द्रौपदी के पांच पति - क्या थी इसकी वजह?
महाभारत की कहानी से यह पता चलता है कि पांचों पांडव द्रौपदी के पति थे। स्वयंवर अर्जुन के जीतने के बाद भी क्यों की सभी पांडवों ने द्रौपदी से शादी?
महाभारत की कहानी से यह पता चलता है कि पांचों पांडव द्रौपदी के पति थे। स्वायाम्वर अर्जुन के जीतने के बाद भी क्यों की सभी पांडवों ने द्रौपदी से शादी?
द्रौपदी के पिता द्रुपद के मन में द्रोणाचार्य के प्रति जबरदस्त नफरत थी और नफरत के इन्हीं भावों को द्रौपदी के मन में भी बचपन से ही कूट कूटकर भर दिया गया था। वह बदले की आग में जल रही थी और मन ही मन ऐसी तरकीबें सोचती रहती, जिससे अपने पिता के अपमान का बदला द्रोणाचार्य से ले सके, लेकिन द्रोणाचार्य तो हस्तिनापुर राज्य के संरक्षण में थे। द्रोणाचार्य को नीचा दिखाने के लिए उन्हें एक शक्तिशाली गठबंधन की आवश्यकता थी। इसी मकसद से उन्होंने योजना बनाई कि राजा जरासंध के पोते से द्रौपदी का विवाह करा दिया जाए।
द्रौपदी जब विवाह योग्य हुईं, तो उनके स्वयंवर का आयोजन किया गया। उधर कृष्ण की अपनी अलग योजना थी। वह आए और द्रुपद के साथ तकरीबन तीन महीने तक रुके।
द्रौपदी कृष्ण से विवाह करना चाहती थी
द्रौपदी ने फिर भी जिद की, कि वह कृष्ण से ही विवाह करना चाहती हैं, लेकिन कृष्ण ने खुद को उनसे दूर ही रखा। वह चाहते थे कि द्रौपदी का विवाह अर्जुन से हो जिससे कि एक सही गठबंधन बन सके, जो धर्म की स्थापना करने में उनकी मदद करे। अगर अर्जुन राजा बनते, तो वे समाज में बेहतर संतुलन ला पाते। लेकिन दूसरी तरफ राजा जरासंध का पोता द्रुपद के साथ शक्तिशाली गठबंधन बनाने के मकसद से द्रौपदी से विवाह करना चाहता था। अगर ऐसा होता तो बहुत गलत होता। एक और शख्स था, जो द्रौपदी से विवाह करने को बड़ा उत्सुक था और वह था दुर्योधन। अगर दुर्योधन का विवाह द्रौपदी से हो जाता तो वह भी अच्छा विकल्प नहीं होता।
खैर, स्वयंवर का दिन नजदीक आने लगा। पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह में जो आग लगवाई गई थी, उससे बचने के बाद पांडव अब भी छिपते-छिपाते घूम रहे थे। कृष्ण के अलावा कोई और नहीं जानता था कि वे जीवित भी हैं। कृष्ण चाहते थे कि स्वयंवर के दिन ही वे दुनिया के सामने आएं। ब्राह्मणों के वेश में कृष्ण उन्हें स्वयंवर में लेकर आए। स्वयंवर की शर्त यह थी कि ऊपर घूमती हुई मछली की आंख को तीर से बेधना था, लेकिन निशाना लगाना था नीचे रखी तेल की कड़ाही में उसकी परछाई को देखकर। जो इस तरीके से उस मछली की आंख में निशाना लगा कर उसे भेद पाएगा उसी के साथ द्रौपदी का विवाह होगा।
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जरासंध का पोता इतना अच्छा धनुर्धर नहीं था कि इस तरह वह निशाना लगा सकता। जरासंध ऐसा निशाना लगा सकता था, लेकिन वह 75 साल का हो चुका था। इसके बावजूद उसने स्वयंवर में भाग लेने के बारे में सोचा। आखिर इस विवाह का मकसद एक बड़े राज्य के साथ गठबंधन करना जो था। कृष्ण जरासंध के पास गए और उसे समझाया - आप 75 साल के हो चुके हैं, जबकि कन्या की उम्र महज 18 साल है। अगर आप स्वयंवर जीत भी गए तो आप हंसी के पात्र बन जाएंगे और आपका पोता तो किसी भी हालत में जीतेगा ही नहीं।
जरासंध ने फिर द्रौपदी का अपहरण करने के बारे में सोचा। उन दिनों किसी महिला से विवाह करने का एक तरीका यह भी था। लेकिन कृष्ण ने उसे चेतावनी दी - ‘हमारी सेनाएं यहां एकत्र हैं। अगर आपने द्रौपदी का अपहरण करने की कोशिश की, तो आप बच नहीं पाएंगे। सबसे अच्छा यही है कि आप पीछे हट जाइए।’ जरासंध ने हालात को तौला और सभी विकल्पों पर विचार करके देखा कि वह जो भी करेगा, उसका अपमान ही होगा। आखिरकार द्रुपद को बहुत सारे उपहार देकर वह पीछे हट गया। लेकिन वह अपने मन में गुस्से से जल रहा था कि एक ग्वाले ने उसे एक ऐसे स्वयंवर में हिस्सा लेने से रोक दिया, जिसे जीतकर वह एक बड़ा गठबंधन बना सकता था और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकता था।
दुर्योधन भी एक महान धनुर्धर था और स्वयंवर में रखी गई शर्त को पूरा करने में सक्षम था। जब वह परछाई में देखकर मछली की आंख पर ध्यान लगा रहा था, तो कृष्ण के इशारे पर ब्राह्मण के वेश में खड़े भीम जोर से हंसने लगे।
पांडव जब जंगल में थे तो उनकी माता कुंती को हमेशा यह डर रहता कि अगर पांचों भाइयों में झगड़ा हो गया तो वे अलग हो जाएंगे। इसका मतलब होगा राज्य का विभाजन। इसलिए उन्होंने पांचों पुत्रों से कह रखा था कि तुम्हें जो कुछ भी मिलेगा, तुम्हें उसे आपस में बांटना होगा।
अर्जुन द्रौपदी को घर लाये
जब अर्जुन स्वयंवर से लौटे, तो कुंती खाना बना रही थीं। अर्जुन ने कुंती से कहा - ‘मां, देखो हम क्या लाए हैं!’ बिना देखे ही कुंती ने कह दिया - ‘पांचों भाई आपस में बांट लो।’ इसी वजह से पांचों भाइयों ने एक ही स्त्री से विवाह कर लिया। व्यवस्था कुछ ऐसे हुई कि पांचों भाइयों की अपनी-अपनी पत्नियां होंगी, लेकिन रानी का स्थान केवल द्रौपदी को ही मिलेगा।
बाद में जब पांडवों को धृतराष्ट के राज्य का आधा हिस्सा देने की बात हुई तो दुर्योधन ने आत्महत्या करने की धमकी दे दी। धृतराष्ट अपने पुत्र की जिद के आगे कमजोर पड़ गए और उन्होंने पांडवों को आधा राज्य देने से मना कर दिया। निर्णय लिया गया कि पांडव राज्य छोडक़र चले जाएंगे और एक नए राज्य की स्थापना करेंगे। उन्होंने हस्तिनापुर छोड़ दिया और खांडवप्रस्थ चले गए, जहां उन्होंने नया शहर बसाया जिसका नाम रखा गया इंद्रप्रस्थ।
कुछ ही सालों के भीतर उन्होंने एक बेहद खूबसरत शहर की स्थापना कर ली और अपने लिए एक आलीशान महल बनवाया। वहां एक ऐसा सरोवर बनाया गया जिस पर आप चल सकते थे। यह क्रिस्टल की परतों से बना था जिसके नीचे पानी था। पांडवों ने तमाम राजाओं को बुलाया और राजसूय यज्ञ किया। दूसरे राजाओं के सहयोग से उन्होंने सफलतापूर्वक राजसूय यज्ञ का आयोजन किया और उस क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित हो गए।