सद्‌गुरुजब हम सिनेमा देखते हैं तो हम पर्दे पर चल रहे नाटक को देख रहे होते हैं। एक गुरु हमें उस पर्दे पर हो रहे प्रोजेक्शन की हकीकत को समझाने के लिए हमें प्रोजेक्शन रूम तक ले जाता है।

सूर्य वास्तव में न कभी उगता है, न डूबता है। मगर जिस तरह से हमें उसका बोध होता है, वह कितना शानदार धोखा है! जीवन की छोटी सी छोटी और बड़ी से बड़ी चीजों के मामले में, हमारे बोध में अनगिनत छलावे होते हैं। अगर आप सिनेमा हॉल में बैठते हैं, तो परदे पर दिखने वाला नाटक बिल्कुल असली सा दिखता है। लेकिन अगर आप प्रोजेक्शन रूम में जाकर देखें, तो वहां सिर्फ एक लाइट बल्ब और घूमते हुए दो पहिए होते हैं। बहुत सारा नाटक होगा – प्रेम, लड़ाई, युद्ध, शांति, शायद आत्मज्ञान भी। मगर मुख्य रूप से वह सिर्फ एक प्रोजेक्शन है।

जो व्यक्ति उस नाटक या सिनेमा का आनंद नहीं लेता, वह मूर्ख है। मगर जो नाटक या सिनेमा में उलझ जाता है, वह उससे भी बड़ा मूर्ख है।

जो व्यक्ति उस नाटक या सिनेमा का आनंद नहीं लेता, वह मूर्ख है। मगर जो नाटक या सिनेमा में उलझ जाता है, वह उससे भी बड़ा मूर्ख है।
 जो व्यक्ति नाटक का पूरी तरह आनंद लेता है और फिर भी उस प्रक्रिया में उलझता नहीं, वह समझता है कि यह ओपनिंग क्रेडिट के साथ शुरू होता है और एंड टाइटल्स के साथ खत्म हो जाता है। एक तरह से यह कब्र पर खुदे नामों की तरह है, जिन चरित्रों या पात्रों को आपने अभी फिल्म में देखा, वे अब वहां हैं। अगर आप नहीं समझ पाते कि इनके बीच में जो कुछ होता है, वह सिर्फ एक नाटक है, और आप उस नाटक में उलझ कर रह जाते हैं, तो बहुत सारी चीजें जो असली नहीं हैं, आपको असली लगने लगती हैं। और जो असली है, उससे आप पूरी तरह चूक जाएंगे।

गुरु का काम आपको फिल्में दिखाना नहीं, बल्कि प्रोजेक्शन रूम तक ले जाना है। प्रोजेक्शन रूम में जाकर और यह देखकर कि सिनेमा में मौजूद उन शानदार पुरुष और स्त्रियों का कोई अस्तित्व ही नहीं हैं, यह कोई महान नाटक नहीं, सिर्फ दो पहिए और लाइट बल्ब हैं, आप सिनेमा की सुंदरता क्यों बर्बाद करेंगे? अगर सिनेमा बस अभिनेताओं के बारे में है, तो ऐसा जरूरी नहीं है। आप अपनी कुर्सी पर बैठकर पॉपकार्न खाते हुए फिल्म का मजा ले सकते हैं। बात यह है कि आपको एक भूमिका निभानी है और आप निर्देशक का हाथ नहीं पकड़ रहे हैं।

अगर निर्देशक अभिनेता का हाथ नहीं पकड़ता, तो मशहूर सितारे भी पूरी तरह अस्त-व्यस्त होंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने प्रतिभाशाली या समर्थ हैं, अगर आप स्रष्टा का हाथ नहीं पकड़ेंगे, तो आपका जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त होगा। अगर आप कामयाब हैं, तो एक तरह की अव्यवस्था होगी। अगर आप असफल हैं, तो दूसरी तरह की अव्यवस्था होगी। अगर हर कोई असफल हो जाए, तो दुनिया रसातल में चली जाएगी। अगर हर कोई कामयाब हो जाए, तो हम और तेजी से धरती को नष्ट कर देंगे।

अगर आप जानते हैं कि आपको अपनी भूमिका कैसे निभानी है और आप प्रोजेक्शन रूम की प्रक्रिया के प्रति भी सजग हैं, तो आप सिनेमा को अपनी मर्जी से नियंत्रित कर सकते हैं। अगर आप निर्देशक का हाथ पकड़ लें तो वह एक बढ़िया अनुभव हो सकता है। सबसे बढ़कर आप आराम करते हुए फिल्म देख सकते हैं।

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