आध्यात्मिक खोज - कैसे रचें हम अपना भाग्य?
एक खोजी शेरिल सिमोन ने अपनी रोचक जीवन-यात्रा को ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ नामक किताब में व्यक्त किया है। इस स्तंभ में आप उसी किताब के हिंदी अनुवाद को एक धारावाहिक के रूप में पढ़ रहे हैं। पेश है इस धारावाहिक की अगली कड़ी:
कर्म, पुराने कर्म या विचार – कौन रचता है हमारा भाग्य?
भाग्य के विषय पर सद्गुरु की बातें सुनकर मन में यह सवाल आया जिसे मैंने उनसे पूछा, ‘यदि हम अभी अचेतन अवस्था में अपना भाग्य लिख रहे हैं तो यह कैसे हो रहा है? हमारे विचारों से, हमारे कर्म से या फिर हमारे पिछले कर्मों से?’
उन्होंने जवाब दिया, ‘अभी आप जो हैं, आपका पूरा व्यक्तित्व, आप जो कुछ भी हैं, वह जीवन के अलग-अलग प्रभावों का एक जटिल पुलिंदा है। यह आपके सॉफ्टवेयर जैसा है। इसी को कर्म कहते हैं।
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आपका शरीर, आपका मन, आपकी भावनाएं, आपकी ऊर्जा, सब कुछ इन प्रवृत्तियों के अनुसार चलती हैं जो प्रभावों के विशाल पुलिंदे के कारण पैदा होती हैं। यही है आपके जीवन पर कर्म का प्रभाव। जब तक कोई व्यक्ति जागरुकता की एक खास ऊंचाई तक नहीं उठ पाता और जब तक उसका खुद पर एक सीमा तक नियंत्रण नहीं हो जाता वह अचेतन रूप से रचित इन प्रवृत्तियों की रस्सा-कस्सी में खिंचता और धक्के खाते रहता है। आप धक्का खाकर किसी एक तरफ जा रही हों तो यह आपकी ही करनी है - किसी और की नहीं, सिर्फ आपकी।
क्या नया भाग्य रचा जा सकता है?
यदि हमने उसे लिखा है, तो क्या हम उसे मिटा सकते हैं या उससे पीछा छुड़ा सकते हैं?’ ऐसा होने की आशा के उत्साह से मैंने पूछा, ‘या क्या हम जागरुकता के साथ इसमें बदलाव ला सकते हैं? या फिर कुछ ऐसे अनुभव हैं, जो भाग्य के लिखे अनुसार ही होने वाले हैं?
सद्गुरु बोले, ‘फिलहाल हां। बहुत-सी चीजें हैं, जो होकर ही रहेंगी, क्योंकि ये प्रवृत्तियां आपके मन के पक्के इरादे से कहीं अधिक मजबूत और गहरी हैं।
कुछ बुनियादी चीजें अपना रास्ता खुद बना लेंगी। लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी जीवन-ऊर्जा पर खास तरह से काबू कर लेता है, तो वह अपने जीवन के रास्ते को पूरी तरह बदल सकता है।
अब हम उसी चीज की रचना सचेतन मन से करने की बात कर रहे हैं। जब कोई व्यक्ति ‘मैं मुक्ति चाहता हूं’ कहकर आध्यात्मिक बन जाता है, तो उसका मतलब है कि वह अपने जीवन को अपने हाथों से संवारना चाहता है। आप अपने भाग्य को अपने हाथों में लेना चाहती हैं। योग की तरफ पहला कदम बढ़ाकर आप खुद के एक अंश पर काबू करने की कोशिश कर रही हैं, शरीर से शुरू करके सांस, फिर मन और फिर ऊर्जा पर। आप कदम-दर-कदम आगे बढ़ रही हैं। यह केवल पीड़ा से मुक्ति नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है। आप निश्चित रूप से अपने भाग्य को बदल सकती हैं।
ईशा योग अभ्यासों से आए कई बदलाव
मैंने कहा, ‘सद्गुरु, आपने अपने कार्यक्रमों में क्रियाओं का अभ्यास करते रहने से जैसा होने की बात कही थी वैसा ही मेरे साथ हुआ है। जीवन अब थोड़ा आसान लगने लगा है। मुझे ये अभ्यास अच्छे लगने लगे हैं। मेरी बहुत-सी छोटी-छोटी और कुछ बड़ी तकलीफें भी पूरी तरह दूर हो चुकी हैं। मेरी पहले वाली चिंता अब दूर हो गयी है। फिर भी मुझे नहीं लगता कि मैं अपने जीवन के कुछ और बड़े अंश को अपने हाथ में लेने के करीब हूं।
शेरिल, निश्चित रूप से आप उस अंश को अपने हाथों में ले रही हैं। मैं जब आपसे मिला था तब आपका स्वास्थ्य बहुत खराब था। आपकी आंखें तक धंसी हुई थीं। यदि आप अपना अभ्यास जारी नहीं रखतीं, तो आप एक बड़े संकट में पडऩे वाली थीं। यदि आप योगाभ्यास जारी नहीं रखतीं तो आपका स्वास्थ्य और अधिक खराब हो गया होता। अपने डॉक्टर से पूछ कर देखिए आपका क्या होने वाला था। अब सब-कुछ बदल गया है। तो आपने अपना जीवन अपने हाथ में ले लिया, है न? आप अपने पैरों पर खड़ी हैं, हर चीज को पहले से कहीं अच्छी तरह से करने लगी हैं। निश्चित रूप से अपने जीवन का वह हिस्सा आपने हाथों में ले लिया है। अपने डॉक्टर से पूछकर देखिए, वे मेरी बात की पुष्टि करेंगे। जब आप शारीरिक रूप से इतनी अधिक अस्वस्थ हो जाती हैं, तो सब-कुछ टूटकर बिखर जाता है। अब चूंकि सब ठीक हो चुका है आपकी ऊर्जा बढ़ गयी है। गौर कीजिए आपका स्वास्थ्य कितना अच्छा हो गया है। तो जिस पल आपने अपने शारीरिक स्वास्थ्य को अपने हाथ में लिया उसी पल इन सब बातों को आपने अनजाने ही अपने हाथ में ले लिया।’
ईशा योग से पहले अलग था जीवन
अपने बालों को एक चोटी में बांधे, एक उत्साही युवा की तरह सद्गुरु ने अपना धूप का चश्मा नीचे करके अपनी उन सर्वज्ञानी आंखों से मुझे देखा। वे नहीं चाहते थे कि मैं उनकी वह बात न समझ पाऊं कि मेरे साथ जो कुछ घटा है वह संयोग नहीं है। चिकित्सा विशेषज्ञों के पूर्वानुमानों से परे उनकी कही हर बात सोलह आने सही थी। ईशा योग शुरू करने से पहले मेरा स्वास्थ्य बहुत खराब था। अपना रोजमर्रा का काम करना भी मुझे टेढ़ी खीर लगता था। सब ठीक है सोचते हुए मैं हर दिन रोजमर्रा का काम किसी तरह निबटा पाती थी। शाम को घर पहुंचने पर मैं और कुछ करने की हालत में ही नहीं होती थी। पूरी तरह निचुड़ी हुई महसूस करती थी, मुझमें जरा-सी भी ताकत नहीं होती थी। उन दिनों की तुलना में अब मैं बहुत अच्छा और हल्का महसूस करती हूं।