किसे कहेंगे आप योगी, और किसे मिस्टिक?
मिस्टिक (दिव्यदर्शी )शब्द हम सुनते आ रहे हैं, हो सकता है मन में यह सवाल उठता होगा कि आखिर एक मिस्टिक होता कौन है ? और कौन होता है योगी ? क्या ये दोनों एक ही अर्थ वाले दो शब्द हैं ?
मिस्टिक (दिव्यदर्शी ) शब्द हम सुनते आ रहे हैं, हो सकता है मन में यह सवाल उठता होगा कि आखिर एक मिस्टिक होता कौन है ? और कौन होता है योगी ? क्या ये दोनों एक ही अर्थ वाले दो शब्द हैं ?
प्रश्न:
सद्गुरु, आपको दिव्यदर्शी कहा जाता है। मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि दिव्यदर्शी होने का आखिर मतलब क्या है?
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सद्गुरु:
इससे पहले कि मैं आपके सवाल का जवाब दूं, मैं एक बात साफ कर देना चाहता हूं। इस बातचीत के दौरान हो सकता है कि मैं आपको थोड़ा अहंकारी और आक्रामक लगूँ, लेकिन मैं आपको यह समझाना चाहता हूं कि मैं ऐसा ही बना हूं।
आखिर दिव्यदर्शी होता कौन है? सीधे तौर पर कहूं तो बात इतनी है कि जीवन की अपनी समझ या बोध के स्तर पर अगर आपने कोई गलती नहीं की है तो आप दिव्यदर्शी हैं। अगर आपकी समझ तमाम विचारों, भावों या पहचानों से प्रभावित नहीं है, अगर आप चीजों को ठीक वैसे ही देख पा रहे हैं, जैसी वे हैं, तो दुर्भाग्य से आपको दिव्यदर्शी करार दिया जाता है।
प्रश्न:
और योगी कौन होते हैं?
सद्गुरु:
योग का अर्थ है जुडऩा। आज आधुनिक विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि इंसानी शरीर के हर परमाणु का इस संपूर्ण सृष्टि के साथ हरदम लेन-देन हो रहा है। इस तरह से यह पूरी सृष्टि एक खास तरीके से आपस में जुड़ी हुई है। लेकिन आप सोचते हैं कि आप अलग हैं, आप एक अलग इकाई हैं। जब आप इस विचार को छोड़ देते हैं और जीवन के संपूर्ण एकत्व को अनुभव करने लगते हैं, तो इसे योग कहते हैं।
आप जो सांस छोड़ते हैं, उससे पेड़ सांस लेते हैं। पेड़ जो सांस छोड़ते हैं, वह आपके सांस लेने के काम आता है। ऐसे में आप पेड़ और इंसान को कभी भी अलग करके नहीं देख सकते। जब कोई व्यक्ति अपने अनुभव में इसे महसूस करने लगता हैं तो उसे योगी कहा जाता है।