विज्ञान और योग - मंजिल एक ही, पर अलग हैं राहें
कुछ लोग ये सोचते हैं कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों ही सत्य की खोज करते हैं, प्रकृति को जानना चाहते हैं। फर्क बस इतना है कि विज्ञान भौतिक के रास्ते से होकर जाना चाहता है और अध्यात्म अभौतिक के रास्ते से। आइए समझते हैं सद्गुरु से –
कुछ लोग ये सोचते हैं कि विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के विरोधी हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों ही सत्य की खोज करते हैं, प्रकृति को जानना चाहते हैं। फर्क बस इतना है कि विज्ञान भौतिक के रास्ते से होकर जाना चाहता है और अध्यात्म अभौतिक के रास्ते से। आइए समझते हैं सद्गुरु से –
वास्तव में देखा जाए तो आध्यात्म का विज्ञान के साथ कोई पंगा नहीं है। विज्ञान किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया से अलग नहीं है। बस इसमें इस्तेमाल होने वाले तरीके और दृष्टिकोण अलग हैं, लेकिन बुनियादी तौर पर दोनों ही अस्तित्व की प्रकृति को जानना चाहते हैं।
अज्ञात की खोज में विज्ञान एक खास दिशा में आगे बढ़ रहा है। जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति कर रहा है, उसकी कोशिश है कि वह हर चीज को ज्ञान में बदल दे।
जब आप रात में आकाश की तरफ देखते हैं तो आपको कितने तारे दिखाई देते हैं? क्या आपने कभी उन्हें गिनने की कोशिश की है? मैंने की है। जब मैं छोटा था तो मैंने तारों को गिनने की भरपूर कोशिश की थी और लगभग तीन-चार हजार तारे गिन भी लिए थे। पर गिनते-गिनते वे सब गड्डमड्ड हो गए। लेकिन मुझे लगता है कि वहां करीब आठ हजार तारे और हो सकते हैं। हम अपनी नंगी आंखों से शायद दस से पंद्रह हजार तारे देख सकते हैं। लेकिन आज हमारे पास शक्तिशाली टेलिस्कोप हैं, जिनकी मदद से हम दो खरब से भी ज्यादा तारे देख सकते हैं। सवाल यह है कि इन सबके बावजूद इस संसार का रहस्य कम हुआ है या और बढ़ गया है? बढ़ गया न? आप वैज्ञानिक प्रक्रिया को जितना सुलझाते हैं, यह संसार उतना ही रहस्यपूर्ण होता चला जाता है।
अगर आप सौ साल पहले किसी पत्ते को देखते, तो आपको वह सिर्फ एक पत्ता नजर आता। लेकिन आज यह सिर्फ पत्ता नहीं है। हम इस बात से परिचित हैं कि उस पत्ते में अनगिनत तरह की चीजें चल रही हैं, लेकिन फिर भी हम उस पत्ते को पूरी तरह नहीं जानते।
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तो ज्ञान तक पहुंचने के ये तरीके - जिंदगी को उधेडक़र के, उसका चीड़-फाड़ करके जानने की कोशिश करना - कारगर नहीं हैं।
वास्तव में देखा जाए तो आध्यात्म का विज्ञान के साथ कोई पंगा नहीं है। विज्ञान किसी आध्यात्मिक प्रक्रिया से अलग नहीं है। यहां विज्ञान से मेरा मतलब मौलिक विज्ञान से है। हां, तकनीक से समस्या जरूर है, क्योंकि कई तकनीकें साफतौर पर हानिकारक हैं। इस संसार में हम जो कुछ भी करने की कोशिश कर रहे हैं, वह उन चीजों को करने का बेतुका तरीका है। कई जगहों पर तकनीक का विकास बहुत ही अवैज्ञानिक तरीके से हुआ है।
अब अगर हम विज्ञान पर आएं, तो मुझे लगता है कि यह सिर्फ इस अस्तित्व की प्रकृति को जानने की एक चाहत है। यह आध्यात्मिक खोज से खास अलग नहीं है। बस इसमें इस्तेमाल होने वाले तरीके और दृष्टिकोण अलग हैं, लेकिन बुनियादी तौर पर दोनों ही अस्तित्व की प्रकृति को जानना चाहते हैं।
देखिए, जब हम आध्यात्मिक व्यक्ति की बात करते हैं तो दुर्भाग्य से लोग उसे भगवान का भक्त समझ लेते हैं। दरअसल एक आध्यात्मिक व्यक्ति की रुचि भगवान में नहीं होती। वह बस वही जानना चाहता है, जो सत्य है। अपने मत या मान्यताओं को ही सही साबित करने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि हमारी कोई मान्यता है ही नहीं।
मुझे लगता है कि वैज्ञानिकों की जिज्ञासाएं तो अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन कभी-कभी उनका यह विश्वास कि उनकी सभी जिज्ञासाओं का मूल कारण भौतिक ही होगा, उन्हें असहाय बना देता है। अत: मेरे हिसाब से विज्ञान की तरक्की में रुकावट पैदा कर देने वाला मुख्य तत्व यही है।
जब हम आध्यात्मिकता की बात करते हैं तो हम इस सृष्टि की परतें उधेडऩे की कोशिश नहीं करते। ऐसा करने से यह सृष्टि और भी ज्यादा जटिल हो जाएगी। इसीलिए योगियों का चीजों को देखने का नजरिया अलग ही होता है। हम अंदर की ओर देखते हैं। जब आप अपने भीतर की तरफ देखते हैं तो एक अलग ही आयाम खुलता है। अब चीजें जटिल होने की बजाय सरल होती जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा मानना है कि जो लोग अपने भीतर देखते हैं, उनके पास एक तीसरी आंख होती है जिससे वे वह सब देख सकते हैं जो दूसरे नहीं देख पाते। उन्होंने जीवन को एक नई स्पष्टता दी है।
तो योग और अध्यात्म का यह मूल स्वभाव है कि अगर आप पूरी तरह से अस्तित्वहीन हो जाते हैं, तभी आप इस सृष्टि को जान पाएंगे।
अपने भीतर ही इस जगत को जानने की जिज्ञासा आपके अंदर एक चमत्कारिक अंतर पैदा कर देती है। इस फर्क को महसूस करने से आपको इतनी आजादी मिलती है कि आप अपने जीवन को ऐसे तरीकों से जीने लगते हैं, जिनकी आपने कल्पना भी नहीं की होती। फिर जीवन ऊर्जा को आप ऐसे तरीकों से इस्तेमाल करने लगते हैं, जो कभी आपके लिए संभव ही न थे।
ज्ञान तक पहुंचने के दो तरीके हैं - विज्ञान और योग। विज्ञान जिंदगी को उधेडक़र के, उसका चीड़-फाड़ करके जानने की कोशिश करता है। जब हम आध्यात्मिकता की बात करते हैं तो हम इस सृष्टि की परतें उधेडऩे की कोशिश नहीं करते। हम अंदर की ओर देखते हैं।