आधुनिक शिक्षा प्रणाली से बचाएं अपने बच्चे को
सद्गुरु से सवाल पूछा गया कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कुछ ऐसी कमियाँ हैं जिन्हें ठीक किये जाने की जरुरत है। सद्गुरु बता रहे हैं कि अचानक शिक्षा प्रणाली को बदलना संभव नहीं, पर अपने बच्चे पर इसके बुरे प्रभावों को कम करने के लिए आप कुछ कदम उठा सकते हैं।
प्रश्न : सद्गुरु हम लोग युवाओं को इंजीनियरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, पीएचडी जैसी शिक्षा देने पर काफी पैसा और संसाधन खर्च करते हैं। डिग्रियों का यह सिलसिला जारी रहता है। हम लोग अपने जीवन का बड़ा हिस्सा बच्चों की परवरिश में खर्च करते हैं, लेकिन कोई भी हमें यह शिक्षा नहीं देता कि कैसे एक वैवाहिक जीवन को या पालन-पोषण की जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाया जाए? क्या शिक्षण प्रणाली में कोई कमी है और इस दिशा में कुछ किए जाने की जरूरत है?या यह स्वाभाविक तौर पर अपने आप आनी चाहिए?
शिक्षा व्यवस्था को अचानक नहीं बदल सकते
सद्गुरु : आप जानते हैं कि यह स्वाभाविक तौर पर खुद नहीं आती। यह विकल्प नहीं है। एक पीढ़ी पहले तक शादी व बच्चों की देखरेख के बारे में हमें हर चीज सिखाई-बताई जाती थी। अब हमारी शिक्षा प्रणाली सिर्फ उद्योग और कारोबार जगत की सेवा कर रही है, न कि मानव जाति की। हमारी शिक्षा व्यवस्था महान इंसान पैदा करने के लिए काम नहीं कर रही, यह तो बस इंजीनियर, डॉक्टर, मैनेजर व सुपरवाइजर पैदा करने के लिए काम कर रही है। आप अपने यहां चल रही एक बड़ी सी आर्थिक मशीन का सिर्फ एक पुर्जा हैं। ऐसे में अचानक बड़े पैमाने पर शिक्षा व्यवस्था को बदल देने का तो सवाल ही नहीं उठता, लेकिन अगर आप इच्छुक हैं तो अपने व अपने बच्चों के लिए इसमें बदलाव ला सकते हैं।
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बाल्यावस्था - जिसमें सिर्फ खेलना और खाना और सोना होता था
अपने यहां एक व्यवस्था थी जो ‘वर्णाश्रम धर्म’ कहलाती थी, जो जीवन के अलग-अलग चरण होते थे, जिसके लिए हर इंसान को तैयार होना होता था। जन्म से लेकर बारह साल तक की उम्र ‘बाल्यावस्था’ कहलाती थी। इस उम्र में बच्चों को कुछ नहीं करना होता था। बस खाना, खेलना और सोना। न एबीसीडी, न एक-दो-तीन का चक्कर, कुछ नहीं होता था। उसकी वजह थी कि मस्तिष्क के अपने पूर्ण आकार तक विकसित होने से पहले अगर इसमें किसी तरह की जानकारी, सूचना या लक्ष्य डालते रहा जाए तो इसके अपने पूर्ण आकार तक विकसित होने की संभावना को नुकसान होता है।
बच्चों को पूरी क्षमता तक बढ़ने देना
भारत में या संभवत: हर जगह, वे किसान जिनके पास आम का बगीचा होता है, वे एक खास तरह की प्रक्रिया अपनाते हैं।
अपने बच्चे को पड़ोसी के बच्चे से बेहतर बनाने की चाहत
शायद हम यह जानते भी हैं, लेकिन हम अपने बच्चे को पड़ोसी के बच्चे से थोड़ा बेहतर बनाना चाहते हैं।
हर तरह के प्रभाव से बचाना होगा बच्चों को
अगर आप बच्चों को आवश्यक सुविधाएं देंगे, भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सहयोग करेंगे, तो वे निश्चित तौर पर ऐसे काम कर पाएंगे, जो शायद आप खुद भी न कर सके हों।
जहां तक शिक्षा व्यवस्था की बात है तो आप यह उम्मीद बिल्कुल न करें कि यह कल बदलने जा रही है। इसलिए कम से कम आप अपने बच्चे को उससे बचाइए। इसके लिए हम एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था स्थापित कर रहे हैं, जहां किसी एक को दूसरे से बेहतर नहीं बनाया जाए, जो सिर्फ यह देख सके कि आपका विस्तार किस सीमा तक किया जा सकता है।