जीवन में ध्यान की स्थिरता लाने के बहुत जरुरी है मन में स्थिरता को लाना। आज सद्‌गुरु बता रहे हैं कि मन को पूरी तरह स्थिर बनाने के लिए जरुरी है की हम अपने विचारों को अहमियत देना छोड़ दें। वे बता रहे हैं कि कैसे इसे गुलामी मानना एक भूल है..

महाशिवरात्रि के उल्लास के बाद फिलहाल हम सम्यमा की निश्चलता व स्थिरता में प्रवेश कर गए हैं। हैं। शिव, उल्लास और स्थिरता दोनों के परम प्रतीक हैं। पिछले महीने की बहुत गतिविधियों या दूसरे शब्दों में कहें तो सुपर ह्यूमन स्तर की गतिविधियों में व्यस्त रहने के बाद अब हम सम्यमा की निश्चलता में पहुंचे हैं।

आप निश्चल होना तो चाहते हैं, लेकिन आप जिंदा हैं, इसलिए हमेशा हलचल में हैं, कुछ न कुछ हरकत कर रहे हैं। इस जीवन को एक खास स्तर तक की स्थिरता में लाने के लिए अपनी मानसिक गतिविधियोें से खुद को पूरी तरह से अलग करना होता है। शारीरिक गतिविधि कोई समस्या नहीं है, उसे हम आसानी से स्थिर कर सकते हैं, यह मनौवैज्ञानिक ढांचा ही है जो सक्रिय रहता है। आपको यह समझना होगा कि मन की तुलना में शरीर इस मामले में बेहतर है कि अगर आप शरीर को स्थिर कर लेते हैं तो यह तब भी विद्यमान रहता है। लेकिन मन जैसे ही स्थिर होता है, इसका अस्तित्व ही खत्म हो जाता है। इसलिए मन आपको शांत नहीं होने देता, यह तब तक लगातार कुछ न कुछ करता रहता है, जब तक कि आप अपने मन की प्रकृति से खुद को पूरी तरह से अलग नहीं कर लेते।

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मन को स्थिर रखने के ये आसान से तरीके आज के आधुनिक दौर में बेमानी हो चुके हैं। अगर आप इनकी बात करेंगे तो यह एक तरह का शोषण नजर आता है। अगर आप कहीं आध्यात्मिकता के लिए जाएं तो वे सबसे पहले आपको आत्म-समर्पण के लिए कहते हैं।

सम्यमा वह अवस्था है, जहां आप पूरी तरह से जागरूक हो जाते हैं कि आप न तो शरीर हैं, न विचार और न ही यह संसार हैं। अगर आप इन तीनों चीजों से मुक्त हो गए तो फिर आपके लिए कष्ट का कोई कारण ही नहीं होगा।
इसका मतलब है कि आपको अपनी तरफ से कोई निर्णय नहीं करना है। अगर आप अपने मन को निर्णय नहीं लेंगे तो आप देखेंगे कि आमतौर पर आपका मन स्थिर हो गया है। अगर आप नहीं समझ पा रहे हैं कि समपर्ण का आशय क्या है तो आप सिर्फ आदेशों का पालन कीजिए। दोनों में से कुछ तो कीजिए। ‘बैठ जाओ’ का मतलब बस बैठ जाइए, ‘खड़े हो जाओ’ का मतलब है बस खड़े हो जाइए, यानी जो कहा जाए बस कर दीजिए। लेकिन आज के दौर में यह पूरी तरह से ‘‘गलत’’ समझा जाता है। अगर आप किसी ऐसी जगह पर पहुंच जाएं, जो शोषण की संभावना से भरी हो तो यह आपके लिए गलत होगा। लेकिन अगर आपके कल्याण और बेहतरी के लिए कुछ किया जाता है तो मुझे उसमें कोई हर्ज दिखाई नहीं देता।

अगर आप नहीं जानते कि आत्मसमर्पण क्या होता है तो कम से कम आज्ञाकारी बन जाइए। बिना यह कदम उठाए मन को स्थिर करना कुछ ऐसा ही है जैस कोई पारे को पकड़ने की कोशिश कर रहा हो। अगर आप पारे के एक गोले को पकड़ने की कोशिश करते है, वह सैकड़ों छोटी-छोटी गोलियों में बदल जाता है। समपर्ण के द्वारा या आज्ञाकारी बन कर आप खुद को अपने मन से अलग कर सकते हैं। जैसे ही आप खुद को अपने मन से अलग कर पाएंगे, आप देखेंगे कि स्थिरता आपके अस्तित्च का एक स्वाभाविक अंग है, क्योंकि अस्तित्व आमतौर पर निश्चल ही है। केवल भौतिक शरीर ही सक्रिय होता है, क्योंकि स्थान या स्पेस तो अचल है, पूरी तरह से अचल और स्थिर। तीव्रता की चरम अवस्था स्थिरता ही है। अगर आप अपने भीतर इस स्थिरता का जरा भी अनुभव कर लेते हैं तो अचानक आप पाएंगे कि आपका शरीर, मन, हर चीज जबरदस्त उल्लास से उत्तेजित हो उठेगा। कुल मिलाकर जीवन बिल्कुल अलग तरह का ही होगा।

अगर किसी व्यक्ति को स्थिर होना है तो उसे अपने मन को कम से कम अहमियत देनी होगी। यह संपूर्ण अस्तित्व अपने आप में एक जीवंत मन, एक जीवंत दीमाग है। जब इतना विशालकाय दिमाग सक्रिय होकर काम पर लगा है तो फिर अपने इस छुद्र दिमाग को एक किनारे रख दीजिए। अगर आप उस ब्रम्हांडीय दिमाग को नहीं देख सकते तो फिर यह देखने की कोशिश कीजिए कि किसी और का दिमाग जो आपसे परे है, आपके लिए काम कर रहा है। लेकिन आज के दौर में इसे लोग गुलामी कहेंगे। आज आध्यात्मिक प्रक्रिया पंगु हो गई है। आज हम बहुत कुछ नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी हमसे उम्मीद की जाती है कि हम लोगों को ज्ञान की प्राप्ति करा दें, आत्म-बोध करा दें। यह कुछ ऐसा ही है कि हमसे कहा जाए कि कार के टायर निकाल दो, और फिर भी उम्मीद की जाए कि उसे हम बहुत दूर तक चला कर ले जाएं।

आध्यात्मिक गुरु हमेशा ही चीजों को करने के आसान तरीके तलाशते रहते हैं। आज अगर लंच के समय आप यह तय करते हैं कि आप अपने कान से नूडल्स खाएंगे तो हो सकता है कि मैं आपसे कहूं कि आप अपनी नाक से इन्हें खाने की कोशिश कीजिए, उस स्थिति में खाना कम से कम आपके गले में तो जाएगा। आप चाहें तो सूप से कोशिश कर सकते हैं। यह अपेक्षाकृत आसान रहेगा, फिर भी नाक से पीने में आपको काफी दिक्कत आएगी।

यह संपूर्ण अस्तित्व अपने आप में एक जीवंत मन, एक जीवंत दीमाग है। जब इतना विशालकाय दिमाग सक्रिय होकर काम पर लगा है तो फिर अपने इस छुद्र दिमाग को एक किनारे रख दीजिए।
इसके बदले अगर आप मुंह खोल कर खाएं तो वही नूडल्स अपने आप में एक आनंद की चीज होगा। आध्यात्मिक प्रक्रिया भी ऐसी ही है। फिलहाल आपकी हालत भी कुछ ऐसी है- ‘मैं यह नहीं कर सकता, मैं वह नहीं कर सकता, लेकिन मुझे आध्यात्मिक प्रक्रिया के बारे में बताइए।’ इसलिए हम आपके आंख, नाक, कान के जरिए आपको इसे देने की कोशिश कर रहे हैं, यह प्रक्रिया मुश्किल तो है, लेकिन क्या करें? हमें विश्वास है कि अगर हम आपकी नाक के जरिए जबरदस्ती आपको खाना खिलाते रहेंगे तो एक दिन आप अपना मुंह खोल देंगे। और ऐसा आप कुछ सिखाने की वजह से नहीं करेंगे, महज अपने बोध से आप ऐसा कर देंगे। हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जिस दिन आप अपना मुंह खोलेंगे। एक गुरु होना सचमुच कितना हास्यास्पद और बेतुका है!

सम्यमा वह अवस्था है, जहां आप पूरी तरह से जागरूक हो जाते हैं कि आप न तो शरीर हैं, न विचार और न ही यह संसार हैं। अगर आप इन तीनों चीजों से मुक्त हो गए तो फिर आपके लिए कष्ट का कोई कारण ही नहीं होगा। सम्यमा का मकसद ही यही है कि व्यक्ति शरीर और मन के कोलाहल व उथलपुथल से दूर होकर अपने भीतर परम निश्चलता व स्थिरता को पा ले। दुनियाभर के 670 जिज्ञासु, जो इस अवस्था को पाने के लिए बेचैन हैं, ईशा योग केंद्र में इकठ्ठे हुए हैं। वे सब बहुत अच्छा कर रहे हैं। शुरु के कुछ दिनों में उन्हें अपनी शारीरिक सीमाओं के चलते संघर्ष करना पड़ा, लेकिन अब वे बड़ी खूबसूरती और सहजता के साथ स्थिरता की तरफ बढ़ गए हैं।
मेरी कामना है कि आप भी सम्यमा की निश्चलता और स्थिरता को महसूस कर सकें।
प्रेम व प्रसाद

Love & Grace