपको धौंस दिखाते हैं। जब आप दिव्य दुनिया में होते हैं, तो कुछ दिव्य मूर्ख आपको तंग करते हैं। इन चीजों को देखते हुए, बुद्धिमान लोग मुक्ति चाहते हैं। आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहां कोई भी चीज आपके ऊपर धौंस न जमा सके। किसी भी चीज के अधीन न होने के लिए, आपको ऐसी स्थिति में आना होगा जहां या तो आप ‘कुछ नहीं’ हों, या ‘सब कुछ’ बन जाएं - इसे आप दोनों तरह से देख सकते हैं। आपको सब कुछ, असीम हो जाना होगा ताकि कोई भी आपको अधीन न कर सके। लेकिन भले ही आप अपने अंदर असीम हों, एक बार जब आप इस शरीर में रहना तय कर लेते हैं, तो भौतिक नियम आपके ऊपर लागू होते हैं।