दिल्ली के एस.आर.सी.सी कॉलेज से हुई जबरदस्त शुरुआत!
‘यूथ एंड ट्रुथ’ सद्गुरु द्वारा शुरू की गई एक पहल है। इस पहल का मकसद है - कि युवा अपने सबसे मुश्किल सवालों से छुटकारा पाकर अपने अंदर जरूरी स्पष्टता और संतुलन लाएं, जिससे वे अपनी पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने के काबिल हो सकें।
कार्यक्रम से पहली की तैयारियां...
सब कुछ सही तरह से हो, इसके लिए 4 सितंबर की सुबह 6 बजे से ही चहल-पहल शुरू हो गई थी, जब कार्यक्रम के लिए कॉलेज के स्वयंसेवकों के साथ-साथ ईशा के स्वयंसेवक पहुंचे। मगर असली हलचल कई सप्ताह पहले ही शुरू हो गई थी, जब स्वयंसेवक अगल-बगल के कई कॉलेजों के विद्यार्थियों और शिक्षकों को कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करने पहुंचे थे।
कार्यक्रम से पहले एक सर्वेक्षण से पता चला कि विद्यार्थी इस कार्यक्रम को लेकर काफी उत्सुक थे, मगर पहले अनुभव के साथ अक्सर होने वाली एक हिचकिचाहट भी थी। पर स्वयंसेवक एक अलग ही रूप में मस्ती और उत्सव का माहौल बनाते हुए आने वाले लोगों को खुलने का मौका देने की पूरी कोशिश में लगे थे।
हॉल के अंदर धीरे धीरे जोश बढ़ रहा था। शुरू में काफी शोरगुल सुनाई दे रहा था क्योंकि विद्यार्थी आकर अपने-अपने बैठने की जगहों तक पहुंच रहे थे। फिर जब साउंड्स ऑफ ईशा ने संगीत बजाना शुरू किया तो वह शोर अधिक व्यवस्थित हो गया क्योंकि लड़के-लड़कियां गाने और नाचने लगे। धीरे-धीरे मगर निश्चित रूप से एक तरह के ‘रॉक कंसर्ट’ जैसा माहौल बन रहा था।
सद्गुरु का प्रवेश...
जब सद्गुरु ने प्रवेश किया, हवा बिल्कुल बदल गई। जैसा कि आर. जे. रौनक ने इस बारे में कहा – ‘जैसे ही सद्गुरु आए, पूरे ऑडिटोरियम में बिजली सी दौड़ गई। अद्भुत!’
‘यूथ एंड ट्रुथ’ ‘यूथ एंड ट्रुथ’ के जोरदार नारे लग रहे थे जो उस समय के नायक सद्गुरु का सटीक स्वागत था।
मानो हवा में मौजूद खनक काफी नहीं थी, जोशीले साउंड्स ऑफ ईशा के साथ मोहित चौहान की ‘रॉकस्टार’ प्रस्तुतियों ने दर्शकों को एक अलग दुनिया में पहुंचा दिया। अगले कुछ मिनटों में जो धमाका होने वाला था, यह उसके लिए एक तरह की तैयारी थी। और सद्गुरु भी मोहित के गीतों पर थिरकते हुए जश्न में शामिल हो गए।
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युवाओं ने पूछे अपने सवाल
इसके बाद एक तीन छात्रों वाले पैनल के साथ प्रश्नोत्तर सत्र शुरू हुआ, जिसके बाद श्रोताओं से सवाल पूछने के लिए कहा गया। छात्रों के पास सद्गुरु से पूछने के लिए अपने ज्वलंत सवाल तो थे ही, अपने बीच सद्गुरु को देखकर एक तरह का विस्मय और रोमांच था जिसने उन्हें सद्गुरु और उनके जीवन के बारे में भी कई सवाल पूछने को प्रेरित किया: ‘सद्गुरु आप एक पैर ऊपर करके क्यों बैठते हैं?’ ‘आपका इतना सम्मान और आदर है क्या इससे आपको सुपीरियरिटी कांप्लेक्स होता है?’ ‘जब आप कॉलेज में थे, तो क्या आपके अपने सपनों और अपने माता-पिता को खुश करने के बीच टकराव होता था?’
विद्यार्थियों ने उत्सुकता से कई दिलचस्प विषय उठाए जैसे ‘क्या ईर्ष्या प्रेरक हो सकती है’, ‘लक्ष्य आरंभ है या अंत’, ‘पीडीए’, ‘रामानुजन जैसा प्रतिभाशाली बनने के लिए दिमाग और शरीर को तैयार कैसे करें’, आदि। सद्गुरु अपनी चिर परिचित हाजिरजवाबी, सहजता और उत्साह के साथ थे, जो युवा दर्शकों को हंसी और हैरानी से भर रही थी।
मगर वह सत्य को उसके वास्तविक और विशुद्ध रूप में बताने के अवसर से नहीं चूके। सोशल मीडिया पर समय बिताने वाले आज के युवाओं के लिए ये बात नई थी। जैसे जब उन्होंने कहा कि एक गधा भी घोड़े से तेज भागता है, अगर उसकी पूंछ में आग लगी हो, या जब उन्होंने कहा कि सर्कस के प्रशिक्षित बंदर की तरह नहीं होना चाहिए क्योंकि एक दिन आपको मरना है। युवा दर्शकों के बीच चुप्पी और समझ की शुरुआत हो रही थी।
शारीरिक मुद्राओं, योगिक विज्ञान और जीवन के बारे में बड़े अनूठे तरीके से बताते हुए उन्होंने युवाओं को काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। जब उनसे पूछा गया कि आदियोगी की मूर्ति इतनी विशाल क्यों है, तो उन्होंने ज्यामिति का महत्व समझाया। उन्होंने एसआरसीसी, दिल्ली में पहले ‘अनप्लग विथ सद्गुरु या सद्गुरु से पूछें प्रश्न’ आयोजन का समापन करते हुए छात्रों को ‘यूनिवर्सिटी या यूनिवर्स?’ प्रश्न पर विचार करते छोड़ दिया और आगे बढ़ गए।
दो घंटों का कार्यक्रम तीन घंटों तक खिंच गया, फिर भी छात्रों की इच्छा शांत नहीं हुई। उत्तरों की भूख ने सामान्य भूख को पीछे छोड़ दिया क्योंकि सत्र दोपहर के भोजन के समय से भी आगे चला गया, वह दोपहर 2 बजे के बाद भी चलता रहा।
दिल्ली कार्यक्रम का समापन - एक भव्य विदाई...
परिसर छोड़ते समय सद्गुरु को शाही विदाई दी गई, विद्यार्थियों ने उनके चारों एक ‘सुरक्षा घेरा’ बना दिया। मगर सद्गुरु तो सद्गुरु हैं, उन्होंने इतने ताम-झाम के बीच भी फ्रिस्बी खेलने के लिए एक तेज़ चक्कर लगा लिया। यह इसका स्पष्ट प्रदर्शन था कि जीवंतता और फुर्ती का उम्र से कोई लेना देना नहीं है।
विद्यार्थियों की स्थिरता, स्पष्टता और मनोदशा में बहुत उल्लेखनीय अंतर आ गया था। सुबह के सुस्त, संकोची चेहरों, जिन्हें फिल्माने के लिए घसीटना पड़ा था, अचानक इतने चुस्त हो गए कि उन्होंने रुक-रुक कर अपने अनुभव साझा किए। लोगों ने बहुत खुल कर हमसे बात की, अपनी बाइसेक्शुअलिटी तक के बारे में बताया, और पूछा कि यह कार्यक्रम पहले क्यों नहीं हुआ। उन्होंने उन युवाओं के लिए संदेश दिए जिनके लिए सद्गुरु का अनुभव करना अभी बाकी है।
विद्यार्थियों ने ‘युवाओं जुड़ो सत्य से!’ अभियान के बारे अपने अनुभव साझा किए
यह वाकई अच्छी बात है कि सद्गुरु ने कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए यह पहल की। हमारे लिए यह भी बड़े सम्मान की बात है कि उन्होंने इसे एसआरसीसी से शुरू किया।’
‘आज की प्रतिस्पर्धी(कॉम्पटीशन से भरपूर) दुनिया में, हमारे लिए सही मार्गदर्शन मिलना बहुत महत्वपूर्ण है। और ऐसी महान शख्सियत से मार्गदर्शन मिलना हम सब के लिए सौभाग्य की बात थी। इससे निश्चित रूप से हमारे बहुत से सवालों के जवाब मिल गए, जिनके उत्तर पाने के लिए हम बेचैन थे।’
‘यह सत्र समय की जरूरत थी। मैंने इस सत्र में शामिल होने के लिए एक कक्षा छोड़ दी। और वापस जाकर मैं अपने सभी दोस्तों को फोन करके बताने वाला हूं कि मैंने सद्गुरु को देखा और सभी बढ़िया बातें जो उन्होंने आज हमारे साथ साझा कीं।’
‘मैंने सद्गुरु के बारे में सुना था मगर उन्हें सामने सुनना एक बढ़िया अनुभव था। उनकी शख्सियत, उनके वाइब्स बहुत सकारात्मक और ऊर्जा देने वाले हैं। हम बता नहीं सकते कि उनकी मौजूदगी में हम कैसा महसूस करते हैं।’
‘सद्गुरु ने हमारे सवालों के जो जवाब दिए, उसने वास्तव में हमें सिखाया कि हम अपने रोजमर्रा के जीवन में जिन हालातों का सामना करते हैं, उन्हें कैसे संभालना है।’
युवाओं जुड़ो सत्य से! अभियान की मडिया कवरेज
एसआरसीसी की एक छात्रा आशा गुप्ता ने युवाओं जुड़ो सत्य से अभियान के दिल्ली में आयोजित हुए पहले कार्यक्रम मे हिस्सा लेने के अनुभव एक ब्लॉग में व्यक्त किए। उनके अनुभव पढ़ें...
6 सितंबर, 2018 को एसआरसीसी में विश्व प्रसिद्ध योगी, सद्गुरु से मिली मुझे प्रेरणा।
बिजनेसवर्ल्ड, बिजनेस न्यूज वेबसाइट, ने एसआरसीसी में 4 सितंबर को आयोजित कार्यक्रम पर एक लेख प्रकाशित किया।
युवाओं जुड़ो सत्य से! सद्गुरु ने एसआरसीसी, दिल्ली में आयोजित किया इस अभियान का पहला कार्यक्रम।
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