लिंग भैरवी के रूप की विशेषता ये है कि इसमें साधे तीन चक्र प्रतिष्ठित हैं। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक और आधा अनाहत चक्र। जानते हैं इसके मायने सद्गुरु से
देवताओं को हमने ही बनाया है
हमारी संस्कृति ही दुनिया में एकमात्र संस्कृति है जो यह मानती है कि ‘देवताओं’ को हमने ही बनाया है। यही वजह है कि हमारे यहां लगभग साढ़े तीन करोड़ देवी-देवता हैं। दरअसल हमने देवता बनाने की पूरी तकनीक विकसित की है। हमने ऊर्जा को एक रूप देना शुरु किया और ऐसे ऊर्जा-रूप बनाए, जो अलग-अलग तरह से लोगों के लिए लाभकारी हैं। किसी ने भी यह नहीं माना कि यही अंतिम है।
मैं चाहता हूं कि आप यह जानें कि हमारी संस्कृति हमेशा यह बताती है कि ईश्वर हमारा लक्ष्य नहीं है, हमारा लक्ष्य मुक्ति है। मुक्ति के लिए ईश्वर बस एक साधन है। अगर आप चाहते हैं तो आप इस साधन का इस्तेमाल कर आगे बढ़ सकते हैं, नहीं तो इसे छोडक़र भी आप आगे जा सकते हैं। यह आप पर है कि आप कैसे अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं, लेकिन लक्ष्य मुक्ति ही है, ईश्वर नहीं।
लिंग भैरवी की प्राण प्रतिष्ठा
इसलिए हमने लाखों देवी-देवता बनाए। देवी-देवता बनाने की यह प्रक्रिया अब भी चालू है। 2010 में हमने ईशा योग सेंटर, कोयंबटूर, में देवी लिंग भैरवी की प्राण-प्रतिष्ठा की।
हो सकता है कि ये तार्किक रूप से सही न लगे - भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां योनि रूप स्थापित हैं। योनि यानी स्त्री जनन अंग को देवी मां की तरह पूजा जाता है।
लिंग भैरवी बहुत शक्तिशाली ऊर्जा का एक स्त्रैण स्वरूप हैं। ऐसे ऊर्जा-स्वरूप पहले भी हमारे यहां हुए हैं, लेकिन वे काफी दुर्लभ हैं। ऐसे कुछ ऊर्जा-स्वरूप लिंग के रूप में भी रहे हैं, जो कि स्त्रियोचित लिंग हैं। हो सकता है कि ये तार्किक रूप से सही न लगे - भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां योनि रूप स्थापित हैं। योनि यानी स्त्री जनन अंग को देवी मां की तरह पूजा जाता है। इस तरह के मंदिर पूरी दुनिया में हैं। बाद में जब कपटी और लज्जा भरी संस्कृति आई, तो इन मंदिरों को गिरा दिया गया, लेकिन आज भी भारत में ऐसे बहुत सारे मंदिर हैं - कामाख्या मंदिर इनमें से एक है। लेकिन स्त्रियोचित ऊर्जा को लिंग के रूप में पूजना दुर्लभ है। ऐसे बहुत ही कम मंदिर हैं और वे भी सार्वजनिक जगहों पर नहीं हैं। बहुत ही वीरान जगहों पर ऐसे छोटे-छोटे मंदिर हैं। शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि हमने इस तरह के मंदिर का निर्माण किया है, जो कि सभी लोगों के लिए खुला है और इसकी देखभाल भी अलग तरह से होती है। स्त्रियोचित ऊर्जा का यह सबसे तीव्र और प्रखर रूप है।
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दुनिया में स्त्रीत्व से जुड़ी आग की जरूरत है
मुझे लगता है कि दुनिया में एक बहुत ही दुखद बात यह हो रही है कि महिलाएं दिखावे की वस्तु या कहें बार्बी डॉल्स बनती जा रही हैं। उनके भीतर कोई प्रचंडता नहीं है, उनके भीतर कोई स्त्रियोचित आग नहीं है।
आग का मतलब गुस्सा, ईर्ष्या या झगड़ा नहीं है, आग बहुत रचनात्मक होती है। यही वह चीज है जो एक औरत किसी पुरुष को विशेष तौर पर दे सकती है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
उनके भीतर ईर्ष्या है, बेसिर-पैर की बातें हैं, पुरुषों जैसी महत्वाकांक्षाएं हैं, लेकिन उनके भीतर काली की तरह स्त्रियोचित आग नहीं है, जो एक स्त्री के भीतर होनी चाहिए। लिंग भैरवी उसी तरह हैं जैसी एक स्त्री को होना चाहिए - एक असली आग। हमारी संस्कृति में स्त्री हमेशा से पुरुष के लिए एक आग की तरह रही है। पुरुष बाहर जा सकता है, काम कर सकता है, लेकिन असली आग स्त्री ही है। वह आग अब लगभग गायब हो चुकी है। आग का मतलब गुस्सा, ईर्ष्या या झगड़ा नहीं है, आग बहुत रचनात्मक होती है। यही वह चीज है जो एक औरत किसी पुरुष को विशेष तौर पर दे सकती है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। महिलाएं या तो गुडिय़ों की तरह बन रही हैं या फि र पुरुष बनने की कोशिश में लगी हैं। आपने भी गौर किया होगा। वास्तविक स्त्रियोचित गुण गायब हो गए हैं।
देवी लिंग भैरवी ध्यानलिंग की आधी हैं
मैं बीस सालों तक इस बारे में सोचता रहा कि किस तरह की आकृति बनाई जाए। मुझे लगा कि तीव्र और प्रखर अग्नि जैसी स्त्रियोचित आकृति बनानी चाहिए।
हमने दृढ़-दंड की भी स्थापना की है, जिसके भीतर ठोस पारा है। रस-दंड और दृढ़-दंड दोनों साथ-साथ प्रतिध्वनित होंगे और इनके कारण ही वहां कई तरह की चीज़ें होती हैं।
आपने काठमांडू में देखा होगा या हो सकता है और मंदिरों में भी देखा हो कि काली शिव के मृत शरीर पर खड़ी हैं। अपनी प्रचंडता में आकर उन्होंने उनकी जान भी ले ली और फि र उन्हें दोबारा जीवन भी दिया। इस तरह की तस्वीरों को यथारूप लेने की जरूरत नहीं है।
जैसा मैंने पहले कहा, लिंग भैरवी में केवल साढ़े तीन चक्र हैं - मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक और आधा अनाहत है। अनाहत में एक-दूसरे को काटते दो त्रिकोण होते हैं, जिनमें से देवी के पास एक ही है। उन्हें जानबूझकर ऐसा बनाया गया है, क्योंकि वह ध्यानलिंग (ईशा योग केंद्र में प्रतिष्ठित लिंग) की आधी हैं। इस आकृति को रस-दंड पर बनाया गया है। रस-दंड तांबे की एक नली है, जिसके भीतर तरल पारा भरा गया है। इस पारे को साढ़े दस महीनों तक कई तीव्र प्रक्रियाओं से गुजारा गया। देवी के लिए रस-दंड मुख्य ऊर्जा तत्व है। जिस पल रस-दंड देवी के भीतर प्रवेश करता है, वही उनके जन्म का असली पल होता है। हमने दृढ़-दंड की भी स्थापना की है, जिसके भीतर ठोस पारा है। रस-दंड और दृढ़-दंड दोनों साथ-साथ प्रतिध्वनित होंगे और इनके कारण ही वहां कई तरह की चीज़ें होती हैं।
लिंग भैरवी एक पूर्ण स्त्री हैं
साढ़े तीन चक्र का क्या यह मतलब है कि वह आधी स्त्री हैं? नहीं, वह एक पूर्ण स्त्री हैं। हर इंसान का आधा हिस्सा स्त्रैण होता है और आधा पुरुष-प्रकृति होता है।
हमने पुरुष वाले हिस्से को उनमें से बाहर कर दिया है। वह केवल एक पूर्ण स्त्री हैं और यह बड़ी खतरनाक बात है। उनके भीतर पुरुषोचित कुछ भी नहीं है। वह विशुद्ध नारी हैं।
बस बात इतनी है कि हर इंसान में कुछ खास हॉर्मोंस की वजह से आधा हिस्सा दब जाता है और दूसरा आधा हिस्सा उभर कर सामने आता है। इंसान के अंदर दो तरह के हॉर्मोन्स होते हैं - टेस्टोस्टेरॉन और एस्ट्रोजन। अगर आपके भीतर टेस्टोस्टेरॉन प्रभावशाली है तो आपके भीतर स्त्रैण वाला आधा हिस्सा दब जाता है। अगर एस्ट्रोजन प्रबल है तो पुरुष वाला आधा भाग दब जाता है। ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसके भीतर ये दोनों हिस्से न हों। ये दोनों ही हिस्से हर इंसान में समान रूप से पाए जाते हैं। बस बात इतनी है कि इनमें से कौन से हिस्से को आपने दबाकर रखा हुआ है। दबाने की वजह हॉर्मोंस भी हो सकते हैं और सामाजिक परिस्थितियां भी या दोनों भी। लेकिन देवी केवल स्त्री हैं। हमने पुरुष वाले हिस्से को उनमें से बाहर कर दिया है। वह केवल एक पूर्ण स्त्री हैं और यह बड़ी खतरनाक बात है। उनके भीतर पुरुषोचित कुछ भी नहीं है। वह विशुद्ध नारी हैं।
स्वाधिष्ठान चरम पर है - पर कामुकता का पहलू नहीं है
इसके कई सारे पहलू हैं। इन पहलुओं के बारे में तार्किक तरीके से साफ -साफ कुछ कहना बहुत ही मुश्किल काम है। इसमें स्वाधिष्ठान चरम पर है, लेकिन इसमें कामुकता नहीं है।
वह कोई थोड़ी-बहुत आग वाली साधारण नारी नहीं हैं, वह गुडिय़ा नहीं हैं, वह पुरुष भी नहीं है, वह मूल रूप से स्त्री हैं। कई बार तो मुझे डर लगता है कि कहीं ये ध्यानलिंग से भी ज्यादा लोकप्रिय न हो जाएं।
स्वाधिष्ठान वह चक्र है, जिसका संबंध प्रजनन शक्ति से होता है। लेकिन स्वाधिष्ठान का असली मतलब स्वयं का निवास-स्थान है। यह सेक्स क्रिया के लिए भी जिम्मेदार है। ऐसे में सेक्स के पहलू को बिना शामिल किए स्वाधिष्ठान को तीव्रता के उच्चतम स्तर पर बनाए रखना - लिंग भैरवी की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान सबसे बड़ी चुनौती थी। यह बहुत ही शक्तिशाली स्वाधिष्ठान है, लेकिन इसमें कामुकता का पहलू नहीं है। इसमें इतनी जबर्दस्त आग है कि कामुकता भी जल जाए। जब हल्की आग होती है तो सेक्स घटित होता है, लेकिन जब वाकई जबर्दस्त आग होती है तो ध्यान घटित होता है। इस तरह से यह जबर्दस्त अग्नि को समाहित किए हुए नारी हैं। वह कोई थोड़ी-बहुत आग वाली साधारण नारी नहीं हैं, वह गुडिय़ा नहीं हैं, वह पुरुष भी नहीं है, वह मूल रूप से स्त्री हैं। कई बार तो मुझे डर लगता है कि कहीं ये
ध्यानलिंग से भी ज्यादा लोकप्रिय न हो जाएं।