कड़वे अनुभव को भुलाना नहीं, उससे सीखना है
सद्गुरु बताते हैं कि पांच इन्द्रियों से संर्पक में आई हर चीज़ हमारे भीतर हर हाल में दर्ज हो जाती है, और हमें कडवे अनुभवों को भुलाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उनसे सीखने की जरुरत है
सद्गुरु बताते हैं कि पांच इन्द्रियों से संर्पक में आई हर चीज़ हमारे भीतर हर हाल में दर्ज हो जाती है, और हमें कडवे अनुभवों को भुलाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उनसे सीखने की जरुरत है...
दुःख कब होता है?
जरा सोच कर देखिए कि आपका मन कब-कब दुखी होता है? जब दूसरे लोग आपकी उम्मीदों के अनुसार व्यवहार नहीं करते।
इसके उल्टा अगर वह उदासीनता बरते, कोई अहसान न दिखाए, तो बेकार में आपकी भावना घायल हो जाती है। इसी तरह हर चीज के लिए अगर आप अपनी उम्मीदों को बढ़ा लेंगे, तो आपका हर काम बोझ बन जाएगा। अनावश्यक रूप से जिंदगी जटिल हो जाएगी। भीख देने से आपका फर्ज खत्म हो जाता है। उसके बाद वह उसका पैसा है। उसके लिए धन्यवाद देना या न देना उसकी मर्जी है।
लेकिन आपको इस बात का दुख होता है कि उसने आपको बेवकूफ बना दिया। इसे उसकी धोखेबाजी न समझकर इस तरह देखिए कि आपने अपने जीवन का निर्वाह सही ढंग से किया या नहीं।
एक बार एक प्रोफेसर के घर में चूहों को इधर से उधर दौड़ते देखकर उनका छात्र घबरा गया। अपनी किताब को सीने से लगाते हुए उसने पूछा, ‘सर, आपने चूहों को यों छोड़ रखा है। उन्हें पकडक़र हटा नहीं सकते?’
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‘यह सच है कि चूहे मेरी किताबों को कुतर डालेंगे। लेकिन अगर मैं उन चूहों को पकडऩे की कोशिश में लग जाऊं तो वह मेरे हाथ में आए बिना कहीं छिप जाऐंगे। उनका शिकार करने में ही मेरी जिंदगी कट जाएगी। उसके बजाए खास किताबों को सावधानी के साथ अलमारी में रखकर ताला लगा देता हूं। नीचे कूड़े की तरह पड़े कागजों को वह भले ही खा लें। इस तरह से वह आखिर तक अदना ही बना रहता है। किसी भारी भूत-पिशाच की तरह मुझे डराता नहीं। हरेक चीज को भारी चिंता के रूप में ले लोगे तो चिंताएं तुम्हें खा जाएंगी’- प्रोफेसर ने समझाया।
एक बार शंकरन पिल्लै अपनी पत्नी के साथ जुरासिक पार्क सिनेमा देखने गए। पर्दे पर जब भीमकाय डायनासोर भयंकर रूप से मुंह बाए आगे की ओर लपका तो शंकरन पिल्लै अपनी सीट पर दुबक गए।
‘अरे, यह तो बस फिल्म ही है’ उनकी पत्नी ने कहा।
‘यह तो तुम्हें पता है। मुझे भी पता है। लेकिन उस डाइनासोर को पता होना चाहिए न?’ शंकरन पिल्लै ने चिंता के साथ कहा।
अनुभव से हासिल जानकारी को गंवाना मूर्खता है
आप भी उसी तरह सच्चाई और उम्मीदों को मिलाकर भ्रम में उलझ जाते हैं।
हिरोशिमा एक दर्दनाक याद है। लेकिन यदि उसे भुला दें तो दोबारा उसी तरह की बेवकूफी होने की गुंजाइश रहती है। आपकी यादें कोई समस्या नहीं है। उनका अक्लमंदी से उपयोग करना नहीं आए, तो वह समस्या है। दर्ज हुई हर याद का, हर जानकारी का बुद्धिमानी से इस्तेमाल कीजिए।
घायल होना या परिपक्व होना हमारे ऊपर है
एक बार ‘आन्टन’ नामक फकीर के पास एक नौजवान आया और बोला, ‘जिंदा रहने के लिए जरुरी चीजों को छोडक़र अपने पास की सभी चीजें बेचकर मैंने गरीबों में बांट दिया है। कृपया मुझे सद्गति मिलने की राह दिखाएं।’
‘तुम्हारे पास जो भी चीजें बाकी बची हैं, उन्हें बेचकर मांस के टुकड़े खरीदो। उन्हें अपने बदन पर बांधकर मेरे पास आ जाओ’ आन्टन ने कहा।
नौजवान ने बिना कोई सवाल किए उनकी इस आज्ञा का पालन किया। रास्ते में चील और बाज जैसे पक्षियों ने मांस के टुकड़ों को चुग-चुगकर खा लिया। इससे उसके बदन पर घाव हो गए।
उसे देखते ही फकीर ने बड़े प्रेम से कहा, ‘अब तुमने समझ लिया न कि नए रास्ते पर यात्रा करने का इच्छुक इंसान, अगर पुरानी जि़ंदगी को थोड़ी मात्रा में ही क्यों न ले आए, वह उसे कुतर डालती है?’
आपके साथ हुई किसी दुखद घटना का अनुभव आपको घायल करके निकल जाता है या आपके मन को परिपक्व बनाकर जाता है, यह आपके हाथ में ही है। जिसने भी आपके मन को घायल किया, उसे इस रूप में देखिए कि वह आपकी बुद्धि को और तेज करके गया।