भारतीय परंपरा और विश्व की अन्य कई परम्पराओं में पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व होता है। क्यों है पूर्णिमा  का दिन महत्वपूर्ण?

पूर्णिमा की खूबसूरती में भी कुछ ऐसी खूबियां होती हैं, जो हमारी ग्रहण करने की क्षमता को निश्चित तौर पर सुधारती हैं।
वैसे तो हर पूणिर्मा महत्वपूर्ण होती है। इसकी वजह यह है कि इसमें कुछ खास तरह की खूबसूरती होती है। आप किसी भी चीज पर नजर डालें और अगर वह खूबसूरत हुई, तो आप पाएंगे कि आपके भीतर उसके प्रति आकर्षण अचानक बढ़ जाता है। इसी तरह अगर आप किसी ऐसी चीज पर नजर डालते हैं, जो आपकी निगाहों में भद्दी या बदसूरत है, तो उसके प्रति आपकी ग्राह्यता कम हो जाती है। पूर्णिमा की खूबसूरती में भी कुछ ऐसी खूबियां होती हैं, जो हमारी ग्राह्ण करने की क्षमता को निश्चित तौर पर सुधारती हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि धरती, चंद्रमा के साथ कुछ खास तरह की स्थिति में घूमती है। पूर्णिमा के दिन चंदमा की स्थिति, अनुभव और उसका स्पंदन दूसरे दिनों की तुलना में अलग तरह का होता है। यहां तक कि इस दिन चंद्रमा का चुंबकीय आकर्षण भी अलग तरह का होता है। चंद्रमा का चुंबकीय आकर्षण धरती की उस सतह पर काम करता है, जो हिस्सा चंदमा के सीधे संपर्क में होता है।

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हमारे शरीर का मेरुदंड खड़ा होता है। ऐसे में जब भी इस तरह का कोई कुदरती आकर्षण होता है, तो मेरुदंड में सहज ही ऊर्जा ऊपर की ओर चढ़ती है। इस दौरान आपके भीतर जो रक्त और प्राण की ऊर्जाएं हैं, वे अलग दिशा में प्रवाहित होने लगती हैं, क्योंकि कंपन में बदलाव आता है। इसीलिए पूर्णिमा की रात को बाकी रातों के मुकाबले समुद्र में तेजी से लहरें उठती हैं, क्योंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पानी को अपनी ओर ऊपर की ओर खिंचता है। इसी तरह से आप के शरीर के रक्त को भी यह गुरुत्वाकर्षण ऊपर की ओर खिंचता है, नतीजा यह होता है कि उस दौरान रक्त का प्रवाह दिमाग की ओर बढ़ जाता है।

 हमें इस रात का, इस कुदरती घटना का सदुपयोग करना चाहिए। यह रात आपके लिए कुछ ऐसी है कि आप ऊर्जा और जागृति का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।
जब भी यह ऊर्ध्वगामी गति होती है, तो आपके भीतर जो भी खूबी होती है, वह बढ़ जाती है। आप ने सुना होगा कि जिन इंसानों का मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता, वे पूर्णिमा के आसपास और भी असंतुलित हो जाते हैं। इसकी वजह यह है कि इस दौरान होने वाला ऊर्जा का उभार आपकी खूबियों और लक्षणों को भी बढ़ाता है। अगर आप थोड़े बहुत असंतुलित हैं, तो इस दौरान आप ज्यादा असंतुलित हो जाते हैं।

यह बात आपके अन्य लक्षणों पर भी लागू होती है। लेकिन ज्यादातर लोग इतने संवेदनशील नहीं होते कि वे इसे महसूस कर सकें। अगर इस समय आप ध्यान लगाएं, तो आपको ध्यान में और अधिक सफलता मिलेगी। इसी तरह से अगर आप प्रेम में हैं, तो आपका प्रेम और भी गहरा हो जाता है। अगर आप डरपोक हैं तो आपके भीतर डर और गहरा समा जाता है। आपके किसी भी लक्षण को, इस दौरान बढ़ावा मिलता है।

जो लोग अध्यात्म के मार्ग पर हैं, जो ध्यान में लगे हुए हैं, उनके लिए पूर्णिमा का विशेष महत्व है। खासकर साधकों के लिए यह रात ज्यादा सहायक होती है, क्योंकि ऊर्जा के ऊर्ध्वगामी हुए बिना और ऊर्जा के उभार का अहसास हुए बिना आपके जागरूक वचैतन्य होने का सवाल ही नहीं पैदा होता। जिसे आप जागरूकता कहते हैं, वह आप तक नैसगिर्क रूप से तभी आएगी, जब आप अपने भीतर ऊर्जा का उभार अनुभव करेंगे। हमें इस रात का, इस कुदरती घटना का सदुपयोग करना चाहिए। यह रात आपके लिए कुछ ऐसी है कि आप ऊर्जा और जागृति का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।