संगीत से ध्यान की ओर
ईशा योग केंद्र में आना और सद्गुरु के सान्निध्य में कुछ दिन गुजारना किसी के लिए भी अनूठा अनुभव हो सकता है। जाने-माने बांसुरी वादक समीर राव को यहां पर आकर कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। पेश हैं, उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश:
ईशा योग केंद्र में आना और सद्गुरु के सान्निध्य में कुछ दिन गुजारना किसी के लिए भी अनूठा अनुभव हो सकता है। जाने-माने बांसुरी वादक समीर राव को यहां पर आकर कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। पेश हैं, उनसे की गई बातचीत के मुख्य अंश:
पिछले दिनों आपने ईशा योग केंद्र में कुछ दिन बिताए। आपके यहां आने की वजह क्या रही? कैसा लगा यहां आकर?
समीर राव: ईशा योग केंद्र पर आने और यहां आकर बांसुरी वादन करने की योजना लंबे समय से मन में थी। इससे पहले दो या तीन बार मैं किसी को लेने या छोडऩे ईशा होम स्कूल आ चुका हूं। एकबार मैंने यहां ध्यांलिंग मंदिर में नाद आराधना के लिए भी वादन किया था, लेकिन यहां दो तीन दिन रुकने का मौका मुझे कभी नहीं मिला। मैं ईशा के लिए कुछ रेकॉर्ड करना चाहता था और इसी वजह से मैं यहां आया हूं। मेरे कंसर्ट का प्रोग्राम, गुरुकुल की छुट्टियां और ईशा के संगीतकारों की तारीखें सब कुछ इतने अच्छे ढंग से हो गया कि मुझे यहां आने, कुछ दिन रुकने और कुछ रेकॉर्ड करने का भरपूर मौका मिला। मुझे सद्गुरु के साथ सत्संग में भी भाग लेने का मौका मिला। यहां जो भी है, मुझे सब कुछ अच्छा लगता है। ब्रह्मचारी, बच्चे, इमारतें और बाकी सब कुछ मुझे बहुत अच्छे लगे। इन सात दिनों के दौरान इस जगह ने मुझे बिल्कुल घर जैसा अहसास दिया है। मुझे एकपल को भी ऐसा नहीं लगा कि मैं कोई बाहरी व्यक्ति हूं और यहां किसी काम के लिए आया हूं।
ईशा संस्कृति के बारे में आपकी क्या सोच बनी?
समीर राव: सच कहूं तो मुझे उन बच्चों से बड़ा रश्क होता है। अगर मुझे मौका मिले तो मैं इस तरीके से दोबारा अपनी पढ़ाई शुरू करना चाहता हूं। मैं ईशा संस्कृति का स्टूडेंट बनना चाहता हूं। तेज से भरपूर ऐसे चेहरे मैंने कभी नहीं देखे। वाकई ये लाजवाब बच्चे हैं। इनके साथ थोड़ा सा वक्त बिताना मेरे लिए एकमहान अनुभव रहा।
आपके हिसाब से एक अच्छा संगीतकार बनने के लिए क्या जरूरी है?
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समीर राव: इसके लिए पहले तो आपको एकअच्छा इंसान होना चाहिए। तभी आप संगीत की गूढ़ता और बारीकियों को समझ पाएंगे। आपको कठिन परिश्रम करना होगा और संगीत व अपने गुरु के प्रति जबर्दस्त श्रद्धा और समर्पण रखनी होगी।
आपको कई सम्मान मिल चुके हैं। आपके लिए सच्ची सफलता के मायने क्या हैं? आपके संगीत का असली लक्ष्य क्या है?
समीर राव: जब मैं परफॉर्म करता हूं तो कई बार ऐसा होता है कि लोग मेरे बारे में बहुत अच्छा बोलते हैं। वे मेरे ऑटोग्राफ लेना चाहते हैं, मेरे साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं और जमकर मेरी तारीफ करते हैं। ऐसा तब होता है जब उन्हें मेरी परफॉर्मेंस से खुशी मिलती है और वह उन्हें अंदर तक छू जाती है। जब मेरा संगीत मुझे खुश करता है और मुझे गहरे तक छू जाता है तो मुझे सफलता का अहसास होता है। मैं संगीत के जरिए बोलना चाहता हूं। जो भी महसूस करता हूं, उसे संगीत के जरिए व्यक्त करना चाहता हूं। वादन के दौरान मैं उस स्थिति में पहुंच जाना चाहता हूं, जिसमें लोग मेडिटेशन के दौरान पहुंचते हैं। अगर अपने संगीत के दम पर मैं लोगों की जिंदगियों में पॉजिटिव बदलाव ला सका, तो मैं अपने को सही मायनों में सफल समझूंगा। संगीत दैवीय है। अगर मेरे संगीत के जरिये लोगों को अपने मन में दैवीय अहसास होने लगे, तो मैं समझूंगा कि सही मायनों में मुझे कामयाबी मिल चुकी है।
सद्गुरु के साथ तीन दिवसीय सत्संग में आपने साउंड्स ऑफ ईशा के संगीतकारों के साथ भी परफॉर्म किया। ईशा के संगीतकारों के साथ काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा?
समीर राव: वाकई यह शानदार अनुभव था। सत्संग के दौरान शुरू से लेकर आखिर तक मैं साउंड्स ऑफ ईशा के संगीतकारों जैसी सरलता को कायम रखने की कोशिश कर रहा था। साउंड्स ऑफ ईशा के बांसुरी वादकों और उनकी धुनों का मैं बड़ा प्रशंसक हूं। स्पंदा हॉल में परफॉर्म करना अपने आप में एक शानदार अनुभव था। यहां मुझे राग के कई छिपे और अनछुए पहलुओं को खोजने का मौका मिला। साउंड्स ऑफ ईशा के सभी सदस्यों को मेरा धन्यवाद। सच तो यह है कि उनके साथ काम करके मुझे जितना मजा आया, उतना तो कभी संगीत के प्रोफेशनल धुरंधरों के साथ काम करके भी नहीं आया।
ध्यानलिंग मंदिर में नाद आराधना का अनुभव कैसा रहा?
समीर राव: नाद आराधना के दौरान मैं खुद को सद्गुरु के बेहद करीब महसूस कर रहा था।
आपके संगीत और आपकी जिंदगी से आध्यात्मिकता किस हद तकजुड़ी है?
समीर राव: मैं अपने संगीत को व्यावसायिकता से मीलों दूर ले जाकर पूरी तरह आध्यात्मिक बनाना चाहता हूं। जब मैं राग के हर स्वर को खोजते हुए लंबे आलाप बजाता हूं तो मुझे लगता है कि मैं संगीत के साथ न्याय कर रहा हूं। ऐसा करके मुझे तमाम अनछुई और अनसुनी धुनों को ढूंढने का मौका मिलता है। लेकिन जब आप किसी प्रोफेशनल बांसुरी वादक के तौर पर बजा रहे होते हैं और आप जानते हैं कि यही आपकी रोजी रोटी है, तो परफॉर्मेंस के दौरान आपको पेशेवर रुख कायम रखना पड़ता है। जब मैं घर पर बांसुरी बजाता हूं, ज्यादातर बार मैं सिर्फ आलाप बजाता हूं। मेरी पूरी कोशिश होती है कि वह बिल्कुल असली और आध्यात्मिक रहे। सद्गुरु कहते हैं कि अगर आप अपनी सभी बेतुकी और निरर्थक बातों को करना बंद कर देंगे तो आप आध्यात्मिक हो जाएंगे। यह बात मैं अपनी जिंदगी के साथ-साथ संगीत में भी लागू करने की कोशिश करता हूं।
सद्गुरु के सान्निध्य में आपको कैसा लगा?
समीर राव: मेरे लिए इस अहसास का शब्दों में वर्णन करना मुमकिन ही नहीं है। उनकी मौजूदगी ने मुझे पूरी तरह अभिभूत कर दिया। सद्गुरु की मौजूदगी में ईशा योग केंद्र में सात दिन बिताने के बाद मुझे लगता है कि मेरे बांसुरी वादन में काफी बदलाव आया है। मुंबई एयरपोर्ट पर जब मैंने पहली बार सद्गुरु को देखा था तो मुझे अपने भीतर एक प्रभावशाली ऊर्जा का अहसास होने लगा था। उसी वक्त से मैं ईशा आने और सद्गुरु के सान्निध्य में बांसुरी वादन करने की योजना बना रहा था। सद्गुरु और ध्यानलिंग के लिए बांसुरी बजाना मेरे लिए एक सपने के साकार होने जैसा था।
आपकी भविष्य की क्या योजनाएं हैं ? ईशा योग सेंटर पर दोबारा आना चाहेंगे?
समीर राव: भविष्य की योजनाओं के बारे में मैं कुछ नहीं जानता, बल्कि यह कहना ज्यादा अच्छा होगा कि मैं भविष्य की प्लानिंग ही नहीं करता। मैं चीजों को अपने आप होने देने में भरोसा करता हूं। मैं जल्दी ही दोबारा ईशा आना चाहता हूं। मुझे तो ऐसा लगता है कि मैंने ईशा को छोड़ा ही नहीं है। शब्दों के जरिए मैंने खुद को व्यक्त करने की पूरी कोशिश की है, लेकिन मुझे अब भी ऐसा लगता है कि सद्गुरु के प्रति अपनी भावनाओं को मैं संगीत के माध्यम से ही बेहतर तरीके से व्यक्त कर सकता हूं।