सद्‌गुरुभारतीय आध्यात्मिक परंपरा में भिक्षा मांगने की क्या अहमियत है? सद्‌गुरु इसे समझाने के लिए एक बुद्धिमान भिक्षुक की कहानी सुना रहे हैं।


पुराने समय में एक भिक्षुक था जो भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करता था। वह जीवन भर एक ही फटा-पुराना कोट पहनता रहा। धीरे-धीरे लोग हर तरह का समाधान पूछने के लिए उसके पास जाने लगे, और फिर धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। वह एक बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में मशहूर हो गया। यह खबर वहां के राजा तक पहुंची और वह भी सलाह लेने के लिए भिक्षुक के पास जाने लगा।

एक दिन राजा ने कहा, ‘आपको भिक्षुक नहीं होना चाहिए, आप मेरे मंत्री बन जाइए।’ भिक्षुक ने जवाब दिया, ‘आपका प्रस्ताव मेरे लिए कोई अर्थ नहीं रखता लेकिन अगर इससे मैं लोगों के लिए उपयोगी बन पाता हूं, तो मैं एक शर्त पर यह प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए तैयार हूं - महल में मेरे पास एक कमरा ऐसा हो, जहां न कोई आ सके, न वहां कोई छानबीन हो। वहां आपको भी नहीं आना होगा। अगर कोई उस कमरे में आया या छानबीन की तो मैं आपका मंत्रीपद छोड़ दूंगा।’ राजा ने कहा, ‘ठीक है, मैं आपको एक कमरा दे दूंगा। उसे आप जैसे चाहे, वैसे रखें। मैं आपके कमरे में क्यों छानबीन करूंगा?’

कुछ सालों तक ऐसा ही चलता रहा। भिक्षुक जो अब राजा का प्रधान मंत्री बन चुका था, अपने भिक्षुक वाले कोट में इधर-उधर नहीं घूम सकता था, इसलिए उसने ठीक से कपड़े पहनने शुरू कर दिए। समय के साथ वह बहुत लोकप्रिय हो गया और राजा तथा जनता दोनों उसे बहुत पसंद करने लगे। उसकी लोकप्रियता और बेजोड़ बुद्धिमत्ता देखकर बाकी मंत्री उससे जलने लगे। कुछ मंत्रियों के दिमाग में आया, ‘जरूर उस कमरे में कोई संदिग्ध चीज है। इसीलिए वह किसी को उसमें घुसने नहीं देता। यह जरूर राजा और राज्य के खिलाफ कोई साजिश होगी वरना वह इस तरह उस कमरे की सुरक्षा क्यों करता?’ 

आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाला इंसान अगर आपके घर के सामने खड़े होकर भोजन मांगता था और आप उसे भोजन देते थे, तो यह दोनों के लिए सौभाग्य की बात समझी जाती थी। आजकल इन परंपराओं का दुरुपयोग हो रहा है।

अफवाह फैलते-फैलते राजा के कानों तक पहुंची। राजा को भी गुस्सा आ गया और एक दिन उसने मंत्री से कहा, ‘मैं देखना चाहता हूं कि उस कमरे में क्या है।’ मंत्री ने कहा, ‘ठीक है, आप देख सकते हैं लेकिन जैसे ही आप उस कमरे में प्रवेश करेंगे, मैं मंत्री पद छोड़कर वापस चला जाऊंगा।’ राजा उसकी बुद्धिमत्ता का कायल था, और उसे खोना नहीं चाहता था। इसलिए उसने खुद पर काबू कर लिया।

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लेकिन कुछ समय बाद राजा फिर बेचैन हो गया। लोग उसके कान भरते, ‘आप राजा हैं, आपके महल में कोई चीज आपसे छिपी नहीं रहनी चाहिए।’ एक दिन राजा अड़ गया, ‘मुझे वह कमरा देखना ही है।’ मंत्री ने उसकी बात मान ली, राजा कमरे में गया। उसने देखा कि कमरे में कुछ भी नहीं है। वह एक खाली कमरा था। दीवार पर वह फटा-पुराना कोट लटक रहा था, जो भिक्षुक पहना करता था।

राजा ने यह देखकर पूछा, ‘तुमने इसे छिपा कर क्यों रखा? यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं है।’ मंत्री ने जवाब दिया, ‘दिन के समय मैं मंत्री होता हूं। रात को मैं यह कोट पहनकर फर्श पर सोता हूं। इस तरह मंत्री पद कभी मुझ पर हावी नहीं हो पता। लेकिन अब आपने समझौता तोड़ दिया है, इसलिए मैं मंत्री पद छोड़ता हूं।’ उसने अपना कोट पहना और वहां से निकल गया।

चेतनता में भिक्षा मांगना

एक भिक्षुक की असहाय अवस्था उसे ऐसा करने पर मजबूर कर सकती है, मगर एक संन्यासी अपने विकास के लिए पूरी चेतनता में ऐसा करता है ताकि वह अपने आप से कुछ ज्यादा ही न भर जाए।
भारत में भिक्षा मांगना आध्यात्मिक परंपरा का एक हिस्सा था। आप खुद अपना भोजन नहीं चुनते थे। लोगों से भिक्षा में जो कुछ मिलता था, उसे ही खाते थे। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाला इंसान अगर आपके घर के सामने खड़े होकर भोजन मांगता था और आप उसे भोजन देते थे, तो यह दोनों के लिए सौभाग्य की बात समझी जाती थी। आजकल इन परंपराओं का दुरुपयोग हो रहा है और आम भिखारी आध्यात्मिक व्यक्ति का चोगा पहनकर पैसा और भोजन मांगते हैं। जब लोग पूरी चेतनता में भिक्षा मांगते थे, तो उसका बिल्कुल अलग अर्थ और संभावनाएं होती थी।

जब कोई आपके सामने हाथ फैलाता है और आपको लगता है कि उसका दुरुपयोग हो रहा है, तो आप भिक्षा देने से इंकार करके आगे बढ़ सकते हैं। अगर आपको लगता है कि उसके पीछे वास्तव में कोई जरूरत है, तो आपको अपनी इंसानियत दिखानी चाहिए। सिर्फ यह सोच कर देखिए कि सड़क पर किसी के सामने हाथ फैलाना आपके लिए कितना मुश्किल होगा। वह व्यक्ति उसी स्थिति से गुजर रहा है।

एक भिक्षुक की असहाय अवस्था उसे ऐसा करने पर मजबूर कर सकती है, मगर एक संन्यासी अपने विकास के लिए पूरी चेतनता में ऐसा करता है ताकि वह अपने आप से कुछ ज्यादा ही न भर जाए। भिखारी के ऐसे महान लक्ष्य नहीं होते। वह बस अपना पेट भरने की कोशिश करता है, जो वह अपने दम पर करने में असमर्थ है।

सिर्फ एक हाथ या एक पैर खोना असमर्थता नहीं है। जीवन के बारे में आप जिस तरह सोचते और महसूस करते हैं, उसकी वजह से भी आप असमर्थ हो सकते हैं। वास्तव में पूरी मानव जाति जीवन के बारे में अपने विचारों और भावनाओं में किसी न किसी रूप में अक्षमता से ग्रस्त है। इसी तरह, भिक्षुक भी खुद को एक कोने में कर लेता है और भीख मांगना उसे रोटी कमाने का सबसे आसान तरीका लगता है।

खुद को त्यागना

लेकिन एक आध्यात्मिक व्यक्ति भिक्षा इसलिए मांगता है क्योंकि वह खुद को अहं से मुक्त करना चाहता है। ‘मैं अपनी जीविका खुद कमाता हं, मेरा पैसा, मेरा भोजन, मेरा घर’ आपके अहं का एक बड़ा हिस्सा होता है।

आप जानते हैं और पूरी तरह जागरूक होते हैं कि आपके अंदर अपनी जीविका कमाने की क्षमता है, मगर फिर भी आप भिक्षा मांगते हैं। यह एक इंसान के अंदर जबर्दस्त बदलाव लाता है।
एक दिन गौतम बुद्ध के पास एक अतिथि कुछ फूल लेकर आया। हमारी संस्कृति में जब लोग अपने गुरु से मिलने जाते हैं, तो भेंट चढ़ाने के लिए फूल लेकर जाते हैं। जब वह व्यक्ति आया, तो गौतम ने उसे देखा और कहा, ‘गिरा दो।’ उस व्यक्ति ने इधर-उधर देखकर सोचा, ‘क्या गिराना है?’ उसे लगा कि उसे फूल गिराने के लिए कहा जा रहा है। वह हिचकिचाया, ‘मगर मैं यह आपके लिए लाया हूं।’ गौतम ने फिर कहा, ‘गिरा दो।’ फिर उस व्यक्ति ने फूल गिरा दिए। गौतम ने उसे देखकर फिर कहा, ‘गिरा दो।’ व्यक्ति बोला, ‘मैंने फूल गिरा दिए। मैं आपके लिए उपहार के तौर पर लाया था लेकिन आपके कहने पर मैंने उसे गिरा दिया। अब क्या गिरा दूं?’ गौतम ने कहा, ‘नहीं, पहले खुद को गिरा दो। तुमने मेरे लिए फूल तोड़े, यह तो ठीक है। मैं उन्हें स्वीकार कर लूंगा। मगर तुम पहले अपने आप को छोड़ो।’

अपने आप को त्यागने के लिए एक उपकरण के तौर पर भिक्षा मांगी जाती थी क्योंकि रोजी-रोटी कमाने में आप खुद को इकट्ठा करते हैं। मगर किसी के सामने हाथ फैलाने में आप खुद को त्याग देते हैं। आप जानते हैं और पूरी तरह जागरूक होते हैं कि आपके अंदर अपनी जीविका कमाने की क्षमता है, मगर फिर भी आप भिक्षा मांगते हैं। यह एक इंसान के अंदर जबर्दस्त बदलाव लाता है। लोग आपको भोजन दे सकते हैं या आपको बाहर निकाल सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर भिक्षुक होना कोई छोटी चीज नहीं है।