प्रश्नकर्ता: सद्गुरु, विचारों का स्रोत क्या है?

सद्गुरु: विषय वस्तु के संदर्भ में, आपके विचारों का स्रोत आपकी इंद्रिय-बोध का संग्रह है। सार-तत्व के मामले में, विचार बस एक स्पंदन है - आप उसे कोई भी रूप दे सकते हैं। जब स्पंदन लगातार होते हैं, तो विचार प्रक्रिया गति पकड़ लेती है। ध्यान के जरिए, आप स्पंदनों को शांत करके निश्चल बना सकते हैं। आप अभी जिन स्पंदनों को विचार के रूप में अनुभव करते हैं, वो विकास के निचले स्तर पर मूल प्रवृत्ति कहलाएगी। मूल प्रवृत्ति ठीक-ठीक विचार जैसी नहीं है - मूल प्रवृत्ति में विचार से कहीं ज्यादा स्पष्टता होती है। 

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मूल प्रवृत्ति विचार का निचला रूप है, या विचार मूल प्रवृत्ति का अधिक ऊंचा रूप है।।

कोई विचार एक तरह से या दूसरी तरह से बन सकता है - वह विरोधाभासी हो सकता है। मूल प्रवृत्ति स्पष्ट होती है। जो जानवर विकास के निचले स्तर पर हैं, वो अपने जीवन के बारे में इंसान से बहुत अधिक स्पष्ट लगते हैं, क्योंकि उनके स्पंदन मूल प्रवृत्ति के स्तर पर होते हैं। मूल प्रवृत्ति हमेशा जीवन-संरक्षण के बारे में होती है - ज्यादातर भौतिक सुरक्षा। मिसाल के लिए, अगर आप एक कीड़े को देखें, तो वो ज्यादा स्पष्ट लगता है - वो ठीक-ठीक जानता है कि कहां जाना है, क्योंकि वो अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुसार चलता है। 

हम कह सकते हैं कि मूल प्रवृत्ति विचार का निचला रूप है, या विचार मूल प्रवृत्ति का अधिक ऊंचा रूप है - जिस भी तरीके से आप इसे देखना चाहें। मूल प्रवृत्ति का दायरा बहुत छोटा होता है - यह हमेशा आपके नजदीकी परिवेश के बारे में होता है। लेकिन आपके विचारों को नजदीकी परिवेश के बारे में होना जरूरी नहीं है - वो किसी भी चीज के बारे में हो सकते हैं। इसीलिए आप इतनी ज्यादा बकवास सोचते हैं जिसका वाकई आपसे संबंध नहीं होता। आप हर तरह की चीजों के बारे में सोचते हैं - स्वर्ग, नरक, लाखों साल बाद या लाखों साल पहले के बारे में - विचार कहीं भी जा सकते हैं। 

विकास की प्रक्रिया में, जैसे-जैसे शरीर विकास करता है, अंदर जो स्पंदन होते हैं, वो भी मूल प्रवृत्ति से विचार में विकसित हो जाते हैं। विचार एक खास तरह की आजादी है - यह आपको जीवन की ज्यादा बड़ी पहुंच देता है। लेकिन साथ ही, विचार इंसान में जबरदस्त उथल-पुथल पैदा कर सकते हैं। सारी पीड़ा इसलिए है क्योंकि आप नहीं जानते कि किस तरह सोचें और क्या करें। अगर आप बस अपनी मूल प्रवृत्ति से चलते, तो आप साफ-साफ जानते कि क्या करना है। जीवन बहुत आसान होता, लेकिन बहुत सीमित भी होता। जीवन-संरक्षण के अलावा कोई दूसरी संभावना नहीं होती। 

मूल प्रवृत्ति के विचार में विकसित होने के बाद, और जब विचार प्रक्रिया अत्यधिक हो गई, तो संघर्ष पैदा हो गए, क्योंकि आपके द्वारा जमा की गई इंद्रियों की छापों के मुताबिक, विचार बेलगाम चलते हैं। विचार प्रक्रिया लोगों के लिए समस्या सिर्फ इसलिए बन गई है क्योंकि वे नहीं जानते कि यह बस एक स्पंदन है। ये स्पंदन कोई भी रूप ले सकते हैं, या आप उन्हें कोई रूप दिए बिना, बस एक स्पंदन की तरह अनुभव कर सकते हैं। 

एक तरह से, शून्य ध्यान की प्रक्रिया बस वही है। ऐसा नहीं है कि आपके स्पंदन रुक गए हैं, फिर भी - बात बस इतनी है कि आपने उनके साथ कोई रूप या मतलब जोड़ना बंद कर दिया है। अपने अंदर होने वाले हर स्पंदन के साथ कोई रूप या मतलब नहीं जोड़ना है, इस बारे में पर्याप्त जागरूक होना एक जबरदस्त आजादी है, और यह आपको आपके मन में मौजूद पुरानी चीजों से मुक्त करती है। या पारंपरिक शब्दों में - यह आपकी कर्मगत संरचना के बंधन को खोलना है, क्योंकि अब आप उसे कोई रूप या अर्थ नहीं दे रहे हैं। 

ईशा योग की पूरी प्रक्रिया, आप अभी जो स्पंदन हैं, उसे कोई रूप न देने के बारे में है। आपका विचार एक स्पंदन है, और एक गहन तरीके से, जिसे आप मैंकहते हैं, वह भी एक स्पंदन है। जीवन खुद एक तरह का स्पंदन है। आधुनिक भौतिकी सिद्ध कर रही है कि पूरा अस्तित्व ऊर्जा का एक खास स्पंदन है। भौतिक शरीर, विचार, भावनाएं, और हर दूसरी चीज अस्तित्व के स्पंदनों के विभिन्न पहलू हैं। मनुष्यों में, यह स्पंदन मूल प्रवृत्ति की अवस्था से एक विचार की अवस्था में विकसित हो गया है, जो एक आजादी है क्योंकि यह आपको जीवन तक ज्यादा बड़ी पहुंच देती है। साथ ही, आवश्यक जागरूकता के बिना, इंसान जिन सारी पीड़ाओं से गुजर रहे हैं वो बस उनके विचारों में हैं - वह उनके सोचने के तरीके में है।