क्या है दमा या अस्थमा

दमा एक ऐसी स्थिति है, जो फेफड़ों में मौजूद छोटे वायु मार्ग यानी ब्रॉन्क्रियल्स को प्रभावित कर देती है। इसकी शुरुआत किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन ज्यादातर यह बचपन में ही शुरू हो जाता है। हर 10 में से एक बच्चा और हर 20 में से एक बालिग दमा से पीड़ित है।

सद्‌गुरु की सलाह

दमा के मरीजों के लिए सबसे पहली और जरूरी चीज यह है कि बलगम को हटाकर उन्हें तुरंत आराम दिया जाए। इस मामले में खानपान का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

क्या नहीं खाना चाहिए –

दूध और उससे बने पदार्थ: दूध और दूध से बने पदार्थ दमा के साथ नहीं चल सकते। ज्यादातर लोगों में दमा की 60 फीसदी वजह दूध और दूध से बने पदार्थ ही होते हैं। अगर दमा के मरीज दूध और दूध से बने पदार्थों का सेवन करना बंद कर दें तो उनका आधा रोग तो तुरंत ही अपने आप ठीक हो सकता है।

इसके अलावा केला, कटहल, पकाई हुई चुकंदर न लें। कच्ची चुकंदर ले सकते हैं। मौसमी सेम या फलियां, लोबिया आदि भी नुकसान दायक हैं।

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क्या खाना चाहिए –

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1.शहद

शहद से शरीर को आवश्यक गर्मी मिलती है। शहद श्वसन नली में बलगम को खत्म कर देता है। मान लीजिए आपको सीने में जकड़न हो रही है और आपको लगता है कि दमा का दौरा पड़ने वाला है। ऐसे में आपको गर्म पानी और शहद ले लेना चाहिए। इससे आप दौरे को कम से कम आधे से एक घंटे तक के लिए टाल सकते हैं। इस बीच अपनी दवाएं लीजिए और इस स्थिति से पूरी तरह बाहर आ जाइए। शहद और काली मिर्च गर्म पानी के साथ लेने से दमा के दौरे को टाला जा सकता है। अगर यही प्रयोग लगातार किया जाए तो आपको दमा के दौरों से छुटकारा मिल सकता है।

2.भीगी हुई मूंगफली

यह भी श्वसन नली से बलगम को हटा देती है। दमा के मरीज अगर पेट भरकर खा लें तो उनका रोग और बढ़ जाता है। जब दमा जटिल हो जाता है तो इसके मरीजों को खाने से डर लगने लगता है और वे कम से कम खाना शुरू कर देते हैं। कम खाने से उनके भीतर एक खास तरह की कमजोरी आ जाती है और दमा और ज्यादा बढ़ जाता है। शरीर कमजोर हो जाता है। पेट भरकर खाना खा लिया तो भी दमा बढ़ जाता है। ये एक ऐसी स्थिति है, जिसमें मरीज को लगता है कि वह करे तो क्या करे। न तो वह खा सकता है और न खाए बिना रह सकता है। असल में आपका खाना ऐसा होना चाहिए जो मात्रा के मुताबिक कम हो, लेकिन उसमें पौष्टिकता ऐसी हो, जिससे हर चीज का ध्यान रखा जा सके। ऐसे में अगर रोजाना आप मुट्ठी भर भीगी हुई मूंगफली खा लेते हैं तो आपको काफी फायदा होगा। मूंगफली काफी ज्यादा प्राणिक होती है।

3.तुलसी

तुलसी के कुछ पत्ते शहद और काली मिर्च में भिगोकर रख दें। तीन से चार घंटे इन्हें भिगोया रहने दें और फिर पत्तों को चबा लें। इससे दमा का दौरा पड़ने की आशंका बेहद कम हो जाएगी।

3.नीम

इससे शरीर में भरपूर ऊष्मा पैदा होती है। नीम को शहद में लपेटकर रोजाना सुबह ले सकते हैं।

दमा के साथ बवासीर

सही तरीके से मल का निकलना अस्थमा के रोगियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण बात है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें दमा भी होता है और बवासीर भी। इन दोनों रोगों का एक साथ होना बड़ा नुकसानदायक है। दमा शीतल रोग है और बवासीर ऊष्ण। ऐसे लोग अगर कोई गर्म चीज खा लेते हैं तो बवासीर की समस्या बढ़ जाती है और अगर वे कोई शीतल चीज खा लेते हैं तो उनके दमा के लक्षण बढ़ जाते हैं। यह स्थिति बहुत खतरनाक होती है। आप मणिपूरक चक्र को देखें, यह शरीर को दो हिस्सों में बांटता है। इसी के चलते ऐसे लोगों के शरीर का निचला हिस्सा गर्म होता है और ऊपरी हिस्सा शीतल हो चुका होता है। इसमें एक संतुलन की आवश्यकता होती है। सूर्य नमस्कार और कुछ आसनों का अभ्यास करने से यह संतुलन हासिल किया जा सकता है।

योगि क अभ्‍यास

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1.सूर्य नमस्कार और आसन

इनसे मरीज के शरीर में संतुलन आता है। जिन लोगों को साइनिसाइटिस यानी नजला और दमा का रोग है, उनमें नासिका छिद्र बंद होने की समस्या को यह दूर करता है। इनसे शरीर के लिए आवश्यक व्यायाम हो जाता है। शरीर के लिए आवश्यक ऊष्मा भी इनसे पैदा होती है। सूर्य नमस्कार से शरीर के भीतर इतनी ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने वालों को बाहर की सर्दी प्रभावित नहीं कर पाती।

1.प्राणायाम

दमा कई तरह के होते हैं। कुछ एलर्जिक होते हैं, कुछ ब्रोंकाइल होते हैं और कुछ साइकोसोमैटिक या मन:कायिक होते हैं। अगर मामला मन:कायिक है तो ईशा योग करने से यह ठीक हो सकता है। ईशा योग करने से इंसान मानसिक तौर से शांत और सतर्क हो जाता है और उसका दमा ठीक हो जाता है। अगर यह एलर्जी की वजह से है तो प्राणायाम करने से यह निश्चित तौर पर ठीक हो सकता है। ईशा योग में जो प्राणायाम सिखाया जाता है, उससे ब्रोंकाइल संबंधी दिक्कत कम हो जाती हैं। अगर एक से दो हफ्तों तक प्राणायाम का रोजाना सही तरीके से अभ्यास कर लिया जाए तो दमा के मरीजों को 75 फीसदी तक का फायदा महसूस होगा।

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