सद्‌गुरुइस ब्लॉग में पढ़ते हैं दो कथाएँ  - पहली कथा में गौतम बुद्ध एक श्रद्धालु को रहस्यमय आदेश देते हुए उसे हैरान कर देते हैं, जबकि दूसरी में सूफी गुरु बायजिद एक भावी शिष्य में समझ की कमी पर रोने लगते हैं।

गुरु के साथ होने का क्या मतलब है? इसके लिए किस चीज की जरूरत होती है? अगर आप गुरु के पास एक अच्छे दर्शक या फिर के अच्छे विद्यार्थी के रूप में भी बैठें, तो गुरु के साथ होने का जो मतलब होता है, उसके पूरे पहलू से आप चूक जाएंगे। अगर आपको बस उपदेश या थोड़े-बहुत मार्गदर्शन की जरूरत है, तो आपको गुरु की जरूरत ही नहीं है। बहुत से शिक्षक ऐसा कर सकते हैं, विद्वान भी ऐसा कर सकते हैं, किताबों से भी आपको यह सब पता चल सकता है। ‘गुरु के साथ होने’ का मतलब है कि आप सीधा असर चाहते हैं। आप मार्गदर्शन या सहायता नहीं चाहते, आप सीधा असर चाहते हैं। इसके लिए किस चीज की जरूरत होती है और आपको कैसा होना चाहिए?

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

गौतम बुद्ध का रहस्यमयी आदेश

एक दिन एक व्यक्ति गौतम बु‍द्ध से मिलने आया। गौतम एक छोटे से कमरे में अकेले बैठे हुए थे। वह व्यक्ति हाथ में कुछ फूल लेकर आया क्योंकि भारत में गुरु के अभिवादन का यह आम तरीका है।

अगर आप अपने जीवन में बिल्कुल नया आयाम जोड़ना चाहते हैं, तो आपको उसे गिराना होगा, किसी और चीज को नहीं। अपने काम, अपने परिवार, इसको और उसको छोड़ने का कोई मतलब नहीं है। 
जैसे वह उनकी तरफ आने लगा, गौतम ने उसकी ओर देखा और कहा, ‘गिरा दो’। उनके ऐसा कहने पर उस व्यक्ति ने सोचा कि चूंकि वह इन फूलों को भेंट के तौर पर लाया है, इसलिए गौतम उसे गिरा देने के लिए कह रहे हैं। फिर उसने सोचा, ‘शायद मैंने फूलों को बाएं हाथ में भी रखा है, यह अशुभ होगा।’ यह भी हमारी संस्कृति का एक हिस्सा है, किसी को अपने बाएं हाथ से कुछ देना अशुभ माना जाता है। इसलिए उसने सोचा कि यही वजह है कि गौतम फूलों को गिरा देने के लिए बोल रहे हैं। फिर उसने अपने बाएं हाथ के फूलों को छोड़ दिया और सही तरीके से फिर आगे बढ़ा। गौतम ने एक बार फिर उसे देखा और कहा, ‘गिरा दो।’ अब उसे समझ में नहीं आया कि क्या करना है। फूलों में क्या बुराई है? उसने बाकी फूल भी गिरा दिए। फिर गौतम ने कहा, ‘मैंने उसे गिराने को कहा, फूलों को नहीं।’ जो व्यक्ति फूल लाया है, आपको उसे गिराना होगा, उसे त्यागना होगा, वरना आप बुद्ध को नहीं जान पाएंगे। आप आएंगे, सिर झुकाएंगे, सुनेंगे और चले जाएंगे मगर किसी आत्मज्ञानी के साथ होने का मतलब नहीं जान पाएंगे। आप इस संभावना से पूरी तरह चूक जाएंगे।

अगर आप अपने जीवन में बिल्कुल नया आयाम जोड़ना चाहते हैं, तो आपको उसे गिराना होगा, किसी और चीज को नहीं। अपने काम, अपने परिवार, इसको और उसको छोड़ने का कोई मतलब नहीं है। आपको सिर्फ इसे यानी खुद को छोड़ना है- तभी कुछ हो सकता है। अभी आप जिसे ‘मैं’ कहते हैं, वह सिर्फ विचारों, भावनाओं, मतों, राय और विश्वासों का एक बोझ है। अगर आप उसे नहीं गिराते, तो नई संभावना कहां से आएगी? क्या आप सिर्फ पुरानी चीजों को इधर-उधर की चीजों से सजाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे कोई मदद नहीं मिलेगी, इससे चीजें और भी मुश्किल होती जाएंगी। लेकिन सिर्फ मेरे ‘गिरा दो’ कहने पर वह गिर नहीं जाएगा। इसलिए कुछ विधियां और प्रक्रियाएं हैं, जिनसे यह गिराना संभव हो जाता है।

बायजिद और साधक की अज्ञानता

एक अत्यंत सफल और सुंदर आध्यात्मिक गुरु हुए जिनका नाम था बायजिद। वह एक सूफी गुरु थे जिनके एक समय में हजारों शिष्य हुआ करते थे। वह बहुत ही सुंदर और जबर्दस्त क्षमता वाले व्यक्ति थे।

ये सरल प्रक्रियाएं इसलिए बनाई जाती हैं ताकि आप खुद को त्यागना सीख सकें, मगर लोग उन्हें नहीं करना चाहते। उन्हें लगता है कि आध्यात्मिकता का मतलब सिर्फ कुछ खास तरह की चीजें करना है। 
एक दिन एक व्यक्ति आध्यात्मिक मुक्ति की खोज में उनके पास आया। बायजिद ने उसे देखकर कहा, ‘क्या बात है?’ उसने आकर पूछा, ‘क्या आप मुझे अपना शिष्य बनाएंगे?’ बायजिद ने उसकी ओर देख कर कहा, ‘हां, मैं ऐसा कर सकता हूं मगर इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होगी और कुछ काम करने होंगे।’ उस व्यक्ति ने पूछा, ‘क्या करना होगा?’ बायजिद बोले, ‘तुम्हें कुएं से पानी भरना होगा, लकड़ी काटना होगा, फर्श पर पोंछा लगाना होगा, खाना पकाना होगा और सफाई करनी होगी।’ वह व्यक्ति उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘मैं यहां चरम सत्य की खोज में आया था, रोजगार की खोज में नहीं।’ और वह चला गया। बायजिद बस चंद्रमा की ओर देखकर रोने लगे।

ये सरल प्रक्रियाएं इसलिए बनाई जाती हैं ताकि आप खुद को त्यागना सीख सकें, मगर लोग उन्हें नहीं करना चाहते। उन्हें लगता है कि आध्यात्मिकता का मतलब सिर्फ कुछ खास तरह की चीजें करना है। उन्हें लगता है कि फर्श साफ करना, लकड़ी काटना, बर्तन धोना आध्यात्मिकता नहीं है। उनके दिमाग में आध्यात्मिकता को लेकर फैंसी विचार होते हैं।