आत्म-रूपांतरण का एक शक्तिशाली तरीका
हम सभी खुद का एक व्यक्तित्व तैयार करते हैं, लेकिन ये व्यक्तित्व या आत्म-धारणा अचेतन तरीके से तैयार की जाती है। सद्गुरु बता रहे हैं कि कैसे हम इसे चेतन होकर तैयार कर सकते हैं, और अपनी सीमाओं से परे जा सकते हैं।
अचेतन व्यक्तित्व का निर्माण
सदगुरु : सभी मनुष्य इस जीवन प्रक्रिया में जागरूकता के साथ या फिर अनजाने में, अपनी एक ख़ास छवि बना लेते हैं, अपने एक ख़ास व्यक्तित्व का निर्माण कर लेते हैं। ये जो छवि आपने अपने अंदर बनाई है उसका आप की वास्तविकता के साथ सम्बन्ध नहीं होता। आप के आतंरिक स्वभाव से, आप के अपने आप से इसका कोई सम्बन्ध नहीं होता। ये एक ख़ास छवि है जो आपने अधिकतर बिना जागरूकता के, अनजाने में ही बना ली है। हर एक व्यक्ति की, चाहे वो जो भी हो, उसकी एक ख़ास छवि होती है, लेकिन बहुत ही कम लोगों ने अपनी छवि को होशपूर्वक, जागरूकता के साथ बनाया होता है। बाकी सभी ने अपनी छवि उन बाहरी परिस्थितियों या बाहरी ढांचों के अनुसार बनाई है जिनमें वे होते हैं।
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नए व्यक्तित्व का निर्माण
तो अब हम अपनी खुद की एक नई छवि होशपूर्वक, जागरूकता के साथ क्यों न बनायें, जो हम वास्तव में होना चाहते हैं? अगर आप पर्याप्त रूप से बुद्धिमान और जागरूक हैं तो अपनी एकदम नयी छवि का पुनर्निर्माण कर सकते हैं। यह संभव है। लेकिन पहले आप को अपनी पुरानी छवि को पूरी तरह छोड़ देना है। ये बनावटीपन नहीं है। अनजाने में कुछ करने की बजाय आप होशपूर्वक, जागरूकता के साथ इसे करेंगे। आप अपनी उस छवि का निर्माण कर सकते हैं जो पूरीतरह से आपकी सहायक है, अनुरूप है। वो छवि जो आप के चारों ओर समरसता, सामंजस्य बनाये, ऐसी छवि जिसमें कम से कम टकराव, संघर्ष या घर्षण हो और जो आपके आतंरिक स्वभाव के अनुरूप हो। सोचिये, कौन सी छवि आप के आतंरिक स्वभाव के एकदम निकट है? देखिये, आतंरिक स्वभाव एकदम मौन, शांत होता है, वह हावी नहीं हो जाता लेकिन अत्यन्त प्रभावी होता है। वो बहुत सूक्ष्म पर काफी प्रभावशाली है। तो हमें यही करने की ज़रूरत है -- आप के अंदर की बुरी प्रवृत्तियां -- आप का गुस्सा, आप की सीमायें, कमजोरियां -- ये सब काट कर फेंक देनी हैं। अपनी एक नयी छवि बनाईये, जो सूक्ष्म हो पर जबरदस्त रूप से प्रभावशाली हो।
कार्मिक सीमाओं को तोड़ने का अवसर
अगले एक दो दिन तक इस बारे में विचार कीजिये और अपने लिये एक उचित छवि बनाइये जो आप के विचारों और आपकी भावनाओं के आधारभूत स्वाभाव के अनुसार हो। कुछ करने से पहले सही ढंग से देखिये कि हम अब जो भी बनाने जा रहे हैं, वो क्या उससे बेहतर है जो हमारे पास अभी है। ऐसा समय चुनिये जब आप शांत हों, कोई हलचल न हो। अपनी पीठ को आराम से सीधा रख कर बैठिये और बिलकुल शांत, सहज रहिये। अपनी आँखें बंद कीजिये और इस बात की कल्पना कीजिये कि लोगों को आप का कैसा अनुभव होना चाहिये। एक पूरी तरह से नया मानव बनाइये। उसको, जितना संभव हो उतनी बारीकी से देखिये। ये देखिये कि क्या आप की यह नई छवि ज्यादा मानवीय है, ज्यादा सक्षम है, ज्यादा प्रेमपूर्ण है? जितने ज्यादा शक्तिशाली ढंग से हो सके, उस तरह से इस छवि की कल्पना कीजिये। अपने अंदर उसे जीवंत कीजिये। अगर आप के विचार काफी शक्तिशाली हैं, अगर आप की कल्पना करने की प्रक्रिया बहुत शक्तिशाली है तो ये आप के कर्म बन्धनों को भी काट सकती है। आप जो होना चाहते हैं उसकी शक्तिशाली कल्पना करके आप अपनी कार्मिक सीमाओं को, बंधनों को तोड़ सकते हैं। यह एक अवसर है अपने विचारों, भावनाओं और अपने कर्मों की सभी सीमाओं के परे जाने का।