मन को कैसे बचाएं बुरे असर से?
आस-पास होने वाली घटनाओं का हमारे मन पर बुरा असर पड़ सकता है। क्या मन को बुरे असर से बचाने के लिए बाहरी दुनिया से अपने भीतर की दुनिया को अलग करना सही है?
कुछ लोगों का यह कहना होता है कि आपके भीतर की दुनिया आपके आस-पास की दुनिया से कटी हुई होनी चाहिए, अलग होनी चाहिए। लेकिन क्या यह सोच सही है? क्या तब हम मनावैज्ञानिक समस्याओं से नहीं घिर जाएंगे? तब कैसी होनी हमारी भीतर की दुनिया?
मन तभी प्रभावित होता है, जब राय बनती है
जिसे आप अपने भीतर की दुनिया कहते हैं, वह सिर्फ आपके आसपास की दुनिया का प्रतिबिंब होना चाहिए। हालांकि यह सोच पूरी तरह से उन नैतिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं, जो कहते हैं कि बाहरी और भीतरी दुनिया का एक दूसरे से संपर्क नहीं होना चाहिए, वर्ना आप अपने आप-पास की चीजों से तुरंत प्रभावित होकर कलुषित हो जाएंगे। यह सच नहीं है। आप अपने आसपास की चीजों से तभी कलुषित या प्रभावित होते हैं, जब आप हर चीज के बारे में अपनी कोई राय बनाते हैं।
दरअसल आप किसी एक चीज को अच्छा मानते हैं और दूसरे को खराब। जिसे आप अच्छा मानते हैं, उससे आप जुड़ जाते हैं। जबकि जिसे आप खराब मानते हैं, उससे आप तुरंत छुटकारा पाना चाहते हैं। और फिर ये चीजे आपको भीतर से संचालित करती हैं। यह तरीका ठीक नहीं है। आपको अपने भीतर से ऐसा होना चाहिए कि जो चीज जैसी है, उसे वैसे ही देख पाएं। अगर आप किसी चीज को, जैसी वह है, उससे अलग होकर देखना चाहेंगे तो इसका मतलब है कि आप अपनी राय और पूर्वाग्रहों से दुनिया में मिलावट करने की कोशिश कर रहे हैं।
कोई राय न बनाएं
सृष्टा ने सृष्टि की रचना ही ऐसी की है कि इसे उसी तौर पर देखा जाए कि जैसी कि वह है, इसे वैसा बनाने की कोशिश मत कीजिए, जैसा आप इसे देखना चाहते हैं। यह एक अभद्रता है, फूहड़ता है, जिसे मानव जाति लगातार सृष्टि के रचयिता साथ करती आ रही है।
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हर चीज जिसे आप अतीत या भविष्य समझते हैं, वह सब यहीं हैं। अगर आप हर चीज को यथा स्थिति में देखेंगे, अगर यह पूरी सृष्टि आपके भीतर प्रतिबिंबित होने लगेगी, अगर आप अपने भीतर इस सृष्टि को उसी रूप में देख सकें, जैसी यह है, तो आप सृष्टि के स्रोत बन जाएंगे। भीतर और बाहर से इंसान को ऐसा ही होना चाहिए।
विचारों भावनाओं राय और पूर्वाग्रहों से ऊपर उठें
आप यो तो इस सृष्टि में उसका एक हिस्सा बन कर रहें, जो अपने आप में एक सुंदर बात है या फिर आप इस सृष्टि के स्रोत बन जाएं, जो अपने आप में शानदार होगा। लेकिन कोई मनोवैज्ञानिक केस होना कहीं से भी ठीक नहीं है। एक मनोवैज्ञानिक केस बनने के लिए आपको अपनी मां को तकलीफ देने की कोई जरूरत नहीं थी, जो उन्होंने आपको जन्म देकर उठाया होगा। आपकी जगह वह किसी फाइल को जन्म दे सकती थीं, जिसका कोई अध्धयन कर लेता। इसलिए एक मनोवैज्ञानिक केस होना कोई अच्छी बात नहीं है।
आप अपने जीवन में जो सबसे महत्वपूर्ण व महान काम कर सकते हैं, वह है कि खुद को विचारों या भावनाओं के पैटर्न के रूप में परिभाषित करने की बजाय परम को पाने की कोशिश करें। आपको एक सम्पूर्ण जीवन बनने की कोशिश करनी चाहिए। एक संपूर्ण जीवन बनने का यह मतलब नहीं कि आप बाहर जाएं और दुनिया में तमाम तरह के कारनामे करें। इसका मतलब है कि आप खुद को अपनी पूरी संभावनाओं तक विकसित होने दीजिए। हर व्यक्ति को यह करने की कोशिश करनी चाहिए।
हमारे काम बाहरी जरूरतों के अनुसार होने चाहिएं
हम वही करते हैं, जिसे किए जाने की जरुरत होती है। इन दिनों मैं जहां कहीं जाता हूं, लोग मुझे ऐसे इंसान के रूप में पहचानते हैं, जिसने हजारों पेड़ लगवाए, जिसने कई बच्चों को शिक्षित किया, जिसने कई अस्पताल बनवाए और भी न जाने कितने धर्मार्थ काम किए हों। मुझे कई बार इस सोच पर बेहद छटपटाहट होती है कि मैं किस रूप में पहचाना जा रहा हूँ। यह बेहद अफसोस की बात है कि आज भी लोग भोजन, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी चीजों से आगे नहीं देख पा रहे हैं।
मान लीजिए कि देश या दुनिया में वाकई सब कुछ अच्छा चल रहा होता तो हर व्यक्ति के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता, हर व्यक्ति शिक्षित होता, हर चीज अच्छी चल रही होती।
परिस्थितियां ठीक होने पर आत्मज्ञान चाहना स्वाभाविक है
अगर सबके पास खाने को पर्याप्त हो और उन्हें जो भी चाहिए, वो सब कुछ मुहैया होत तो भी अपनी परम संभावना तक जीवन के अनुभव को बढ़ाने की कोशिश हमेशा चलती रहेगी। आखिरकार अपनी परम संभावना तक पहुंचाना हर जीवन का लक्ष्य होता है। फिर चाहे कोई छोटा सा पौधा हो, पेड़ हो, हाथी हो या चीटी, स्त्री हो या पुरुष- सभी का अंतिम लक्ष्य अपने परम तक पहुंच कर एक संपूर्ण जीवन होना है।
लेकिन इस दुनिया में रहने के नाते हमें कुछ खेल खेलने पड़ते हैं। चलिए हम ऐसा खेल खेलते हैं कि जो हमारे आसपास मौजूद हर व्यक्ति के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद और अर्थपूर्ण हो। अगर आपके भीतर यह सृष्टि उसी रूप में प्रतिबिंबित होने लगे, जैसी कि वह है तो फिर आपको निजी तौर पर किसी भी तरह के खेल खेलने या किसी तरह के खेल में भाग लेने की जरूरत या बाध्यता नहीं होगी।