वासना, क्रोध, लोभ - शिव को समर्पित
सद्गुरु कहते हैं शिव को अपना सब कुछ समर्पित कर दो- लेकिन उस सब कुछ में अगर हमारे पास क्रोध, लोभ और वासना जैसी चीजें हों तो उन्हें कैसे समर्पित करें – इसी सवाल का जवाब दे रहे हैं सद्गुरु आज के स्पॉट में-
प्रश्न: सद्गुरु, अपनी एक चर्चा में आपने जिक्र किया था कि हमें अपनी सारी ऊर्जा शिव के प्रति समर्पित कर देनी चाहिए। आपने कहा था- ‘चाहें वह प्रेम हो, वासना हो, क्रोध हो या लालच, अपने हर भाव को शिव की ओर मोड़ दीजिए।’ आखिर कोई व्यक्ति अपना क्रोध, वासना और लोभ को शिव के प्रति कैसे समर्पित कर सकता है? प्रेम समर्पित करना तो समझ में आता है, लेकिन दूसरे भावों को कैसे मोड़ा जाए यह मैं नही समझ पा रहा हूं।
सद्गुरु:
आप अपने जीवन में जो कुछ भी करते हैं, उसे आप उन्हीं चीजों की मदद से करते हैं जो आपके पास हैं। जो चीजें आपके पास हैं ही नहीं आप उनकी मदद से कुछ नहीं कर सकते। इसलिए जो भी आपके पास है, आप उसका इस्तेमाल कीजिए। यहां इससे मतलब नहीं है कि आप शिव को क्या दे रहे हैं या उन्हें क्या मिलेगा। दरअसल शिव को तो आपसे कुछ चाहिए ही नहीं। सबसे खास बात है अपनी उर्जा को मोड़ने की कला सीखना; आपके पास जो कुछ भी है, उसे आप एक खास दिशा में मोड़ दें। अगर आप अपनी सारी उर्जा किसी एक दिशा में नहीं लगाते तो आप जीवन में कहीं नहीं पहुंच पाएंगे।
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आपको एक मजेदार कहानी सुनाता हूं। मैसूर के रास्ते में एक जगह है- नंजनगुंड। नंजनगुंड के जरा सा आगे बाईं तरफ एक आश्रम पड़ता है, जिसे मल्लाना मूलई कहते हैं। तकरीबन सौ साल पहले वहां मल्ला नाम का आदमी रहा करता था। उस समय मैसूर शहर दक्षिण भारत के कुछ चुनिंदा शहरों में से एक था, जिसे काफी सुनियोजित व खूबसूरत ढंग से तैयार किया गया था। इसकी एक वजह थी कि इस काम में वहां के राजा ने खुद रुचि ली, जिसमें सौंदर्य की अच्छी समझ थी। उन्होंने बेहद खूबसूरत महल और बाग-बगीचे बनवाए।
उस समय लोग कारोबार, जीवनयापन या मनोरंजन- हर काम के लिए मैसूर जाते थे। उन दिनों लोग या तो पैदल जाते थे या फिर बैलगाड़ी से। लेकिन जब वे लोग इस आश्रम के पास आते थे, जो मैसूर से 16 किलोमीटर दूर था तो मल्ला उन्हें लूट लिया करता। परेशान होकर लोगों ने उससे बात करके इसका रास्ता निकालने के लिए उससे एक सौदा किया। उसके बाद मल्ला ने वहां एक व्यवस्था बना दी और वह एक तरह से वहां कर वसूली करने लगा। नियम के अनुसार जो भी व्यक्ति वहां से गुजरता, उसे कर के रूप में एक रुपया चुकाना पड़ता। उस समय एक रुपये की काफी कीमत हुआ करती थी। इस नियम के बाद लोग उससे नफरत करने लगे और वे उसे ‘कल्ला’ कहने लगे, जिसका मतलब होता है- चोर। और वह जगह ‘कल्लाना मूलई’ यानी ‘चोर का कोना’ नाम से जानी जाने लगी।
पूरे साल मल्ला ने लोगों से पैसे इकठ्ठे किए और फिर महाशिवरात्रि के दिन उसने खूब धूमधाम से उत्सव मनाया। उस दिन उसने पूरे शहर के लोगों को भोज दिया। मल्ला ने उन पैसों का इस्तेमाल अपने लिए नहीं किया, उसके पास अपने जीवन यापन के लिए बस एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा था। वह हर किसी को लूटता, लेकिन सारा पैसा वह शिव के महोत्सव पर खर्च कर देता था। एक बार दो साधु वहां आए- वीर और शैवास, जो शिव के बहुत बड़े भक्त थे। जब उन्होंने देखा कि मल्ला लोगों को लूटकर उस पैसे से महाशिवरात्रि का बड़ा आयोजन कर रहा है तो वह शिव के प्रति उसकी यह भक्ति देखकर हैरान व शर्मिंदा हो गए। उन्होंने इस बारे में मल्ला से बात की और उससे कहा कि इस उत्सव को आयोजित करने के और भी तरीके हैं। उन लोगों ने वहां मिलकर एक आश्रम की स्थापना की और मल्ला भी उन लोगों की संगत में एक साधु बन गया। उसके बाद उन तीनों ने महासमाधि ले ली।
सवाल यह नहीं है कि आप किस रूप में समर्पित करते हैं, बस अपना जीवन समर्पित कर दीजिए। समर्पण में आपकी जिंदगी एक बिंदु पर केंद्रित हो जाती है। एक बार जीवन जब किसी एक बिंदु पर केंद्रित हो जाए तो फिर जिंदगी आगे बढ़ने लगती है। और अगर जिंदगी पांच दिशाओं के बीच फंसी हुई है तो फिर यह कहीं नहीं पहुंचेगी बल्कि सिर्फ तनाव पैदा करेगी। अगर आप कोई हथियार बनाते हैं तो आप चाहते हैं कि यह अपने निशाने पर गहरे तक भेदे, इसलिए आप उसे नुकीला या नोंकदार बनाते है। हथियार को नुकीला होना ही चाहिए। नुकीला और तेज होने का मतलब है कि उसके बिंदु सीमित हैं।