सद्‌गुरु साझा कर रहें हैं अपने जीवन की एक बेहद रोचक घटना- उनके जीवन में एक पल ऐसा आया था, जब सब कुछ ध्वनि में बदल गया था। आइए सुनते हैं, उन्हीं के शब्दों में-

प्रकृति में भी और इस आधुनिक संसार में भी जबर्दस्त शोर हो रहा है। ये शोर या इसे गूंज कह सकते हैं, बड़ी शक्तिशाली है और लोगों के जीवन को प्रभावित करती है।

 

सद्गुरुसद्‌गुरु: मेरे साथ एक बड़ी अनूठी घटना घटी। केदार के ऊपर एक जगह है जिसे कांति-सरोवर के नाम से जाना जाता है। प्राय: लोग वहां नहीं जाते हैं, वह बहुत घुमावदार चढ़ाई है। मैं कांति-सरोवर तक बस ट्रेकिंग करते हुए चला गया, और वहां जाकर एक पत्थर के ऊपर बैठ गया। इसे शब्दों में व्यक्त करना बहुत कठिन है, लेकिन कुछ समय के बाद ऐसा हुआ कि मेरे अनुभव में सब कुछ ध्वनि में बदल गया, मेरा शरीर, पहाड़, मेरे सामने का सरोवर, हर चीज ध्वनि बन गई। हर वस्तु ने ध्वनि का रूप ले लिया था और मेरे अंदर एक अलग तरीके से सब कुछ घटित हो रहा था। मैं वहां बैठा हूं, मेरा मुंह बंद था - मुझे यह स्पष्ट रूप से मालूम था - लेकिन मेरी खुद की आवाज में एक गीत बहुत ऊंचे स्वरों में गूंज रहा था, मानो किसी माइक्रोफोन से आ रहा हो, और यह गीत संस्कृत भाषा में है। हम लोग इसे एक साथ गाएंगे, बस मेरे पीछे-पीछे गाएँ, अपनी आंखें बंद कर लें। ध्वनि को महसूस करें और बस मेरे पीछे-पीछे गाएं। आप यह जान जाएंगे कि यह किस संबंध में है।

नाद ब्रह्म विश्वस्वरूपा

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नाद ही सकल जीवरूपा

नाद ही कर्म, नाद ही धर्म

नाद ही बंधन, नाद ही मुक्ति

नाद ही शंकर, नाद ही शक्ति

नादम् नादम् सर्वम् नादम्

नादम् नादम् नादम् नादम्

                

वहां उस समय यह जबर्दस्त घटना घटी, और यह हर वक्त हो रही है। बस कोई सुनने वाला होना चाहिए। अभी अगर आप एक ट्रांजिस्टर रेडियो लाएं और एक खास आवृति या फ्रीक्वेंसी पर उसे ट्यून कर दें तो इसमें गाना बजने लगेगा। ये आप भी जानते हैं कि रेडियो नहीं गा सकता, गाना तो पहले से ही हवा में है। रेडियो तो केवल हवा में मौजूद ध्वनि की आवृति यानी फ्रिक्वेंसी को बदल रहा है। आपके सुनने की क्षमता से बाहर की फ्रिक्वेंसी को आपके सुनने की क्षमता वाली फ्रिक्वेंसी में बदल रहा है। रेडियो खुद नहीं गा सकता। ठीक यही बात टीवी के साथ भी है। यह तो बस एक आवृति वाले तरंगों को दूसरी आवृति वाले तरंगों में बदलकर उसे प्रसारित कर रहा है।

जीवन को रूपांतरित करने के लिए आपको सही तरह की ध्वनि पैदा करने की जरूरत है। इसके लिए एक तरह की ट्रेनिंग होती है, जिसे नाद योग कहते हैं। इससे आवाज को इस तरह संवारा जा सकता है कि अगर आप कोई ध्वनि निकालें तो वह आपके आसपास की स्थितियों को रूपांतरित कर दे।
प्रकृति में भी और इस आधुनिक संसार में भी जबर्दस्त शोर हो रहा है। ये शोर या इसे गूंज कह सकते हैं, बड़ी शक्तिशाली है और लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। ध्यानलिंग भी एक तरह से गुंजायमान हो रहा है यानी इसकी भी अपनी एक खास तरह की ध्वनि है। पर्वतों की भी अपनी खास तरह की एक ध्वनि है। यहां तक कि हर कंकड़ तक की अपनी एक ध्वनि है। उसी तरह हर आकृति की, जिसमें इंसान भी शामिल है, एक खास ध्वनि है। यही वजह है कि इस शरीर को हम इतना रगड़ते हैं। हर सुबह जब आप सूर्य नमस्कार करते हैं तो आप सोचते होंगे कि क्या वाकई इसकी जरुरत है? आपने देखा होगा कि शास्त्रीय गायक अपने वाद्य-यंत्र को ट्यून करने में कई घंटे लगाते हैं। स्टेज पर आने से पहले वे अपने यंत्र को ठीक तरह से ट्यून कर चुके होते हैं, फिर भी स्टेज पर आने के बाद वे फिर से उसे ट्यून करने लगते हैं। वो बार-बार उसे ट्यून करते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने सुनने की क्षमता को इतना बेहतर बना लिया है कि आवाज का जरा सा भी फर्क उनकी पकड़ में आ जाता है। यह सही है कि बहुत सारे लोगों को आवाज का यह फर्क पता भी नहीं चलेगा, लेकिन वे उसे फिर भी ठीक करते हैं। क्योंकि उस कमी को दूर करने से सिर्फ संगीत ही मधुर नहीं बनता, बल्कि खूबसूरत गूंज पैदा होती है और लोगों को एक खास किस्म का अनुभव होता है।

लोगों के जीवन को रूपांतरित करने के लिए आपको सही तरह की ध्वनि पैदा करने की जरूरत है। इसके लिए एक तरह की ट्रेनिंग होती है, जिसे नाद योग कहते हैं। इससे आवाज को इस तरह संवारा जा सकता है कि अगर आप कोई ध्वनि निकालें तो वह आपके आसपास की स्थितियों को रूपांतरित कर दे। यह बड़ा ही सूक्ष्म पहलू है। हो सकता है आप सोच रहे हों कि मैं अपनी आवाज को कैसे बदल सकता हूं? अगर जरूरी साधना की जाए तो हर कोई अपनी आवाज को बदल सकता है। तो हर सुबह जो आप अपने शरीर को गूंथते हैं, आसन करते हैं, सूर्य नमस्कार करते हैं, बाकी क्रियाएं करते हैं, वह इस शरीर को ऐसा बनाने के लिए है कि आपके शरीर से सही प्रकार की गूंज उत्पन्न हो।