योगिक शैली: खान-पान के सात सरल नुस्खे
भारतीय संस्कृति का हर पहलू एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है - चाहे आप बैठे हों, खड़े हों या कुछ और कर रहे हों। हमारी संस्कृति में खाना खाने के लिए भी कुछ सरल नियम बताए जाते हैं। इस ब्लॉग में जानते हैं इन तरीकों के और इनके पीछे के विज्ञान के बारे में...
भारतीय संस्कृति का हर पहलू एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है - चाहे आप बैठे हों, खड़े हों या कुछ और कर रहे हों। हमारी संस्कृति में खाना खाने के लिए भी कुछ सरल नियम बताए जाते हैं। इस ब्लॉग में जानते हैं इन तरीकों के और इनके पीछे के विज्ञान के बारे में...
सही खान-पान के सात सरल नुस्खे
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कितनी बार खाएं
आपको दिन भर खाते नहीं रहना चाहिए। अगर आप तीस साल से कम उम्र के हैं, तो दिन में तीन बार खाना आपके लिए उपयुक्ता होगा। अगर आप तीस से अधिक के हैं, तो उसे घटाकर दिन में दो बार करना सबसे अच्छा होगा। हमारा शरीर और दिमाग बेहतरीन रूप में तभी काम करता है, जब पेट खाली हो। चेतन रहते हुए इस तरीके से खाएं कि ढाई घंटों के भीतर, भोजन पेट की थैली से बाहर हो जाए और बारह से अठारह घंटों में, वह पूरी तरह शरीर के बाहर हो। अगर आप यह सरल जागरुकता कायम रखें, तो आप ज्यादा ऊर्जा, फुर्ती और सजगता महसूस करेंगे।
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ध्यान दें!
योग में हम कहते हैं, ‘भोजन के एक ग्रास को चौबीस बार चबाना चाहिए।’ इसके पीछे काफ़ी वैज्ञानिक आधार है, मगर मुख्य रूप से उसका एक फ़ायदा यह है कि आपका भोजन पहले ही आपके मुंह में लगभग पच जाता है, वह पाचन-पूर्व स्थिति में पहुंच जाता है और आपके शरीर में सुस्ती नहीं पैदा करता।
इसके अलावा, उस खाने को भी धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि यह आपको जीवन दे रहा है। देखने में भले ही यह छोटी सी बात लग रही है लेकिन यह आप पर आपके शरीर की पकड़ को ढीला कर देती है।भोजन के दौरान पानी पीने से भी परहेज करना चाहिए। भोजन से कुछ मिनट पहले थोड़ा सा पानी पिएं या भोजन करने के तीस से चालीस मिनट बाद पानी पिएं।
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सही समय के लिए सही आहार
भारत में कब कौन सी वनस्पति उपलब्ध है और शरीर के लिए क्या उचित है, इसके मुताबिक गरमियों में भोजन एक तरीके से, बरसात में दूसरे तरीके से और सर्दियों में अलग तरीके से बनाया जाता है। इस समझदारी को अपने जीवन में शामिल करना और शरीर की जरूरत तथा मौसम और जलवायु के अनुसार खाना अच्छा होता है।
उदाहरण के लिए, दिसंबर आते ही तिल और गेहूं जेसे कुछ खाद्य पदार्थ होते हैं जो शरीर में गरमी लाते हैं। सर्दियों में आम तौर पर जलवायु के ठंडा होने के कारण त्वचा खुरदरी हो जाती है। पहले लोग क्रीम या लोशन जैसी चीजों का इस्तेमाल नहीं करते थे। इसलिए हर कोई रोजाना तिल का सेवन करता था। तिल शरीर को गरम और त्वचा को साफ रखता है। अगर शरीर में काफी गरमी होगी, तो आपकी त्वचा खराब नहीं होगी। गरमियों में, शरीर गरम हो जाता है, इसलिए शरीर को ठंडक देने वाली चीजें खाई जाती थीं।
संतुलित आहार
आजकल डॉक्टरों का कहना है कि 8 करोड़ भारतीय मधुमेह की बीमारी की ओर बढ़ रहे हैं। इसकी एक वजह यह है कि ज्यादातर भारतीयों के आहार में एक ही अनाज शामिल होता है। लोग सिर्फ चावल या सिर्फ गेहूं खा रहे हैं। यह निश्चित तौर पर बीमारियों की वजह बन सकता है। अपने आहार में अलग-अलग अनाजों को शामिल करना बहुत अहम है।
पहले लोग हमेशा ढेर सारे चने, दालें, फलियां और दूसरी चीजें खाते थे। लेकिन धीरे-धीरे वे चीजें खत्म होती गईं और आज अगर आप किसी दक्षिण भारतीय की थाली देखें, तो उसमें काफी सारा चावल और थोड़ी सी सब्जी होगी। यह एक गंभीर समस्या है। पिछले पच्चीस से तीस सालों में लोग सिर्फ कार्बोहाइड्रेट आहार की ओर मुड़ गए हैं, जिसे बदलने की जरूरत है। सिर्फ ढेर सारा कार्बोहाइड्रेट लेने और बाकी चीजें कम मात्रा में खाने से किसी व्यक्ति की सेहत पर गंभीर असर पड़ सकता है। लोगों के दिमाग में यह बुनियादी वैचारिक बदलाव होना बहुत जरूरी है। आहार का अधिकांश हिस्सा चावल नहीं, बल्कि बाकी चीजें होनी चाहिए।
भोजन के बीच का अंतराल
योग में कहा गया है कि एक भोजन कर लेने के बाद आपको आठ घंटे बाद ही दूसरा भोजन करना चाहिए। खाने के इस नियम का पालन आप तब भी कर सकते हैं, जब आप घर से बाहर हों। ये तो बात हुई योग के नियम की, लेकिन सामान्य स्थिति में भी किसी इंसान को दो भोजनों के बीच कम से कम 5 घंटे का अंतर तो रखना ही चाहिए। ऐसा क्यों कहा जा रहा है? इसलिए क्योंकि खाली पेट ही हमारा मल उत्सर्जन तंत्र अच्छे तरीके से काम कर पाता है।
खाने से पहले जरा ठहरें
मान लें आप बहुत ज्यादा भूखे हैं और खाना आपके सामने रख दिया जाए, तो क्या होता है? आप टूट पड़ते हैं उस खाने पर। दरअसल, जब आप बहुत ज्यादा भूखे होते हैं तो आपका पूरा शरीर बस एक ही चीज चाहता है, जल्दी से जल्दी खाना।
लेकिन तब आप एक पल के लिए रुकें। खाना शुरू करने से पहले हर उस शख्स और चीज के प्रति आभार व्यक्त करें, जिसकी बदौलत यह खाना आप तक पहुंचा है। मसलन वह खेत, वह किसान, वह व्यक्ति जिसने खाना बनाया और वह भी जिसने इसे आपको परोसा।
भोजन की कोई अच्छी आदत नहीं होती!
स्वास्थ्यवर्धक खान-पान के आखिरी नुस्खे में, सद्गुरु हमें याद दिलाते हैं कि भोजन शरीर से जुड़ी चीज है और क्या खाना है, यह तय करने का बेहतरीन तरीका शरीर से पूछकर खाना है। वह समझाते हैं कि भोजन की आदतें बनाने से हमें उसे बार-बार दुहराने की जरूरत पड़ती है, उससे बेहतर है कि हम अपनी समझ का इस्तेमाल करते हुए चेतन होकर अपने आहार को तय करें।
कृपया इस बात पर ध्यान दें कि उचित खान-पान के ये सामान्य नुस्खे ज्यादातर लोगों पर लागू होते हैं मगर निश्चित तौर पर, हर किसी के शरीर की संरचना अनूठी होती है और किसी खास बीमारी से पीडि़त लोगों को आहार या भोजन की मात्रा में कोई बदलाव करने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।