सदगुरु : जब एक मनुष्य पैदा होता है, तो एक खास सॉफ्टवेयर उसके अंदर बैठ जाता है, जो उसके द्वारा ढोई जाने वाली जानकारी, ऊर्जा और समय का मेल होता है। ये तीनों साथ मिलकर जीवन के विभिन्न पहलुओं को तय करेंगे। ये तीनों साथ मिलकर तय करेंगे कि कोई व्यक्ति कब तक जीवित रहता है और वह किस तरह जीता है। अगर ऐसा है, तो क्या यह पूरा पहले से ही तय है? जानकारी निश्चित रूप से पहले से तय होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप नई जानकारी अंदर नहीं ले सकते। बात बस इतनी है कि आपके पास किस किस्म की जानकारी है, उस आधार पर वह आपको कुछ खास तरह की चीजों की ओर धकेलती या खींचती है। लेकिन यह आपको आज इस पल ताजी जानकारी अंदर लेने से नहीं रोकती। 

अगर आप अपनी प्रवृत्तियों के 100 प्रतिशत गुलाम हैं, तो जीवन पूर्वनिर्धारित होता है। हम आसनी से बता सकते हैं कि क्या होगा।

जानकारी के इस पूरे ढेर को संचित कर्म कहा जाता है। जानकारी की प्रकृति के आधार पर, जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए ऊर्जा आबंटित होती है। अगर कर्मगत जानकारी भौतिकता की ओर झुकी हुई है, तो आप देखेंगे कि ऊर्जाएं स्वयं को, आप जो हैं उसकी भौतिक संरचना में स्वाभाविक रूप से केंद्रित कर लेती हैं। अगर जानकारी आपकी बौद्धिक प्रक्रिया की ओर झुकी हुई है, तो उसी के मुताबिक ऊर्जा उस गतिविधि के लिए मिल जाती है। अगर जानकारी बहुत भावनात्मक है तो ऊर्जा खुद को उस आयाम के लिए रख लेती है। अगर वह एक आध्यात्मिक आयाम की ओर झुकी हुई है, तब ऊर्जा खुद को उस दिशा में लगा देती है। 

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यह आबंटन स्वाभाविक प्रवृत्तियों के द्वारा होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति उसका बंटवारा फिर से नहीं कर सकता। वह कर सकता है लेकिन अगर आप बस अपनी प्रवृत्तियों से चलते हैं तो, हाँ, जीवन पूर्वनिर्धारित होता है। अगर आप अपनी प्रवृत्तियों के 100 प्रतिशत गुलाम हैं, तो जीवन पूर्वनिर्धारित होता है। हम आसनी से बता सकते हैं कि क्या होगा। 

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता

ऊर्जा का पुनः बंटवारा - हम अपनी ऊर्जाओं को कैसे संभालते हैं, हम किस दिशा में ऊर्जाओं को केंद्रित करते हैं, क्या हम उसे बढ़ाते हैं या हम उसे घटाते हैं - ये चीजें काफी हद तक हमारे हाथ में हैं। लेकिन तीसरा आयाम - जो व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक है - समय है। समय हर वक्त खिसकता रहता है। आप उसे धीमा नहीं कर सकते, आप उसे तेज नहीं कर सकते। आप अपनी ऊर्जा को बचाकर रख सकते हैं, आप अपनी ऊर्जा को आस-पास फेंक सकते हैं, आप उसको विकसित कर सकते हैं, आप उसे अत्यधिक विशाल या मंद बना सकते हैं, लेकिन समय हमेशा बीतता रहता है। 

अगर आप इन तीनों चीजों को सचेतन रूप से संचालित कर सकते हैं, तो आप हर तरीके से आजाद होते हैं - 100 प्रतिशत आजाद। वही निर्वाण है। वही मुक्ति है।

समय की अपनी ही बुद्धिमत्ता होती है और उसका प्रवाह कर्मगत जानकारी और व्यक्ति के सिस्टम में उपलब्ध ऊर्जा के आबंटन के कुछ खास मानदंडों के अनुसार होता है। क्या हम इस बारे में कुछ नहीं कर सकते? कर सकते हैं, लेकिन यह जीवन के दूसरे दो आयामों की अपेक्षा हाथ न आने वाला काफी ज्यादा है। व्यक्ति के जीवन में दूसरे दो को ज्यादा आसानी से संभाला जा सकता है। समय को अपने हाथ में लेने की अपेक्षा, ऊर्जा को पैदा करना और उसे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल करना, और अपनी प्रवृत्तियों को अपने विचार, भावना, और गतिविधि की प्रकृति को तय न करने देना काफी आसान है। आदियोगी ने भी समय को तभी अपने हाथ में लिया जब वह कुछ खास अवस्थाओं में थे। जब वह ऐसी अवस्थाओं में थे, तब हम उन्हें काल भैरवकहते हैं। 

व्यक्ति के जीवन और मृत्यु के दौर या प्रकृति को समय तय करता है। जीवन और मृत्यु दोनों समय के दायरे में हैं। जिसको समय पर महारत होती है, उसे जीवन और मृत्यु पर भी महारत होती है। वह तय कर सकता है कि जीना चाहता है या मरना चाहता है। जिसे अपनी ऊर्जाओं पर महारत प्राप्त है, वह अपने क्रियाकलाप की प्रकृति को, और वह कैसे जीता है, उसको तय करेगा। उसके पास अपने जीवन पर पूर्ण महारत होती है लेकिन अपनी मृत्यु पर नहीं। जिस व्यक्ति के पास अपनी जानकारी पर महारत होती है, या जिसके पास जानकारी-जनित प्रवृत्तियों पर महारत होती है, या जो व्यक्ति स्वयं के द्वारा ढोई जाने वाली कर्मगत जानकारी से पैदा हुई प्रवृत्तियों से आजाद होता है, उसे अपने जीवन की गुणवत्ता पर - वह भीतरी तौर पर प्रसन्न है या अप्रसन्न है - इस पर महारत होती है। 

ये तीन घटक साथ मिलकर जीवन का निर्माण करते हैं। जो आप अभी हैं, वह इन तीन घटकों का एक साथ नतीजा है। अगर व्यक्ति इन तीन आयामों को अंदर आत्मसात कर लेता है, कि आप समय, ऊर्जाओं और जानकारी का मेल हैं, अगर आप इन तीनों चीजों को सचेतन रूप से संचालित कर सकते हैं, तो आप हर तरीके से आजाद होते हैं - 100 प्रतिशत आजाद। वही निर्वाण है। वही मुक्ति है।