स्वर्ग लोक, नरक और भूलोक - रहस्य तीन लोकों का
स्वर्ग लोक में क्या होता है? तीन लोक के नामा क्या हैं? नरक और भूलोक में क्या फर्क है? जब किसी प्राणी के लिए पांच तत्वों का खेल खत्म हो जाता है, तब भी यह जीवन चलता रहता है। मरने के बाद भी जो जीवन चलता रहता है, उसे दो भागों में बांटा गया है - स्वर्ग लोक और नरक लोक...जानते हैं सद्गुरु से।
हमारे पुराणों, ग्रंथों और परंपरा में तीन लोकों की बात की जाती है - पृथ्वी लोक, नरक लोक और स्वर्ग लोक। कहां हैं स्वर्ग और नरक? क्या है इस मानव जन्म की विशेषता? आइये जानते हैं कि क्यों स्वर्ग लोक से भी प्राणी लौटकर पृथ्वीलोक आना चाहते हैं...
शिखा: सद्गुरु, मेरा प्रश्न पहले अध्याय के पैंतीसवें श्लोक से जुड़ा है। वे तीन लोक कौन-कौन से हैं जिनका जिक्र अर्जुन ने वहां किया है?
अर्जुन का प्रश्न था - हे गोविंद, ऐसे राज्य और खुशी का क्या मतलब कि जिनके साथ आप इन सब चीजों का आनंद ले सकते हैं, वे ही अब लडऩे के लिए कतार में सामने खड़े हैं? मेरे गुरु, पिता, बच्चे, दादा, पोते, मामा, ससुर, जीजा-साले और यहां तक कि मेरे अपने भाई भी मुझसे लडऩे के लिए तैयार खड़े हैं, अपने जीवन को दांव पर लगाने के लिए खड़े हैं। बेशक वे सब मुझे मारना चाहते हों, पर मेरी उन्हें मारने की कोई इच्छा नहीं है। हे कृष्ण, सांसारिक साम्राज्य तो बहुत ही तुच्छ चीज है, मैं तो तीनों लोकों के बदले भी धृतराष्ट्र के पुत्रों से युद्ध करने के लिए तैयार नहीं हूं। हे महादेव, हम इन लोगों को मारकर केवल पाप के ही भागीदार बनेेंगे। धृतराष्ट्र के पुत्रों और अपने दोस्तों को मारना हमारे लिए सही नहीं है। अपने ही परिवार वालों को मारकर कोई कैसे खुश रह सकता है?
सद्गुरु: यह अपने आप में दिलचस्प है कि यहां अर्जुन, श्रीकृष्ण को महादेव बुला रहे हैं। आमतौर पर महादेव शब्द भगवान शिव के लिए ही बना है और यहां वह कृष्ण को महादेव कहकर संबोधित कर रहे हैं।
स्वर्ग लोक और नरक सिर्फ अनुभव में हैं
तो तीन लोक कौन से हैं? यह संसार जिसे भौतिक वास्तविकता भी कहा जाता है, पांच तत्वों का मिश्रण है। फिर भी जब किसी प्राणी के लिए इन पांच तत्वों का खेल खत्म हो जाता है, तब भी यह जीवन चलता रहता है। मरने के बाद भी जो जीवन चलता रहता है, उसे दो भागों में बांटा गया है - स्वर्ग और नरक, लेकिन आजकल अंग्रेजी भाषा में इन शब्दों का मतलब थोड़ा संकीर्ण हो गया है।
सिर्फ पृथ्वी लोक में हमारे पास विवेक होता है
मानव जीवन का महत्व इसलिए है, क्योंकि आपके पास विवेक है। आप अपने विवेक का इस्तेमाल खुद को आगे बढ़ाने में कर सकते हैं। 'हेल' और 'हेवन' शब्द तो गलत संकेत देते हैं। तो चलिए ऐसा करते हैं कि हम एक दुनिया को सुखद और दूसरी को दुखद दुनिया कह लेते हैं। एक बार आपने अपना शरीर छोड़ दिया तो आपके पास कोई विकल्प नहीं बचता। आपके पास विवेक विचार की, अंतर करने की क्षमता नहीं होती, क्योंकि आपके शरीर के साथ-साथ आपकी समझ भी चली जाती है।
स्वर्ग लोक और नरक में बस प्रवृत्तियाँ आपको चलातीं हैं
इन तीन तरह के लोकों में से केवल भौतिक संसार में ही बुद्धि और विवेक सक्रिय होता है, आप में अंतर करने की क्षमता होती है। आप अपने से इतर कुछ बना सकते हैं। बाकी बची दो दुनिया में आप अपने ही द्वारा बनाई गई प्रवृत्तियों के अनुसार या तो कष्ट में रहते हैं या मजे करते हैं। मतलब यह है कि वहां आपका कोई बस नहीं चलता।
सिर्फ पृथ्वी पर बुद्धि की क्षमता उपलब्ध है
हालांकि आपके पास भेद करने की, अंतर करने की क्षमता होती है, फि र भी आप उसका इस्तेमाल यदा-कदा ही करते हैं। अगर आपकी बुद्धि और अंतर करने की क्षमता वाकई में सक्रिय है तो आप अपनी प्रवृत्ति के वश में नहीं आएंगे। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी कार्मिक प्रवृत्ति क्या है और किस तरह से बाहरी ताकतें आपको उकसा रही हैं, आप हर पल वैसे ही होंगे जैसे आप होना चाहते हैं। इस तरह की कोई भी संभावना, क्षमता और शक्ति केवल तभी कारगर है, जब आप इस संसार में प्राणी के रूप में मौजूद हैं। दुखद और सुखद दोनों ही तरह की दुनिया में आपके पास ऐसी कोई संभावना, क्षमता और शक्ति नहीं होती।
देवता भी पृथ्वी पर आना कहते हैं
भारत में ऐसी कितनी ही कहानियां हैं, जिसमें यह वर्णन है कि देवता भी अपनी शक्ति को और बढ़ाने के लिए अपनी मर्जी से मानव रूप में धरती पर जन्म लेते हैं और जरुरी तप या साधना की। ऐसा इसलिए क्योंकि केवल मानव में ही भेद करने की क्षमता होती है। अगर आपने कोई शरीर धारण किया हुआ है और आप फिर भी अपनी समझ का इस्तेमाल नहीं करते, तो आप अपनी प्रवृत्ति के अनुसार बहते चले जाएंगे। यह कुछ ऐसा होगा मानो आप संभावना से भरे इस संसार में नहीं हैं, बल्कि निष्क्रियता के संसार से ताल्लुक रखते हों, आप इस संसार में नहीं, दूसरे संसार में हों। लेकिन इस समय यह संसार ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां आपके पास अंतर करने की क्षमता है। इसलिए आप अपनी इस शक्ति को काम में लगाइए। अगर आप पूरे दिन ऐसा करते हैं तो आप आनंद में रहेंगे।
आगे जारी ...
यह लेख ईशा लहर से उद्धृत है। |
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