सृजन – क्या दिल से जुड़ा है?
किसी नई चीज़ का सृजन करने के लिए हमारे अंदर रचनात्मकता की जरुरत होती है। जैसे हम विचारों को मन से जोड़ते हैं, उसी तरह संगीत, चित्रकारी, लेखन जैसे रचनात्मक कार्यों को दिल से जोड़ा जाता है। क्या वाकई ऐसा है?
किसी नई चीज़ का सृजन करने के लिए हमारे अंदर रचनात्मकता की जरुरत होती है। जैसे हम विचारों को मन से जोड़ते हैं, उसी तरह संगीत, चित्रकारी, लेखन जैसे रचनात्मक कार्यों को दिल से जोड़ा जाता है। क्या वाकई ये दिल से जुड़े है?
मिहिर: क्या रचनात्मकता का मतलब यह है कि हमारा काम सीधे हमारे हृदय से निकलता है?
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सद्गुरु: देखिए, रक्त के अलावा कोई भी चीज हृदय से नहीं निकलती। हम अपनी भावनाओं को हृदय से जोड़ देते हैं। भावना तो आपके मन का बस एक रसीला हिस्सा है।
यह सभी भावनाएं आपके मन से ही निकल कर आ रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि आपके मन में ये गयी कहां से? अपनी पांचों ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से आप जिस तरह चीजों को ग्रहण कर रहे हैं, उसी तरह की भावनाएं आपके मन में पहुंचती हैं। हम सभी एक ही तरह की आवाजें सुनते हैं, लेकिन अगर किसी के भीतर संगीत की गहरी समझ है, वह उन्हीं आवाजों को सुनकर शानदार संगीत बना देगा। उसी तरह हम सभी एक जैसी चीजों को ही देखते हैं, लेकिन जिस इंसान के पास चीजों को गहराई से देखने की क्षमता है, वह शानदार पेंटिंग बना देता है।
मानसी: सफलता पाना, पैसा कमाना, जिंदगी के सुखों को भोगना और इस तरह की बातों में मेरी ज्यादा दिलचस्पी नहीं है। मैं रचनात्मक व्यक्ति बनना चाहती हूं, जिससे मैं कोई कविता लिख सकूं, कोई उपन्यास लिख सकूं या कोई कहानी लिख सकूं। क्या यह भी एक तरह का बंधन है? क्या यह भी एक तरह का अहम् है?
सद्गुरु: आपने कहा कि सफलता में आपकी केाई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन यह सच नहीं है। आपको कामयाबी तो चाहिए, लेकिन अलग दिशा में। किसी के लिए इमारत बनाना बड़ी कामयाबी हो सकती है, तो किसी के लिए उस इमारत को गिराना बड़ी कामयाबी हो सकती है। बस बात इतनी है कि आपके काम करने की योजना अलग-अलग होती है।
शिवांग: आपने बताया कि रचनात्मकता आंतरिक शांति पर निर्भर है, लेकिन हमारे सामने बीथोवन जैसा उदाहरण भी है, जो पूरी जिंदगी कष्ट उठाता रहा।
सद्गुरु: आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि कष्ट रचनात्मकता की जननी है जैसे आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। यह बात सामाजिक रूप से और ऐतिहासिक रूप से सच है। अफसोस की बात है कि जब लोग चारों ओर से घिर जाते हैं, तब वे अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ काम करते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हम आलस और बेसुधी की स्थिति में रहते हैं। हम सोचते हैं कि जब तक हम बुरी तरह से घिर नहीं जाऐंगे, हम अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम नहीं करेंगे। लेकिन यह तरीका सही नहीं है। जब आपको चारों तरफ से घेर कर विवश कर दिया जाता है, तो उससे बाहर आने के लिए आप कुछ रचनात्मक करते हैं। यह तो महज खुद के अस्तित्व को बचाने का एक तरीका है।