जीवन को मशीन की तरह मत चलाइये
हम अपने दैनिक जीवन में एक ही रूटीन के अनुसार सारे काम करते हैं, और फिर जीवन में आनंद की कमी पाते हैं। जानते हैं कि कैसे आदत से मजबूर होकर काम करने से ऐसा होता है
छुटपन से ही बड़ों की यह नसीहत सुनते-सुनते कान पक गए हैं, “बुरी आदतों का गुलाम न बनो। बेटे, जिंदगी में अच्छी आदतें पाल लो।”
आदत से किए जाने वाले काम आनंद नहीं देंगे
आप मुझसे पूछेंगे तो मैं यही कहूंगा, “कोई काम करते हुए आपके मन में खुशी का अनुभव न होता हो, आदतन किया जाने वाला यह काम लचर ही होगा।”
आप घड़ी में अलार्म लगाकर सुबह उठते हैं, अफरा-तफरी के साथ नित्यकर्म से निपट, नहा-धोकर नाश्ता ठूंस लेने के बाद स्कूटर, गाड़ी या बस से दफ्तर पहुंचते हैं। वहां पर भी शाम तक उन्हीं अभ्यस्त कामों को लकीर के फकीर की तरह पूरा करते हैं। काम पूरा करके घर लौटते हैं, भोजन करने के बाद सोकर, फिर उठकर...
गाड़ी में जुता हुआ बैल जिस तरह गाड़ी खींचते हुए रोज उसी निश्चित स्थान जाकर लौटता है, चालीस-पचास सालों को इसी भांति घिसाकर आंखें मूंद लेना... यह भी कोई जिंदगी है?
मशीन के पुर्जे सा जीवन है ये
एक बड़ी मशीन के अंदर लगे हुए सैकड़ों पुर्जों में एक हैं आप, दांतों वाले उन चक्रों में एक, बस। पास वाला पहिया जब आपको चलाता है उसके अनुसार आप अपने निकट लगे पहिए को घुमाते हैं।
माना कि आप किसी संस्था के अध्यक्ष हैं या कारखाने के मालिक हैं। फिर भी यदि आप आदत के गुलाम हो जाएं तो आपकी आजादी छिन जाएगी न?
शंकरन पिल्लै एक दफा शराब पीने के बाद ‘बार’ से निकले तो देर बहुत हो गई थी।
दोस्तों ने उन्हें छेड़ा, “अरे पिल्लै, आठ बजे तक घर पहुंच जाना चाहिए, यही है न तुम्हारी बीबी का हुक्म!” शंकरन पिल्लै ने सीना तानकर जवाब दिया, “नो नो अपने घर में मुझे पूरी आजादी है।” फिर बड़ी मस्ती के साथ कदम बढ़ाते हुए घर का रास्ता लिया। द्वार पर पहुंचते ही आफत का अनुमान हो गया। बीबी की कमजोरी का उन्हें पता जो है। बड़ी फुर्ती के साथ उसे पार करते हुए अंदर भागे। मोटी-तगड़ी बीबी तेजी से उनके पीछे दौड़ नहीं पाई। घर के कई कोने में खदेड़े गए शंकरन पिल्लै आखिर पलंग के नीचे जाकर लेट गए।
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बीबी से पलंग के नीचे झुकते नहीं बना। वह चिल्ला उठी, “अरे, तुम चूहे हो या इन्सान! बाहर निकलो न!” शंकरन पिल्लै ने बड़ी शान से जवाब दिया, “मैं इस घर का राजा हूं। घर के अंदर कहां लोटना है, इसे तय करने की पूरी आजादी मुझको है, समझी?”
आज़ाद होने का ख्याल
आप में से कई लोग शंकरन पिल्लै की ही तरह आजादी के साथ जीने का ख्याल करते हुए अपने आपको ठग रहे हैं न?
काम पर लगने के पहले दिन आप जिस कुर्सी पर बैठे थे, उस समय वह स्वर्ग के समान लगी थी। आज वही कुर्सी आपके अंदर रक्तचाप, अलसर और हृदय रोग पैदा करने वाला नरक बन गई। खुशी मिलेगी, यही सोचकर तो आपने इस नौकरी को चुना था। अभ्यस्त होने के बाद खुशी को छोडक़र आप बाकी सब चीजों का अनुभव कर रहे हैं, क्यों?
जैसे कि नाव पर यात्रा करने के लिए पतवार लेने वाला नाव को छोडक़र सिर्फ पतवार को जोर से थामे रहता है, आपकी हालत भी वैसी ही बन गई है न? अपनी सूझबूझ और चौकसी का उपयोग किये बगैर, लकीर के फकीर की भांति किये हुए काम को बार-बार करने के लिए आप भी कोई मशीन हैं?
एक ही पन्ने की सैकड़ों फोटो कापियाँ लेकर उन्हीं पन्नों को एक-एक करके पढऩे की तरह जिंदगी के कुल सारे दिनों को कैलंडर में फाड़ते रहने का नाम जिंदगी है क्या?
पूर्ण रूप से जीवन जीने का ढंग
पूर्ण रूप से जीने का मतलब क्या है, क्या आपने कभी इस पर सोचा है?
क्या आप किसी भी दिन सुबह-सुबह जगकर चहचहाती चिडिय़ों का कल-कल गान सुनकर मस्त हुए हैं?
भोजन चाहे जितना रुचिकर हो, पहले निवाले को स्वाद लेकर आनंद से खाते होंगे। बाद के निवालों को आपका हाथ आदतन मुंह में ले जाकर रखेगा। मुंह अपनी आदत के मुताबिक चबाकर रसदार बनाने के बाद अंदर भेजेगा। चबाने के बाद मुंह में रखा भोजन किस तरह आहार-नली के माध्यम से उतरकर पेट में जा रहा है, इस प्रक्रिया पर कभी पूर्ण रूप से गौर किया है?
सदा प्रसन्न रहना चाहिए अपनी इस इच्छा को भूलकर काम-धंधे में फंस जाने के कारण अब आप यही जवाब देंगे, “भला इन सब गोरखधंधों में कौन अपना समय बरबाद करेगा?”
क्या आप केवल नाक से सांस लेने और छोडऩे के लिए इस धरती पर आए हैं? सांस लेने और छोडऩे का काम तो प्राणों को शरीर में धारण करने मात्र के लिए काम आता है। जीवित रहना अलग है, जीना अलग है। एक पल...कम से कम एक पल का वक्त पूरी चेतना के साथ जीकर देखिए। आपके जीवन की दिशा ही बदल जाएगी।
मेरा मन अशांत होकर भटक रहा है, क्यों?
अगर ऐसी बात है तो लगातार दस मिनट अपने मन पर गौर कीजिए। वहां पैदा होकर चारों तरफ लहर की तरह भटकते चिंतनों को ईमानदारी के साथ एक कागज पर दर्ज करते जाइए।
संपूर्ण जागृति के बिना यदि आपका जीवन यंत्रवत् चलता रहे तो कभी भी मन को शांति नहीं मिलेगी। प्रत्येक क्षण पूर्ण रूप से जीवन को जीकर देखिए। मन बेकार के अपने भटकाव को बंद कर देगा।
थोड़े दिनों का अंतराल देकर उसे अपने मित्र को दिखाइए। अथवा आप खुद भी उसे पढ़ सकते हैं... आप आश्चर्य-चकित हो जाएंगे कि अब तक आप पागल हुए बिना कैसे रहते हैं।
इस समय भी आप में और किसी मानसिक रोगी में कोई अंतर नहीं है।
एकमात्र सांत्वना यही है, आपने अपने पागलपन को समाज के द्वारा तय की गई सीमा के अंदर रख छोड़ा है। उसे बाहर की दुनिया से छिपाकर नाटक खेलने की आपकी चालाकी ही अब तक आपकी रक्षा किए हुए है।
पागलपन को छिपाकर रखने मात्र से आपकी समस्याओं का अंत नहीं होगा।
संपूर्ण जागृति के बिना यदि आपका जीवन यंत्रवत् चलता रहे तो कभी भी मन को शांति नहीं मिलेगी। प्रत्येक क्षण पूर्ण रूप से जीवन को जीकर देखिए। मन बेकार के अपने भटकाव को बंद कर देगा।