मोह क्या है ? - प्रेम आनंद है, पर मोह उलझन
आम तौर पर प्रेम को किसी-न-किसी प्रकार के कष्ट से जोड़कर देखा जाता है। क्या यह वाकई प्रेम है जो हमें कष्ट देता है, या फिर हम प्रेम से भटककर मोह में फंस जाते हैं, और खुद को कष्ट देते हैं...?
किसी इंसान के प्रति भावनाओं की मिठास को अक्सर प्रेम कहा जाता है, लेकिन कभी-कभी हमें यह भी लगता है कि हम व्यर्थ ही मोह में फंस गए हैं। हम यह कैसे पता लगा सकते हैं कि हमारे भीतर सच्चा प्रेम है या फिर हम मोह से घिरे हुए हैं?
लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि प्रेम में इतना ज्यादा कष्ट क्यों होता है? देखिए, एक चीज होती है प्रेम। और एक दूसरी चीज है, जिसे आसक्ति या मोह कहते हैं।
एक मिसाल के तौर पर हम कह सकते हैं कि प्रेम एक फूल की तरह है। एक बार जब फूल आपके जीवन में जगह बनाता है, तो आपको इसकी देखभाल करनी पड़ती है। इसको पोषण देना होता है, इसे खिलने के लिए सही माहौल बनाने की जरूरत होती है। जब आप फूल को हाथ में लेते हैं, तो आपको उसे सावधानी से सम्हालना होता है। इस वजह से आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है, पर वो फूल आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जबकि मोह प्लास्टिक के फूल की तरह है। यह बेहद सुविधाजनक है, लेकिन जब यह आपके जीवन में आता है, तो चिंता और बेचैनी भी साथ लाता है। अगर बेचैनी आ गई तो डर भी आएगा। अगर डर आ गया, तो अगला नंबर पागलपन का होगा। इसे इस मिसाल से समझते हैं। मान लीजिए, आपका बच्चा स्कूल गया। उसे पांच बजे तक घर आ जाना था, लेकिन छह बजे तक भी वह नहीं लौटा। ऐसे में आपको बेचैनी शुरू हो जाएगी। सात बजे तक वह नहीं लौटा, तो आपके मन में डर पैदा हो जाएगा। अगर वह आठ बजे तक भी नहीं लौटता, तो आप पर पागलपन सवार हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि अचानक आप पागल हो जाएंगे, लेकिन परिस्थिति ने इस प्रक्रिया को तेज जरूर कर दिया। यानी जिस पल आप मोह में फंसते हैं, आप पागलपन के रास्ते चल पड़ते हैं। ऐसे में आपको कष्ट होना लाजिमी है।
प्रेम के मामले में ऐसा नहीं है। प्रेम कोई निजी फायदे के लिए नहीं है। प्रेम कोई सुख हासिल करने का साधन नहीं है। सच्चा प्रेम खुद को मिटाने का तरीका है। इसमें आपको अपने खुद के एक हिस्से को, अपने इस ‘मैं’ को छोड़ना होगा, विसर्जित करना होता है। लेकिन यह जीवन है। अब चुनाव आपको करना है। क्या आप जीवन को चुनेंगे या किसी ऐसी चीज को, जो जीवन के जैसी नजर आती है? अभी ज्यादातर लोग उस चीज को चुन रहे हैं, जो जीवन के जैसी नजर आती है, क्योंकि लोग जीवन से होकर गुजर ही नहीं रहे हैं, वे तो बस विचारों में उलझे हुए हैं। नब्बे फीसदी मामलों में ऐसा होता है कि लोग जीवन के बारे में बस सोचते रहते हैं। ये विचार जीवन के बारे में हो सकते हैं, लेकिन ये जीवन नहीं हैं। जीवन एक ऐसी चीज है, जिसे आप अनुभव करते हैं। विचार सिर्फ आपके दिमाग की उपज हैं।
तो प्रेम कष्ट नहीं है।
योग में ‘ध्यान’ के पीछे भी यही विचार है, स्थूल शरीर की सीमाओं को तोडना। जब आप भौतिक शरीर की सीमाओं और बंधनो को तोड़ देते हैं, तो संभव है कि आपके शरीर में स्पंदन होने लगे, आपकी आंखों में आंसू भर आएं। एकत्व का परम आनंद आपको रूपांतरित करता है और सभी सीमाओं और बंधनों से परे आपको संपूर्ण बना देता है।
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