निर्वाण षट्कम: राग व रंगों से परे
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित निर्वाण षट्कम आज भी श्रोताओं को मुग्ध करता है। क्या है इस रचना का अर्थ? जानते हैं सद्गुरु से..
हजारों साल पहले आदि शंकर द्वारा रचित निर्वाण षट्कम आज भी श्रोताओं को मुग्ध करता है। यह हमें राग व रंगों से परे के आयाम में ले जाता है...
निर्वाण षट्कम का मूल भाव वैराग्य है। इस मंत्र को ब्रह्मचर्य मार्ग का समानार्थी माना जाता है। इसकी ध्वनि हमारे अंतरतम की गहराइयों में हलचल पैदा कर देती है। ईशा योग केंद्र आने वाले बहुत से लोग इसे सुन कर आंसुओं से भर गए।
सद्गुरु:
निर्वाण का अर्थ है “निराकार”।
निर्वाण षट्कम इस बारे में है कि – आप यह या वह नहीं बनना चाहते। यदि आप यह या वह नहीं बनना चाहते, तो आप क्या बनना चाहते हैं? आपका मन यह नहीं समझ सकता, क्योंकि आपका मन हमेशा कुछ न कुछ बनना चाहता है। अगर मैं कहूं, “मैं यह नहीं बनना चाहता, मैं वह नहीं बनना चाहता,” तो आप सोचेंगे, “अरे, कोई महान चीज की बात कर रहे हैं!” महान नहीं। “अरे, तो क्या रिक्तता?” रिक्तता भी नहीं। “शून्यता?” शून्यता भी नहीं।
निर्वाण षट्कम
https://soundcloud.com/soundsofisha/nirvana-shatakam
मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
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न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगतं नैव मुक्तिर्न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
संपादक की टिप्पणी: इस वर्ष ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि महोत्सव 27 फरवरी को मनाया जा रहा है। सद्गुरु के साथ रात भर चलने जाने वाले इस उत्सव में सद्गुरु के प्रवचन और शक्तिशाली ध्यान प्रक्रियाओं के साथ-साथ पंडित जसराज जैसे कलाकारों के भव्य संगीत कार्यक्रम भी होंगे। आस्था चैनल पर सीधे प्रसारण का आनंद लें शाम 6 बजे से सुबह सुबह 6 बजे तक।
शिव को पूरी दुनिया तक पहुंचाने के लिए ईशा एक ऑनलाइन ’थंडरक्लैप’ अभियान शुरू कर रहा है। यदि आप लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं और महाशिवरात्रि के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते हैं, तो हमारे साथ शामिल हों। इसके लिए आपको सिर्फ एक ट्वीट करना होगा। (फेसबुक संदेश भी निमंत्रण का काम करते हैं!)