योगी पहाड़ों पर क्यों रहते हैं?
हमारी पंच तत्वों की श्रृंखला में अब तक आप जल, वायु, आकाश और अग्नि के बारे में पढ़ चुके हैं। आज पढ़ते हैं पृथ्वी तत्व के बारे में और यह कि हम कैसे पृथ्वी से जुड़ने के लिए कौनसी साधनाएं अपनाई जा सकती हैं[
हमारी पंच तत्वों की श्रृंखला में अब तक आप जल, वायु, आकाश और अग्नि के बारे में पढ़ चुके हैं। आज पढ़ते हैं पृथ्वी तत्व के बारे में और यह कि हम कैसे पृथ्वी से जुड़े रह सकते हैं
प्रश्न:
सद्गुरु, योगी पहाड़ों में रहना क्यों पसंद करते हैं, मैदानों में क्यों नहीं?
सद्गुरु:
योगी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अपने भीतर और बाहर जीवन का एक नए सिरे से निर्माण कर रहा है। वह हमेशा एक ऐसी जगह चाहता है जो छोटी हो, ठोस हो, जहां वह अपनी तरह की ऊर्जा उत्पन्न कर सके और अपनी तरह की दुनिया बना सके। पहाड़ वो जगह है, जहां धरती किसी वजह से ऊपर उठ गई है। अगर आप जमीन में छेद करें, कुआं खोदें और उसमें रहने की कोशिश करें, तो वह कई वजहों से आरामदेह नहीं होगा। आप धीरे-धीरे मेंढक बन जाएंगे।
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जब मैं केन्टकी (यूनाइटेड स्टेट्स) गया था, तो वहां हम एक ऐसी जगह गए जिसे 'मैमथ केव्स’ (विशाल गुफाएं) के नाम से जाना जाता है। वह एक विशाल प्राकृतिक गुफा है जिसके अंदर दस से बीस हजार लोग आराम से बैठ सकते हैं। वहां लगभग दस एकड़ या शायद उससे भी अधिक बैठने की जगह है। उसे देखकर मेरे मन में विचार आया कि अगर हमारे पास ऐसी गुफा होती, तो हम उसे कितने शक्तिशाली तरीके से प्रतिष्ठित कर सकते थे। मिट्टी से घिरी जो सबसे नजदीकी चीज हमने बनाई है, वह है ध्यानलिंग का गुंबद। ध्यानलिंग मिट्टी से घिरा हुआ है क्योंकि उसे रखने का वही सबसे अच्छा तरीका है।
नश्वरता याद दिलाते हैं पहाड़
एक योगी अपने आप को ऐसी स्थिति में रखना चाहता है, जहां वह भूमि से घिरा हो। पहाड़ एकमात्र ऐसी प्राकृतिक जगह है जो शरीर को लगातार याद दिलाता है कि धरती और इस शरीर में तत्वों का खेल अलग-अलग नहीं है। हम हमेशा धरती के नजदीक रहना चाहते हैं ताकि शरीर को यह याद दिला सकें कि तुम बस इसका एक अंश हो। अगर आप लगातार याद दिलाते हैं, तो वह अपनी जगह याद रखता है। योगी हमेशा पहाड़ पर रहना चाहते हैं क्योंकि वहां शरीर को अपनी नश्वरता का एहसास बड़े जोरदार तरीके से होता है, मानसिक या बौद्धिक स्तर पर नहीं, बल्कि भौतिक स्तर पर होता है।
जीवन और मृत्यु के बीच एक बहुत बारीक फासला है। यह फासला पहाड़ों में और कम हो जाता है। अगर आपको अपनी नश्वरता का एहसास है, अगर आपको हमेशा इस बात का बोध है कि आपकी मृत्यु होने वाली है, अगर आपका भौतिक शरीर यह जानता है कि वह स्थायी नहीं है, वह एक दिन इस मिट्टी में मिल जाने वाला है, और वह दिन आज भी हो सकता है, तो आपकी आध्यात्मिक खोज और दृढ़ हो जाती है। एक योगी अपनी नश्वरता को हमेशा याद रखना चाहता है, ताकि उसकी आध्यात्मिक खोज कभी डगमगाए नहीं।
धरती से जुड़ने के कई फायदे हैं
धरती से जुड़े रहने के दूसरे पहलू भी हैं। जब शरीर धरती के संपर्क में रहता है, तो उसके पांचों तत्व अलग तरीके से व्यवहार करते हैं। आपने योगियों द्वारा खुद को मिट्टी में गरदन तक गाड़े जाने की बात शायद सुनी होगी। उनके आसपास के नासमझ लोगों को लगता होगा कि वे कोई करतब दिखाकर कुछ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।
अगर किसी वजह से शरीर में विकार आ रहा है, तो उसे ठीक करने के लिए धरती के संपर्क में आकर, ऐसी बहुत सी साधनाएं हैं जिनको किया जा सकता है। अगर आप धरती के संपर्क में आकर सही तरह की साधना करें - कुछ और नहीं तो बस नंगे पांव अपने बगीचे में रोजाना एक घंटे तक चलें, जहां कीड़े-मकोड़े और कांटें न हों, तो एक सप्ताह के भीतर आपका स्वास्थ्य काफी बेहतर हो जाएगा। इसे आजमा कर देखें। इतना ही नहीं, अपने ऊंचे बिस्तर के बदले फर्श पर सो कर देखें, आपको बेहतर स्वास्थ्य का एहसास होगा।
जमीन पर खाने और सोने का यही कारण है
इसी वजह से भारतीय परंपरा में, हमें हमेशा जमीन पर बैठ कर खाने और जमीन पर ही सोने को कहा जाता था। हम जो भी करें, जमीन पर बैठ कर करें, इसलिए नहीं कि हम चारपाई खरीद नहीं सकते, बल्कि इसलिए क्योंकि जमीन से ऊपर डेढ़ फीट की उंचाई तक प्राण का कंपन काफी अधिक होता है। ऊपर की ओर वह हल्का, और हल्का होता जाता है। इसीलिए जब हम किसी देवता को स्थापित करते हैं, तो उन्हें भी हम ऊंची वेदी पर स्थापित नहीं करते, हम उन्हें धरती के काफी नजदीक स्थापित करते हैं। हमने मंदिर बहुत बड़े-बड़े बनाए, इतनी विशाल और भव्य इमारतें बनाई गईं, हमारे लिए सौ फुट ऊंची वेदिका बनाकर भगवान को वहां स्थापित करना मुश्किल नहीं था, लेकिन उन्हें हमेशा नीचे रखा जाता है। लगभग जमीन पर या थोड़ा सा ऊपर। सिर्फ इसलिए क्योंकि नीचे प्राण का कंपन सबसे अधिक होता है। इसीलिए सभी साधक आम तौर पर पहाड़ों या गुफाओं की ओर जाते हैं, हालांकि वहां रहना बहुत आरामदेह नहीं होता।