गुरु क्या अंतिम जन्म में ही मिलते हैं?
एक जिज्ञासु ने सद्गुरु से पूछा कि क्या अपने गुरु से मिलने का मतलब यह है कि जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल गयी?
प्रश्न: सद्गुरु, यदि कोई आपके संपर्क में आता है तो क्या इसका मतलब यह है कि यह उसका अंतिम जन्म है?
सद्गुरु: किसी ने मुझसे कुछ समय पहले पूछा था, ‘क्या सिर्फ ब्रह्मचारी ही आप के शिष्य हैं?’ हाँ, वे ही मेरे शिष्य हैं। जब मैं कहता हूँ,' ब्रह्मचारी', तो इसका मतलब सिर्फ उन्हीं लोगों से नहीं है जिन्होंने आधिकारिक रूप से दीक्षा ली है। उनका एक औपचारिक प्रक्रिया से गुजरना कोई मुद्दा नहीं है। हाँ, कुछ मायने में वे उस मार्ग पर हैं।
अगर सवाल है कि क्या सिर्फ ब्रह्मचारी ही मेरे शिष्य हैं? तो मैं कहूँगा कि अगर वे ब्रह्मचारी नहीं हैं तो वे किसी भी तरह से मेरे शिष्य नहीं हैं। अगर उनकी रुचि किसी और चीज़ में है तो शिष्य होने का सवाल ही कहाँ है? वे किसी के भी शिष्य नहीं हो सकते। देखिए, आप इनके या उनके शिष्य नहीं होते, यदि आप शिष्य हैं तो हैं, बस यही बात काफ़ी है। यदि आप भक्त हैं तो आप भक्त हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आप इन भगवान के भक्त हैं या उन भगवान के - ये तो बस एक मूर्खता है। आप एक भक्त हैं - यही बहुत है। यह एक गुण है।
अंधकार बन जाना !!
ऐसे बहुत से लोग हैं जो (मार्ग दर्शन के लिये) मेरी ओर देखते हैं, लेकिन मुझे गुरु नहीं मानते। वे आगे भी यहां घूमते हुए मिलेंगे। मैं शायद यहाँ न रहूँ। मगर वे यहाँ घूमते हुए मिलेंगे, क्योंकि उन्होंने स्वाद चख लिया है, अब वे खाना चाहेंगे।
गुरु का मतलब है ‘अंधकार को मिटाने वाला’। ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है ‘मिटाने वाला’। जब आप कहते हैं कि आप के कोई गुरु हैं तो इसका मतलब आप का अंधकार मिट गया है। तब आप यहां फिर से क्यों होंगे? आप का अंधकार दूर होने या मिटने का मतलब यह नहीं है कि आप प्रकाश हो गये हैं बल्कि इसका मतलब यह है कि आप 'कुछ नहीं' हो गए हैं, आप ख़ुद अंधकार बन गए हैं। फिर कुछ दूर करने की ज़रूरत ही नहीं रहती। अगर आप इससे दूर हैं तो अंधकार एक भयानक बात है। अगर आप अंधकार बन जाते हैं, तो यह अनंत या असीम होना है।
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अंधकार भयानक इसलिए है क्योंकि आप किसी चीज़ के एक छोटे से हिस्से की तरह हैं। अगर आप अंधकार हो जाते हैं तो फिर कोई सीमा नहीं रहती। यदि मैं आप को आशीर्वाद दूं कि ‘आप अनंत हो जाएं’ तो आप को बहुत अच्छा लगेगा पर अगर मैं आप को आशीर्वाद यह दूं कि ‘आप अंधकार बन जाएं’, तो आप को यह श्राप जैसा लगेगा। लेकिन ऐसा नहीं है, अंधकार अनंत है, अनंत होना ही अंधकार है।
अंधकार को मिटाने का मतलब यह नहीं है कि कोई आपके भीतर प्रकाश का एक बल्ब जला देगा। विद्वानों और शिक्षकों ने आपके भीतर रोशनी का बल्ब लगाने की कोशिश की, जिससे आप कुछ देख सकें। लेकिन एक गुरु आप में प्रकाश बल्ब लगाने की कोशिश नहीं करते। वे यह देखते हैं कि कैसे आप को मिटा दें। यदि आप को गुरु मिल गए हैं तो इसका मतलब यह है कि आप के अंदर का अंधकार नष्ट हो गया है क्योंकि आप स्वयं इसके भाग हो गये हैं। आप के लिये अब कोई अंधकार नहीं है, बस अनंतता है, असीमता है।
हर समय सूंघते मत रहिये
यदि आप को आप के गुरु मिल गए हैं तो फिर आप का यहां फिर से होने का कोई सवाल ही नहीं है। लेकिन अगर आप को उनमें वास्तव में गुरु नहीं दिखे हैं, आप ने बस सुगंध का आनंद लिया है पर उनमें उतरने की हिम्मत नहीं की है तो फिर यह अलग मामला है। जब आप गुलाब की खुशबू पसंद करते हैं तो फिर गुलाब कहीं भी हो, आप सूँघते हुए वहां चले जाते हैं। लेकिन आप हमेशा सूँघते ही मत रहिए। अब समय आ गया है कि आप उनमें उतर जायें और अपने आप को जला दें, मिटा दें। अगर आप ऐसा नहीं करते तो आप उनका सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, जिसके लिए वे हैं।
अगर आप के पास एक हवाई जहाज है जो उड़ सकता है लेकिन आप उसे बस की तरह दौड़ाते हैं तो क्या यह गलत है? मैं यह नहीं कहूंगा कि यह गलत है। बल्कि यह भयानक है। एक हवाई जहाज को कार की तरह चलाना भयानक और बेवकूफी भरा है। भयानक और बेवकूफ होना एक खराब बात है, यह गलत हो जरूरी नहीं है। जो आप को बड़ी ऊंचाई पर ले जा सकता है, उसका इस्तेमाल मामूली काम के लिये करें तो यह भयानक बात है, बेवकूफी है।
यह कोई लम्बा चलने वाला रिश्ता नहीं है। यदि आप इसे रिश्ता बना लेते हैं तो सब खत्म हो जाता है। जब हर चीज़ मिट जाती है, जब सभी चीज़ें खत्म हो जाती हैं, तब एक ऐसा आयाम ‘जो कुछ भी नहीं है’ घटित होता है। यह वही आयाम है जिसकी इस जीव को आकांक्षा होती है, जब यह विस्तार के तलाश में होता है। यह एक स्वाभाविक मक़सद है। बात सिर्फ यह है कि रास्ते में बहुत सारे भटकाव हैं, जो भटकाते हैं और हरेक भटकाव के साथ लोग उनको सही मानने के कारण ढूंढ लेते हैं कि कैसे यह भटकाव सही है।
मान लीजिए, आप कहीं जा रहे हैं और पाते हैं कि रास्ते में रुकावट है और आप को रास्ता बदलना है। तो कार में जितने लोग होंगें वे सब अलग अलग रास्ते सुझायेंगे और जोर दे कर अपना पक्ष रखेंगे। क्या ऐसा नहीं होता? जब कोई स्पष्ट रास्ता बताने वाला न हो तो हर कोई अपनी बात कहने लगेगा और यही कहेगा कि उसी की बताई राह सही है। एक इंसान जो धूम्रपान करता है, उसे उसमें ही जीवन दिखता है, शराब पीने वाले को शराब ही जीवन लगता है तो कोई और जो किसी दूसरी तरह की खुशी ढूंढ रहा है, वह उसी को जीवन मान लेता है। नशा करने वाला नशे को जीवन समझता है तो ज्यादा खाने वाले को खाने में ही जीवन दिखता है। इन्ही वजहों से भटकाव हो जाता है।
अगर कोई खास वस्तु ही जीवन होती, तो उसे बहुत ज्यादा करने से आप का सबकुछ अच्छा हो जाना चाहिए था। लेकिन वैसा होता नहीं। अगर आप ज्यादा खाते हैं, ज्यादा पीते हैं, ज्यादा धूम्रपान करते हैं या ज्यादा सेक्स करते हैं तो जीवन बेहतर नहीं बनता। लोगों ने यह सब कर के देख लिया है और काम नहीं बना है। सिर्फ एक ही चीज़ है जो आप अनंत रूप से कर सकते हैं और वह है, ‘कुछ न करना’। यही वह बात है जो गुरु हैं। गुरु बस एक खाली जगह हैं। खाली स्थान ही वह चीज़ है जो अंधकार को मिटा सकती है, क्योंकि वह स्वयं ही अंधकार है, वहां कुछ नहीं होता। जहाँ कुछ नहीं होता, वहां आप चाहें तो सब कुछ हो सकता है। गुरु सिर्फ एक खाली मंच हैं। अगर आप वहां जाते हैं तो गुरु, उस दिन के लिए जैसा ज़रूरी हो वैसा नाटक कराते हैं, लेकिन वे ख़ुद तो एक खाली मंच ही हैं-- एक चारदीवारी जिसके अंदर कुछ नहीं है। जब आप वहां जाते हैं तो आप भी 'कुछ नहीं' हो जाते हैं। और कोई रास्ता नहीं है। आप ने उन्हें देखा और सुना, बात यह नहीं है। आप को उनमें उतरना ज़रूरी है, तभी वे आप के गुरु हैं। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक वे आप के लिये सिर्फ मनोरंजन हैं, क्योंकि वे आपसे उस दिन के लिए ज़रूरी नाटक करा रहे हैं।
अगर आप उनमें उतर जाते हैं, तो यहाँ फिर से बैठने की कोई ज़रूरत नहीं रह जाती। इसका कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यदि आप उनमें उतरे नहीं हैं और आपने उन्हें सिर्फ दूर से सूंघा है तो शायद आपको गुरुओं की लत पड़ गयी है इसलिए आप उनके पीछे-पीछे जा रहे हैं। लेकिन, यदि शरीर और मन के परे आपके साथ कुछ गहरा घटित होता है तो फिर आप को यहां फिर से नहीं बैठना है।