सद्‌गुरुआध्यात्मिक राह पर गुरु का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। कैसे आ सकते हैं हमारे जीवन में गुरु? क्या हम खुद उन्हें चुनने निकल सकते हैं?

निरख: सद्‌गुरु, आप कहते हैं कि हम गुरु को नहीं चुनते, गुरु हमें चुनते हैं। मेरा सवाल यह है कि शिष्य को चुनने का आपका क्या मानदंड है?

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सद्‌गुरु: मुझे पता है कि आजकल गुरु शब्द कई तरह से इस्तेमाल हो रहा है। हमारे पास फुटबॉल गुरु हैं, मैनेजमेंट गुरु हैं, बास्केटबॉल गुरु हैं और भी तमाम तरह के गुरु हैं। क्या आपको पता है कि गुरु शब्द के मायने क्या हैं? गु का मतलब होता है अंधकार और रु का अर्थ है जो उसे भगाता है। जो कोई भी अंधकार को दूर करता है, वह गुरु है। गुरु कोई इंसान नहीं हैं। वह एक संभावना हैं। आधुनिक भाषा में कहें तो गुरु एक जीवंत रोडमैप हैं। अगर यह रोडमैप मुफ्त में मिल रहा है तो फिर दिक्कत क्या है? इस रोडमैप को देखिए और सही दिशा की जानकारी लीजिए।

कल हमारे ड्राइवर ने कहा, ‘मैं इस जी.पी.एस. के निर्देशों को नहीं सुनना चाहता। आदेश देती हुई यह महिला मुझे पसंद नहीं। यह महिला मुझे हमेशा बताती रहती है कि अब दायें मुड़ो, अब बायें मुड़ो।’ मैंने कहा, ‘दायें-बायें तो तुम वैसे भी मुड़ ही रहे हो। अगर वह ऐसा करने को कह भी रही है तो तुम्हें दिक्कत क्या है? कई बार तुम गलत मोड़ भी तो ले लेते हो।’

लेकिन यह मेरा चयन नहीं है। दुर्भाग्य से चयन आपके हाथों में है। मैं इंतजार कर रहा हूं कि कब आप चुनते हैं।
उसने कहा, ‘नहीं, नहीं, मुझे उसकी बातें सुनना पसंद नहीं है’। तो अगर आप इस तरह के इंसान हैं, तो एक बेहद सामान्य सी चीज को पाने में पूरा जीवन बीत जाने पर भी आपको कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। जो चीज आपके जीवन की शुरुआत में हो जानी चाहिए थी, वह जीवन के अंत में हो सकती है या नहीं भी हो सकती। अगर आपको यह मंजूर है तो आप अपने हिसाब से जोखिम उठा सकते हैं। लेकिन अगर आप व्यावहारिक और कारोबारी बु़िद्ध वाले हैं, तो आप बस अपनी मंजिल पर पहुंचना चाहते हैं। इससे आपको कोई मतलब नहीं होता कि कैसे। तब आप हर किसी की सुनने को तैयार रहते हैं। लेकिन आप अगर पहले किस्म के इंसान हैं, तो आप किसी की बात सुनने को तैयार तब होते हैं, जब अज्ञानता का दर्द आपको तोड़ देता है।

क्या आपमें जानने की तीव्र इच्छा है?

मान लें आप किसी अजनबी जगह पर जाते हैं, तो हो सकता है कि शुरु में आप हर तरह से तैयार हों। उस समय आप सशक्त और हौसले से भरे होते हैं, तो आप किसी से कुछ नहीं पूछते। आपकी जहां इच्छा होती है, आप जाते हैं। अब मान लें कि आप किसी निर्जन स्थान पर फंस गए। आपका पानी और भोजन खत्म हो गया। भूख और प्यास से आप तड़प रहे हैं। ऐसे में अगर कोई अनपढ़ आदमी भी आपके सामने आ जाए तो आप उससे भी राय मांग लेंगे। आप उससे पूछ लेंगे कि भाई जरा रास्ता बता दीजिए।

चयन यह नहीं कि किस गुरु को चुनना है, बल्कि चयन इस बात का है कि आप वाकई जानने को बेचैन हैं या नहीं। अगर आप किसी भी कीमत पर जानने के लिए तैयार हैं, तो गुरु आपके दरवाजे पर खड़ा है, वह दूर नहीं है।
तो सब इस बात पर निर्भर करता है कि कहीं पहुंचने के लिए आप कितने उतावले हैं। अगर आप अज्ञानता के दर्द से वाकई परेशान हैं, अगर न जानने का कष्ट आपको परेशान करता है, अगर इसने वाकई आपको उलझन में डाला हुआ है तो आप किसी की भी बात सुनने को तैयार होंगे। और जब आपमें सुनने की तत्परता आ जाती है, तो ऐसे कुछ लोग हैं जो हमेशा इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि बहुत कम लोग हैं जो सुनने को राजी हैं। मैंने जितने लोगों को दीक्षा दी है, उनमें ऐसे लोगों की संख्या कहीं ज्यादा है जिनसे मैं कभी मिला ही नहीं। मैंने उन्हें शारीरिक रूप से कभी नहीं देखा, हो सकता है मैं उन्हें कभी देख भी न पाऊं, लेकिन उनके लिए मैं एक जीवंत शक्ति हूं। हो सकता है, वे मेरा चेहरा न पहचानते हों, लेकिन उन्हें पता है कि कुछ है, जिसने उन्हें स्पर्श किया है और यह आगे भी उन्हें मिल रहा है।

गुरु की खोज मत करें

तो गुरु की खोज करना समय की बर्बादी है। अगर आप खोजेंगे तो आप वही खोजेंगे जो आपको पसंद होगा। ऐसा गुरु आपके लिए अच्छा नहीं होगा। अगर आप उनके पास बैठने पर हर तरह से डरते हैं, फि र भी आप उनके पास बैठना चाहते हैं - अगर ऐसे भाव आते हैं, तो वही गुरु आपके लिए सही हैं। तो शॉपिंग मत कीजिए।

गुरु कोई इंसान नहीं हैं। वह एक संभावना हैं। आधुनिक भाषा में कहें तो गुरु एक जीवंत रोडमैप हैं। अगर यह रोडमैप मुफ्त में मिल रहा है तो फिर दिक्कत क्या है?
आप अपनी पसंद की बहुत सारी चीजों की शॉपिंग करते हैं, अब अपनी पसंद के गुरु की शॉपिंग मत कीजिए, बस जानने के अपनी ललक को और तीव्रता दीजिए। अगर जानने की आपकी इच्छा गहरी है तो गुरु हमेशा आएंगे, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन इसके लिए अपने दरवाजे खोलकर मत रखिएगा कि वह आज आएंगे या कल आएंगे। जरुरी नहीं कि वे सशरीर ही आएं, लेकिन हां मार्गदर्शन अवश्य आएगा। अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप उस इंसान से मिले या नहीं? वैसे भी उस इंसान से न मिलना कई मायनों में अच्छा ही है, क्योंकि फि र आप उसके शब्दों में नहीं उलझेंगे। जो होना है, वह हो जाएगा और यही आपके लिए सबसे अच्छी बात है। चूंकि आप उनके चरणों से नहीं लिपटे हैं, इसलिए वह गुरु भी दुनिया भर में आराम से घूमने के लिए स्वतंत्र होंगे। तो यह हर तरह से सही है।

गुरु के नहीं हमारे हाथ में है चयन

आपने पूछा था कि मेरे चयन का क्या मापदंड या तरीका है? काश मैं चुन पाता! अगर मैं यह तय करने की स्थिति में होता कि किसे ये सब चीजें दी जानी चाहिए तो मैं यह सुनिश्चित कर देता कि यह सबके लिए होना चाहिए। मैं शायद पूरी दुनिया को स्पर्श करता। लेकिन यह मेरा चयन नहीं है। दुर्भाग्य से चयन आपके हाथों में है। मैं इंतजार कर रहा हूं कि कब आप चुनते हैं।

जरुरी नहीं कि वे सशरीर ही आएं, लेकिन हां मार्गदर्शन अवश्य आएगा। अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप उस इंसान से मिले या नहीं?
चयन यह नहीं कि किस गुरु को चुनना है, बल्कि चयन इस बात का है कि आप वाकई जानने को बेचैन हैं या नहीं। अगर आप किसी भी कीमत पर जानने के लिए तैयार हैं, तो गुरु आपके दरवाजे पर खड़ा है, वह दूर नहीं है। जरूरी नहीं कि वह इंसानी रूप में ही आपके सामने आए। उसकी ऊर्जा और उसका मार्गदर्शन आपको हमेशा मिलता रहेगा। तो मेरी सलाह यही है कि गुरु की शॉपिंग के लिए न निकलें, बस अपनी इच्छा को गहरा करें, आपको गुरु जरुर मिलेगा, आपको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।