क्या प्रेम ही अंतिम सत्य है?
प्रेम मानव जीवन के सुखद अनुभवों में से एक है। पश्चिमी समाज में प्रेम को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है और इसे परम सत्य से जोड़कर देखा जाता है। यहां तक की प्रेम को ही अंतिम सत्य माना जाता है। क्या प्रेम ही सत्य है? या फिर सत्य की स्थिति प्रेम से भी परे है? आज के ब्लॉग में सद्गुरु सत्य और प्रेम पर प्रकाश डाल रहे हैं...
प्रेम मानव जीवन के सुखद अनुभवों में से एक है। पश्चिमी समाज में प्रेम को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है और इसे परम सत्य से जोड़कर देखा जाता है। यहां तक की प्रेम को ही अंतिम सत्य माना जाता है। क्या प्रेम ही सत्य है? या फिर सत्य की स्थिति प्रेम से भी परे है? आज के ब्लॉग में सद्गुरु सत्य और प्रेम पर प्रकाश डाल रहे हैं...
शेखर कपूरः सद्गुरु, एक और सवाल है। पश्चिमी देशों में प्रेम और सत्य की बातें होती हैं। कहा जाता है कि प्रेम ही अंतिम सत्य है। यह भी कहा जाता है कि हमारे भीतर प्रेम नहीं है, बल्कि हम ही प्रेम हैं और इस तरह हम अपनी अंतरात्मा तक पहुंचने के मकसद से जुड़ते हैं। क्या आप इस बात से सहमत हैं?
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सद्गुरु: देखिये, अगर किसी समाज के लोग भूखे हैं, तो उस समाज में खाने की अहमियत सबसे ज्यादा होगी। अगर आप बीमार हैं तो आपके लिए सबसे ज्यादा अहमियत होगी स्वास्थ्य की। अगर आप गरीब हैं तो धन आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा। इसी तरह अगर आपको प्रेम नहीं मिला है तो प्रेम की आपकी निगाह में सबसे ज्यादा अहमियत होगी और खुशी नहीं मिली है तो खुशी की। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि आप जिस पल जिस चीज से वंचित हैं, उस पल आपको उसी की अहमियत सबसे ज्यादा महसूस होगी। जब लोगों में किसी चीज़ की कमी की भावना होती है, तो लोगों को उसका महत्व बहुत ज्यादा लगता है।लेकिन वह चीज़ मिल जाने के बाद वो बात नहीं रहती।
आज के संदर्भ में बात करें तो आज पश्चिम के देश औद्योगिक क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। महिलाएं अपने घरों से बाहर निकल रही हैं और पुरुष भी उन्हें सहयोग कर रहे हैं। चीजें धीरे-धीरे बेहतर हो रही हैं, लेकिन अचानक जब इस तरह का बदलाव उस समाज में आया, तो बच्चों की एक पूरी पीढ़ी उस प्रेम से वंचित होने लगी, जिसकी वह हकदार थी। सामाजिक बदलाव निरंतर होने वाला एक ऐसा बदलाव है, जिससे निपटने के तरीकों को लेकर लोग आज भी जूझ रहे हैं। दरअसल, व्यवस्था कुछ ऐसी रही है कि घर की महिलाएं बच्चों के पास रहेंगी और उन्हें भरपूर प्रेम देंगी, लेकिन चीजें एकदम बदल गईं और नई व्यवस्था के साथ हम तालमेल ही नहीं बैठा पा रहे। लोगों की एक से दो पीढ़ियां ऐसी निकल गईं, जो उस प्रेम और देखभाल से वंचित रह गईं जो उन्हें मिलना चाहिए था।
चीजों को जरा दूसरे नजरिए से देखिए। आप अपने जीवन में सुख की तलाश करते हैं। सुख का मतलब क्या है? अगर हमारा शरीर सुखी हो जाए तो आमतौर पर हम इसे स्वास्थ्य कहते हैं। अगर यह ज्यादा सुखद हो जाए तो इसे हम मजा कहते हैं। अगर आपका दिमाग सुखी हो जाए तो इसे हम शांति कह देते हैं और दिमाग में बहुत ज्यादा खुशनुमा अहसास होने लगे तो हम इसे खुशी कहते हैं। अगर आपकी भावनाएं सुखद हो जाएं तो इसे हम प्रेम कहते हैं। अगर यह बहुत ज्यादा सुखद होने लगे तो इसे करुणा कहते हैं। अगर आपकी जीवन ऊर्जाएं सुखद हों तो हम इसे आनंद कहते हैं और अगर यह बेहद सुखद हो जाएं, इसे परमानंद कहते हैं। अगर आपकी बाहरी परिस्थितियां सुखद हो जाएं तो इसे हम सफलता कहते हैं।
यही चीजें हैं, जिनकी तलाश इंसान कर रहा है। अगर भावनात्मक तौर पर वह सुखद स्थिति में है, जिसे हम प्रेम कह सकते हैं, तो इसका मतलब है कि ये मानवीय भावनाएं हैं जो सुखद हो रही हैं। या तो किसी व्यक्ति या चीज के प्रति ऐसा होता है या बस यूं ही अपने आप। ऐसा किसी भी तरीके से हो सकता है। अब सवाल यह है कि क्या महज आपके भावों का सुखद हो जाना ही आपके लिए पर्याप्त है? क्या आपको स्वास्थ्य की जरूरत नहीं? क्या आपको सुख नहीं चाहिए? क्या आपको भोजन नहीं चाहिए? क्या आपको तमाम दूसरी क्षमताएं नहीं चाहिए? सोचिए अगर आपके पास बहुत सारा प्यार हो और आप दीन-हीन हों, जैसा कि दुर्भाग्य से बहुत सारे लोगों के साथ होता भी है, तो मुझे नहीं लगता कि आप खुश रह पाएंगे।
कहने का मतलब यही है कि ये चीजें एक खास तरह के अभाव की वजह से पैदा हो रही हैं। किसी इंसान के लिए प्रेम एक खूबसूरत अहसास और जीने का एक शानदार तरीका हो सकता है। लेकिन यह भी उतना ही सच है, कि इसे इसकी सीमाओं से ज्यादा बढ़ा चढ़ाकर देखने की आवश्यकता नहीं है। यहां पूछे गए सवाल में प्रेम के साथ-साथ सत्य की भी बात की गई है। मुझे नहीं पता कि आप कौन से सत्य की बात कर रहे हैं। अगर आप परम सत्य की बात कर रहे हैं तो वह तो सर्वव्यापक है, वह परम मिलन है। प्रेम में आप एक दूसरे के नजदीक आने की कोशिश करते हैं, कुछ पल होते हैं मिलन के और फिर आप अलग अलग हो जाते हैं। कहीं भी ऐसा देखने को नहीं मिलता कि प्रेम करने वाले लगातार मिलन के पलों में रह सकें। मिलन के कुछ पल और फिर दूर हो जाना, फिर वही अहसास और फिर दूरी। बस, इसी तरह से बात आगे बढ़ती रहती है।
परम सत्य का मतलब है परम मिलन की स्थिति, जिसे प्रेम नहीं कह सकते। प्रेम तो उस दिशा में की गई एक कोशिश भर है। ऐसे ही आनंद और शांति भी उस दिशा की ओर बढ़ाए गए कदमों की तरह हैं। जब आपके भीतर शांति होती है तो आपका हर चीज के साथ एकाकार हो जाता है। जब आप आनंद में होते हैं तो भी ऐसा ही होता है। जरा सोचिए जब आप बैठकर एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हैं तो कहीं न कहीं आपको एक दूसरे के साथ मेल महसूस होता है।