शरीर–विहीन प्राणी भी खिंचे चले आए थे

सद्‌गुरु – आपके लिए विश्वास करना मुश्किल होगा कि ध्यानलिंग प्रतिष्ठा में शामिल लोगों के साथ क्या-क्या चीज़ें हुईं। आप यह विश्वास नहीं करेंगे कि ऐसी चीजें मानव जीवन में संभव हैं। मेरी पत्नी, विजी, जो इस प्रक्रिया में शामिल थी, वह एक ऐसी इंसान थी जो आमतौर पर एक कीड़े को या किसी परछाई को देखकर चीखने लगती थी। वह उस तरह की थी, और यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तमामों चीजें शामिल थीं, अगर उस पल में जरा सा भी डर पैदा हो जाता है तो पूरी प्रक्रिया चौपट हो जाती। हमें उसे शुरुआत से फिर शुरू करना पड़ता। वहाँ तमामों कायाहीन प्राणी कई रूपों में मौजूद थे, वे घूम रहे थे, बातें कर रहे थे। हम उन्हें सुन पा रहे थे। पहले दिन विजी और भारती पूरी तरह से चकराई हुई थी; ”कौन बातें कर रहा है?” उनकी ऊँची आवाज असल में सभी जगह सुनाई पड़ रही थी, उनमें से कई प्राणी, दर्जनों प्राणी जोरों से बातें कर रहे थे। वे दोनों पूरी तरह से चकराई हुई थीं, आसपास देख रही थीं, जानने की कोशिश कर रहीं थीं कि कौन है।

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उनके कर्मों को सुना जा सकता था

असल में वे बातें नहीं कर रहे थे। वे हर चीज से मुक्त उच्च स्थिति को प्राप्त प्राणी थे, लेकिन उनके पास थोड़ी-सी कार्मिक संरचना अभी भी बाकी थी। उनका पूर्ण विसर्जन अब तक नहीं हुआ था। तो जब आप ऊर्जा के उस आयाम में पहुँच जाते हैं, तब आप उनकी कार्मिक संरचना को सुन सकते हैं, जैसे कोई टेप-रिकॉर्डर बज रहा हो। वे दोनों कई लोगों को एक साथ बातें करते हुए साफ-साफ सुन पा रही थीं। कोई भी इंसान भयभीत हो जाता, लेकिन उस वक्त उस स्थिति में यह बहुत सहज लग रहा था, क्योंकि उन दोनों की ऊर्जा ऊँचे स्तर पर पहुँची हुई थी। मैंने उनसे इसे इतनी अच्छी तरह से संभालने की कभी उम्मीद नहीं की थी। वे इन अनुभवों से पूरी जागरूकता में गुजरीं। वे किसी तरह के मतिभ्रम में नहीं थीं, वे सम्मोहित नहीं थीं, और वे किसी तरह के नशे में भी नहीं थीं। वे पूरी जागरूकता में थीं, उससे कहीं ज्यादा जागरूक, जितना आमतौर पर कोई हो सकता है।

प्राण-प्रतिष्ठा में दो अलग-अलग तरह के व्यक्तियों ने हिस्सा लिया था

मैंने जून-जुलाई 1996 में यह प्रक्रिया शुरू की, क्योंकि मैं सोच रहा था कि उनको एक ठीक तरह के संतुलन में लाने में कम-से-कम डेढ़ साल लगेगा, लेकिन यह कुछ हफ्तों में ही हो गया। यह बेहद आश्चर्यजनक था। मैं नहीं जानता था कि प्रक्रिया कितनी तेज या कितनी धीमी होगी, लेकिन एक बार जब हमने उन्हें एक साथ रखा, तो हर चीज मेरी उम्मीद से कहीं बढ़कर हुई। वे लगभग बिलकुल अलग तरह के गुणों वाली थीं, दो विपरीत ध्रुवों की तरह। एक इंसान पूरा तर्क था, तो दूसरा पूरा प्रेम। एक इंसान पूरी तरह से दृढ़ संकल्प वाला था, तो दूसरा ऐसा था जैसे... कुछ जानता न हो। जब ये दो तरह के गुण एक साथ आए, तो वे सर्व गुण-संपन्न एक सुन्दर इंसान की तरह हो गए। वे एक पूर्ण मानव की तरह हो गए। वे इससे होकर बहुत सुन्दर ढंग से गुजरीं, लेकिन उसके बाद, जो चीजें हुईं वे इतनी आश्चर्यजनक थीं कि स्थिति बहुत ज़्यादा अभिभूत करने वाली हो गई। इन दोनों को उनके शरीर में कायम रखना मुश्किल हो गया, इसलिए हमें प्रक्रिया को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा। ऊर्जा के ऊँचे स्तर पर अनुभव की विशालता को संभाल पाने, और साथ ही हर दिन के कामकाज में सामान्य बने रहने के लिए इंसान को एक खास स्तर की आंतरिक स्वतंत्रता और ऊर्जाओं के ऊपर दक्षता की जरूरत होती है। एक चीज यह थी कि इन दोनों लोगों को अपने परिवारों की देखभाल करनी थी, उनकी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी थी जिसमें उन्हें पूरी तरह से शरीक रहना था। दूसरी चीज यह थी कि उन्हें ऊर्जा के बहुत उच्च स्तर को बरकरार रखना था और ख़ुद को प्रतिष्ठा प्रक्रिया में पूरी तरह से अर्पित करना था। तो इसे संभाल पाने के लिए उन्हें अपने अंदर जरूरी परिपक्वता, संतुलन और आज़ादी हासिल करने की जरूरत थी। उसके लिए हमें प्रक्रिया कुछ देर तक रोकनी पड़ी।

सद्‌गुरु के गुरु की ऊर्जाओं को दिया गया था आमन्त्रण

त्रिभुज(ट्रायंगल) का पूरा मकसद एक भँवर बनाना था, जहाँ तीव्र ऊर्जा पैदा की जा सके, जिसमें कि हम अपने गुरु की ऊर्जा को ध्यानलिंग प्रतिष्ठा के लिए आमंत्रित कर सकें। आखिरकार, यह उनका ही सपना था कि ध्यानलिंग साकार हो। मैं इसे ख़ुद नहीं करना चाहता था; मैं चाहता था कि वे आकर इसे करें। इसीलिए यह त्रिभुज(ट्रायंगल) अलग-अलग चरणों में बनाया जा रहा था। धीरे-धीरे इस ऊर्जा को अलग-अलग स्तरों तक उठाया गया और हर चरण पर त्रिभुज(ट्रायंगल) को अलग-अलग आयामों में ले जाया गया। आप इसे एक ऐसी अवस्था में ले जा सकते हैं कि यह प्राणी जो पूरी तरह से विसर्जित हो चुका है, यह प्राणी जो पूरी तरह से जा चुका है, अब वह लौट आएगा और उसके माध्यम से प्रतिष्ठा संपन्न होगी।

जब हम ‘ऊर्जा का त्रिभुज(ट्रायंगल) ‘ कहते हैं, तो इसमें शामिल इंसान हर संभव तरीके से पिघल चुका है, तरल हो चुका है।

तीन लोगों को मिलाकर एक प्राणी का रूप दिया गया था

अगर आपको एक त्रिभुज(ट्रायंगल) बनाना है, तो आपको कई तरीकों से तीन लोगों का विलय(मेल) करना होगा। कई तरह से व्यक्तिगत संरचनाओं को ढीला करना था। दूसरे शब्दों में, इन तीन लोगों को समाधि की एक खास अवस्था में रहना होगा, जहाँ उनके शरीर के साथ उनका संपर्क कम-से-कम रह जाए। व्यक्तिगत रूप को खींचकर एक दूसरे किस्म के रूप में बनाया जा रहा था। अगर ऊर्जाओं को इस तरह से खींचना है या अगर एक त्रिभुज(ट्रायंगल) बनाने के लिए ऊर्जाओं को पर्याप्त लचीला(फ्लेक्सिबल) होना है, तो उसे बहुत सूक्ष्म, अत्यंत सूक्ष्म होना होगा। जब आप इस तरह की ऊर्जा से एक त्रिभुज(ट्रायंगल) बनाते हैं, तो यह एक गोल घूमता हुआ पूरा भँवर पैदा करता है, जिसमें सर्वोच्च ऊर्जाएँ खिंची आती हैं। वे सभी प्राणी जो मुक्ति की तलाश में थे, वे भी उसमें खिंच आते हैं। आप उसे ब्रह्मांडीय या चैतन्य ऊर्जा कह सकते हैं। भँवर इसी तरह से काम करता है। लिंग-आकार को इन्हीं ऊर्जाओं का इस्तेमाल करके बनाया गया।

क्यों किया गया सद्‌गुरु के गुरु की ऊर्जाओं का इस्तेमाल?

जब हम चीजों को इस तरह से करते हैं, तो हम जो भी काम करते हैं, उसमें किसी भी तरह की गलती नहीं हो सकती। अगर मैं इसे करता हूँ, तो हो सकता है कि मेरे शरीर में कुछ ऐसा हो, कोई तत्व, जो ऊर्जा में थोड़ी-सी विकृति पैदा कर दे, क्योंकि मैं अभी एक शरीरधारी हूँ और शरीर कभी परफेक्ट नहीं होता। शरीर में कई विकृतियाँ होती हैं। जैसे कि आज मैंने जिस तरह का खाना खाया है, उसकी वजह से मेरी पीठ में थोड़ा दर्द हो सकता है, मुझे सर्दी लग सकती है, वगैरह... और यह लिंग के ऊपर अंकित हो सकता है। इसलिए हम अपने गुरु की ऊर्जा को इस्तेमाल करना चाहते थे। जब इसे इस तरह से किया जाता है तो काम बिल्कुल परफेक्ट होगा। उसमें कोई भी कमी नहीं निकाल सकता। उसमें रत्ती भर भी दोष नहीं होगा।