आप मिस्टेक हैं या मिस्टिक?
सद्गुरु कहते हैं दुनिया में बस दो तरह के लोग हैं – मिस्टेक या मिस्टिक। और सबसे मजेदार बात कि बस एक छोटी सी बात आपको मिस्टेक से मिस्टिक बना सकती है। क्या है वो बात?
सद्गुरु कहते हैं दुनिया में बस दो तरह के लोग हैं – मिस्टेक या मिस्टिक। और सबसे मजेदार बात कि बस एक छोटी सी बात आपको मिस्टेक से मिस्टिक बना सकती है। क्या है वो बात?
प्रश्न:
मिस्टिक या दिव्यदर्शी क्या होता है?
सद्गुरु:
दुनिया में सिर्फ दो तरह के लोग हैं, ‘मिस्टिक’ यानी दिव्यदर्शी और ‘मिस्टेक’ यानी गलती। सरल शब्दों में कहें तो अगर आपके बोध ने गलती की है, तो आप मिस्टेक हैं। अगर आपका बोध गलतियों से परे चला गया है और जीवन को उसके वास्तविक रूप में देख पा रहा है, तो आप मिस्टिक हैं। अगर आप हर चीज को उस रूप में देख पा रहे हैं, जैसी वह वाकई है, तो आप दुनिया की नजरों में एक दिव्यदर्शी हैं। अगर आपके बोध में बड़ी गलतियां हैं, तो आप एक गलती हैं।
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क्या मेरी बातें ज्यादा कठोर लग रही हैं? अगर आप चाहते हैं कि मैं अच्छी-अच्छी बातें कहूं तो मैं कह सकता हूं, ऐसा करना मुझे आता है। मैं लोगों के बारे में अच्छी बातें बोल सकता हूं, लेकिन अगर आप जानना चाहते हैं, ज्ञान चाहते हैं, तो जितनी जल्दी आप अपने अंदर के सारे बकवास को बाहर निकाल दें, उतना ही अच्छा होगा।
हम जीवन को जिस तरह महसूस करते हैं, वह पूरी तरह गलत है। जब वह सही हो जाता है, तो लोग आपको दिव्यदर्शी समझते हैं क्योंकि आप जीवन को इस तरह देखना या महसूस करना शुरू करते हैं कि आप कभी उसे तर्क की कसौटी पर नहीं कस सकते। वह तर्क से काफी परे है। तर्क सिर्फ आपके जीवन का एक छोटा सा हिस्सा है, आप कभी जीवन को उसमें नहीं ढाल सकते। आप तर्क को अपने जीवन में शामिल कर सकते हैं मगर जीवन को तर्क में नहीं।
जब जीवन का आपका अनुभव इंद्रिय बोध की सीमाओं से परे चला जाता है, तब आप चीजों को अपने हिसाब से कर या करवा सकते हैं और तब आपको दिव्यदर्शी या रहस्यवादी कहा जाता है। आप जीवन का अनुभव उस रूप में करते हैं, जिसे दूसरे लोग नहीं जान पाते, आपके हिसाब से चीजें उस तरह होती हैं, जिसे दूसरे नहीं समझ सकते। इसलिए वे आपको दिव्यदर्शी कहते हैं। इसका मतलब है कि वे स्वीकार कर रहे हैं कि वे एक गलती हैं। गलती होने में कुछ गलत नहीं है मगर उस गलती का एहसास न होना सबसे बड़ी गलती है। जब हम पैदा हुए, तो हमारी इंद्रियां कुदरती रूप से सक्रिय हो गईं क्योंकि जीवित रहने के लिए यह जरूरी था। जीवित रहने की प्रक्रिया के लिए जो कुछ भी जरूरी था, वह आपके पैदा होते ही सक्रिय हो गया।
मैं आपको समझाना चाहता हूं कि जब आप अपनी मां की कोख में थे, तो आंखें होते हुए भी आप देख नहीं सकते थे। कान होते हुए भी आप सुन नहीं सकते थे – वरना आप जान जाते कि अंदर क्या माहौल था। आपके पैदा होने के बाद ही, जन्म के समय आपकी इंद्रियां सक्रिय हुईं क्योंकि बाहर जीवित रहने के लिए यह जरूरी था।
मसलन मान लीजिए आपको पैदा होते ही जंगल में छोड़ दिया जाता और आप कभी मानव समाज के संपर्क में नहीं आते। उसके बाद अगर खाने की कोई चीज आपके सामने आती, तो क्या आप उसे लेकर अपने कानों में ठूंस लेते? क्या ऐसा है? क्या आप खाने की चीज को कानों में ठूंस लेंगे? आपको पता होगा कि उसे कहां डालना है। लेकिन क्या आपको पता होगा कि पढ़ना कैसे है, लिखना कैसे है, कोई भाषा कैसे बोलनी है, क्या आपको पता होगा? नहीं। उसके लिए आपको प्रयास करना पड़ा। आज भाषा आपके अंदर से सहजता से फूट रही है, मगर मैं चाहता हूं कि आप समय में वापस जाएं जब आप दो-तीन साल के थे। वह कमबख्त अ या आ लिखना कितना मुश्किल था आपके लिए। आपने उसे सीखने के लिए हजारों बार लिखा। क्या ऐसा नहीं है? सिर्फ अ को सही लिखने से पहले आपने उसे कितनी बार लिखा? सैंकड़ों बार। उस कोशिश के कारण, आज आप सहज रूप से लिख बोल सकते हैं।
जो भी चीज जीवित रहने की प्रक्रिया से परे है, वह आपके लिए तब तक उपलब्ध नहीं होती, जब तक आप कोशिश नहीं करते। सभी धर्म, इस धरती की सभी आध्यात्मिक परंपराएं इसी कोशिश का नतीजा हैं। बदकिस्मती से, समय के साथ इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी, पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते हुए बहुत सी चीजें विकृत हो गईं और यह बस रस्मों, रीति-रिवाजों और मान्यताओं का एक ढेर बन कर रह गया। वरना हर धर्म जानने, अनुभव करने और अपनी खुशहाली के लिए इंसानी कोशिशों का नतीजा था। आगे चलकर वह विकृत हो गया। जो भी एक गलती है, वह एक भावी दिव्यदर्शी है। अगर आपको लगता है कि आप एक गलती नहीं हैं, तो फिर आपका कुछ नहीं हो सकता, आप कट्टर या धर्मांध हैं। अगर आपको लगता है कि हर मामले में आप बिल्कुल सही हैं, तो आप कट्टर हैं। अगर आप जानते हैं कि आप एक गलती हैं, तो आपमें दिव्यदर्शी होने की संभावना है।